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"हमारा अपमान हुआ": तेलंगाना में जातीय अत्याचार वास्तविकता पर पार्टियों ने साधी चुप्पी

तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

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तेलंगाना (Telangana) के रंगारेड्डी जिले में स्थित वट्टीनागुलापल्ली गांव में अंबेडकर और गांधी की मूर्तियों के बीच की दूरी मुश्किल से 500 मीटर है- लेकिन यहां रहने वाले दलित परिवारों के लिए लिए असमानता बहुत अधिक है.

इस साल 6 सितंबर की शाम को दलित पुरुषों और महिलाओं के एक समूह पर गांव के प्रमुख जाति के लोगों ने कथित तौर पर हमला कर दिया, क्योंकि वे नई स्थापित बोडराई (पत्थर की मूर्ती) को बोनम (प्रसाद) चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे. ये मूर्ति पड़ोस में यादवों, लोध राजपूतों और रेड्डी के प्रभाव वाले इलाके में पड़ती है.

लोगों की समृद्धि के लिए तेलंगाना के गांवों में बोडराई स्थापित की जाती है. इसकी स्थापना गांव के सभी निवासी मिलकर तीन दिवसीय उत्सव में करते हैं.

तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

वट्टीनागुलापल्ली गांव में अंबेडकर की मूर्ति

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

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गांव के एक दलित निवासी साई (पहचान छुपाने के लिए उपनाम नहीं लिख रहे हैं) ने द क्विंट को बताया, "गांव के ऊंची जाति के लोगों ने हमसे कहा कि वे हमारे बिना पहले त्योहार मनाना चाहते हैं. हम इस बात से असहमत थे. हमने कहा कि गांव में सभी के लिए केवल एक बोडराई होनी चाहिए और परंपरा के अनुसार, हम सभी को इसे एक साथ मनाना चाहिए."

उन्होंने आगे कहा...

"हमारे इलाके पहले ही अलग-अलग हैं. इस तरफ हम रहते हैं, उस तरफ वे रहते हैं. हम मिलते भी नहीं हैं. अब जब वे त्योहार से भी हमें दूर रखना चाहते हैं तो हमें अपमानित महसूस होता है."

जब साई और अन्य लोगों ने उनकी बात न मानते हुए अपने पड़ोस में अंबेडकर प्रतिमा से जहां बोडराई स्थापित की जा रही थी, वहां तक बोनम लेकर जुलूस निकाला, तो लगभग 200 प्रमुख जाति के लोगों ने उन्हें रोक दिया और कथित तौर पर कहा "तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई. हमारे साथ त्योहार मनाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? हमारी महिलाएं तुम्हारी महिलाओं के साथ बात नहीं करना चाहतीं."

तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

गांधी प्रतिमा अंबेडकर प्रतिमा से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

बोडराई को 6 सितंबर को गांव में स्थापित किया गया था

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

इसके बाद, झड़प हुई, पथराव हुआ और कुछ लोगों को चोटें आईं. दलित परिवारों ने गांव में विरोध प्रदर्शन किया और बाद में गाचीबोवली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया.

पुलिस ने कहा कि मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है और जांच अभी भी जारी है.

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साई ने कहा, वट्टीनगुलापल्ली के दलित लोगों का कहना है कि यह कोई एक बार होने वाली घटना नहीं है. "हमारे गांव में बथुकम्मा (फूलों का त्योहार) मनाते समय भी, हम अपना उत्सव उनके पूरा होने के बाद ही शुरू करते हैं. ये नियम बन चुका है. वे नहीं चाहते थे कि हम बथुकम्मा मनाएं. उन्होंने कहा था, 'अगर तुम लोग बथुकम्मा मनाते हो और हमारे गांव को कुछ हो जाता है, तो कौन जिम्मेदार होगा?' हमें इसके लिए लड़ना पड़ा"
तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

वट्टीनागुलापल्ली में उस समय भीड़ जमा हो गई जब दलित परिवारों को कथित तौर पर बोडराई को बोनम चढ़ाने से रोका गया.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

सालों से हो रहे जातीय अत्याचार

जाति से जुड़ी समस्या न केवल वट्टीनागुआलापल्ली में- जो हैदराबाद के आईटी हब गाचीबोवली से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, बल्कि तेलंगाना के बाकी हिस्सों में भी काफी ज्यादा हैं.

राज्य ने पिछले पांच सालों में जातिगत अत्याचार के कुछ क्रूर मामले देखे हैं. इससे पहले जुलाई में, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना सरकार से इन मामलों पर गौर करने के लिए कहा था.

दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों की समीक्षा के दौरान केंद्र ने पाया कि

  • 2019 में तेलंगाना में ऐसे 2,220 मामले दर्ज किए गए थे

  • 2020 में 2,532 मामले सामने आए, जिनमें 38 हत्याएं शामिल हैं

  • 2021 में 2,284 मामले सामने आए, जिनमें से 65 हत्या के मामले थे

  • 2022 में 31 हत्याओं के साथ 2,332 मामले दर्ज किए गए

  • 2023 में जुलाई तक 949 मामले सामने आए, जिनमें 27 हत्याएं शामिल थीं

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जाति के चलते हत्या और 'ऑनर' किलिंग जैसे मामले भी इस दौरान राज्य में सामने आए हैं. ऐसा ही एक मामला हैदराबाद के सूरनगर में सामने आया था, जहां नागराजू की हत्या कर दी गई. हैदराबाद ओल्ड सिटी के आर्य समाज मंदिर में नागराजू की शादी एक मुस्लिम महिला अश्रीन सुल्ताना से हुई थी. इसके बाद सुल्ताना के परिवार ने कथित तौर पर दिनदहाड़े नागराजू की हत्या कर दी.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामले में, देश के 19 महानगरों में हैदराबाद पांचवे नंबर पर है.

शारीरिक हिंसा के भी अनगिनत मामले हैं, जिनमें से ज्यादातर सुर्खियों में नहीं आ पाए. इस साल सितंबर में, तेलंगाना के मंचेरियल जिले में 30 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर चिलुमुला किरण और भेड़ फार्म में 19 वर्षीय मजदूर कुक्कला तेजा को जलती लकड़ी के ऊपर उल्टा लटकाकर प्रताड़ित करने के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

तेलंगाना में दलित आबादी लगभग 17 प्रतिशत है, लेकिन जैसा कि वट्टिनागुलापल्ली में हुआ, ये गांवों में सामाजिक बहिष्कार के रूप में हर रोज जातिवाद का दुष्परिणाम झेल रहे हैं.

लेकिन चूंकि तेलंगाना में 30 नवंबर को चुनाव होने जा रहे हैं तो देखना जरूरी है कि राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणापत्रों में इसका कितना ध्यान रखा गया है?

तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

वो सड़क जो अंबेडकर प्रतिमा की ओर जाती है, जहां दलित परिवार रहते हैं.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

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पार्टियां जातीय हिंसा के बारे में बात क्यों नहीं करतीं?

तेलंगाना राज्य और जाति-विरोधी कार्यकर्ता प्रोफेसर सुजाता सुरेपल्ली ने द क्विंट को बताया, "जातिगत भेदभाव इस देश में शायद ही कभी एक राजनीतिक मुद्दा रहा है और यह बात तेलंगाना पर भी लागू होती है, जहां महत्वपूर्ण जाति-विरोधी और आदिवासी आंदोलन हुए हैं. इसे हमेशा दो समूहों के बीच एक व्यक्तिगत मुद्दे के रूप में देखा जाता है, लेकिन विडंबना ये है कि चुनाव यहां बहुत हद तक जाति पर आधारित हैं- उम्मीदवारों को उनकी जाति के आधार पर चुना जाता है."

प्रोफेसर सुरेपल्ली करीमनगर में सातवाहन विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं. उन्होंने कहा, "हालांकि यह एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है, लेकिन इसे कभी भी चुनावी एजेंडे या घोषणापत्र में शामिल नहीं किया जाता. ऐसे अत्याचारों के पीड़ितों को हमेशा ऐसे लोगों के रूप में देखा जाता है जिन्हें कुछ मुआवजे के साथ शांत किया जा सकता है. पार्टियां इसलिए शिक्षा, कानूनी सहायता और सम्मानजनक नौकरियों की पेशकश करके ऐसा कर सकती हैं. प्रणालीगत मुद्दे की तरफ कभी भी ध्यान नहीं दिया जाता."

नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से बात करते हुए, वट्टिनागुलापल्ली गांव के एक बीआरएस नेता, जो एससी समुदाय से हैं, ने स्वीकार किया कि "जातिगत अत्याचार यहां कोई चुनावी मुद्दा नहीं है."

उन्होंने कहा,

"यहां तक ​​कि पार्टियों के भीतर भी हमारे खिलाफ भेदभाव होता है. बोडराई की घटना के बाद, प्रमुख जाति के लोग हमें अपने साथ रैलियां निकालने भी नहीं देते. हम अपने इलाकों में प्रचार करते हैं, वे अपने इलाकों में प्रचार करते हैं."

राजनीतिक विशेषज्ञों ने बताया कि जातिगत अत्याचारों को संबोधित करना पार्टियों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है- क्योंकि वे प्रमुख जातियों द्वारा की गई हिंसा का जिक्र करके उन्हें परेशान करने का जोखिम नहीं उठा सकते. इसके बजाय, वे जाति को 'कल्याणवादी' या 'लोकलुभावन' दृष्टिकोण से देखते हैं.

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उदाहरण के लिए, सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (BRS) की प्रमुख दलित बंधु योजना, जो 2021 में तेलंगाना में हुजूराबाद उपचुनाव से पहले शुरू की गई थी, राज्य में पात्र दलित परिवारों को वित्तीय सहायता के रूप में 10 लाख रुपये देती है.

अपने दूसरे कार्यकाल में केसीआर ने दलितों तक पहुंच बनाने के लिए हैदराबाद में नए सचिवालय के बगल में 125 फीट ऊंची अंबेडकर प्रतिमा की स्थापना करवाई है.
तेलंगाना में चुनाव होने जा रहे हैं. जातीय विभाजन राज्य के कई हिस्सों में है लेकिन ये चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रहे.

हैदराबाद में 125 फुट ऊंची अंबेडकर प्रतिमा.

(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार/द क्विंट)

इस बीच, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में AHINDA* (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड़ में संक्षिप्त नाम) वोट ब्लॉक से मिले समर्थन से उत्साहित होकर, कांग्रेस ने तेलंगाना विधानसभा से पहले 12-सूत्री SC-ST घोषणापत्र जारी किया, जिसमें ये प्रस्ताव हैं-

  • अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 15 से बढ़ाकर 18 फीसदी किया जाएगा.

  • अंबेडकर अभय हस्तम योजना के तहत एससी-एसटी परिवारों को 12 लाख रुपये (दलित बंधु की तरह)

  • SC उप-वर्गीकरण का कार्यान्वयन

  • भूमिहीन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को मकान निर्माण के लिए भूखंड और 6 लाख रुपये का प्रावधान

बीजेपी भी लोकप्रिय मडिगा नेता मंदा कृष्णा मडिगा के साथ गठबंधन करके दलित वोटों को लुभाने में लगी है. तेलंगाना में एक नया राजनीतिक खिलाड़ी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) है. सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आरएस प्रवीण कुमार की अध्यक्षता वाली ये पार्टी रोजगार सृजन, भूमि स्वामित्व और शिक्षा के वादों के अलावा महिला श्रमिकों को मुफ्त स्मार्टफोन और वॉशिंग मशीन बांटने के वादे कर रही है.

प्रोफेसर सुरेपल्ली ने कहा, "जब हम कहते हैं कि जातिगत अत्याचारों पर ध्यान देने की  जरूरत  है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि हम कल्याणवाद (Welfarism) से लड़ रहे हैं. दलित बंधु जैसी योजनाओं के माध्यम से, समुदाय को केवल उनका उचित हिस्सा मिल रहा है- जिसके वे हकदार हैं और जिसके लिए उन्हें पीढ़ियों तक वंचित किया गया है. हालांकि, पार्टियां हमें वोट बैंक के रूप में देख सकती हैं, लेकिन कल्याणवाद भी महत्वपूर्ण है."

तो, कल्याणकारी योजनाएं तेलंगाना में दलित 'वोट बैंक' बनाएंगी या तोड़ देंगी?

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'दलित बंधु' प्रश्न

संयुक्त आंध्र प्रदेश में दलितों, पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों का कांग्रेस को समर्थन देने का इतिहास रहा है. हालांकि, तेलंगाना के गठन के बाद ये बदल गया. समुदायों ने तेजी से केसीआर का समर्थन किया है.

फुले-आंबेडकरवादी शोधकर्ता और राजनीतिक पर्यवेक्षक पल्लीकोंडा मणिकांता ने कहा, "केसीआर के पास अलग-अलग जाति संघों को एक साथ लाने की क्षमता है, यहां तक ​​कि उन गांवों में भी जहां ये रेखाएं बहुत मोटी हैं. वो एससी, एसटी और ओबीसी समूहों से मिलते रहते हैं. इस रिश्ते को बनाए रखना और उन्हें संगठित करना बहुत मुश्किल काम है."

लेकिन केसीआर की प्रतिष्ठित दलित बंधु योजना बिना मुश्किल के नहीं रही है, कई दलित समूहों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए दावा किया है कि उन्हें पिछले दो सालों में कोई लाभ नहीं मिला है, और योजना के लाभार्थियों को सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा "पक्षपातपूर्ण तरीके से" चुना जाता है.

इस महीने की शुरुआत में, एक 26 वर्षीय दलित व्यक्ति की कथित तौर पर खुदकुशी से मौत हो गई, जिसके बारे में कहा गया कि वो दलित बंधु लाभ नहीं मिलने से परेशान था.

वट्टीनागुलापल्ली में भी, कई निवासियों ने अपने तीन बार के बीआरएस विधायक (राजेंद्रनगर) टी प्रकाश गौड़ को 15 नवंबर को गांव में प्रवेश करने से रोक दिया था, और उनसे पूछा था कि उन्हें दलित बंधु और डबल-बेडरूम घरों का लाभ क्यों नहीं मिला.

गांव के बीआरएस नेता ने स्वीकार किया कि वट्टीनागुलापल्ली में दलित बंधु योजना को लेकर कुछ सत्ता विरोधी लहर है, लेकिन ग्रामीण स्तर के नेता इसे दरकिनार करने की "अपनी पूरी कोशिश" कर रहे हैं.

"कुछ गांवों में, स्थानीय नेता पांच परिवारों का एक ग्रुप बनाते हैं. 10 लाख रुपये का दलित बंधु धन केवल एक व्यक्ति को जा सकता है, लेकिन हम उस एक व्यक्ति को इसे पांच लोगों के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, इस तरह प्रत्येक व्यक्ति को 2 लाख रुपये मिल जाते हैं."
बीआरएस नेता नाम न छापने की शर्त पर बताया

उन्होंने द क्विंट को बताया, "इसे आधिकारिक तौर पर नहीं किया जाता है, लेकिन इसका उद्देश्य ज्यादा लोगों की मदद करना है."

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क्या केसीआर का करिश्मा मदद करेगा?

मणिकांत ने कहा कि भले ही प्रमुख योजना को लेकर दलितों में निराशा है, "यह डर है कि अगर कोई अन्य पार्टी सत्ता में आती है तो ये योजना बंद हो जाएगी." उन्होंने कहा, "इस बात को बीआरएस कार्यकर्ता प्रचार के दौरान हर घर तक ले जा रहे हैं."

केसीआर ने खुद हाल ही में सिद्दीपेट में एक रैली में दलित बंधु मुद्दे को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने एक भावनात्मक कहानी बुनी कि कैसे उस जिले में "दलित बंधु के बीज बोए गए"- और कैसे किसी को भी इस योजना से बाहर नहीं रखा जाएगा.

"केसीआर में भी यह करिश्मा है, जो उन्हें कुछ चीजों से बच निकलने में मदद करता है. तेलंगाना के गठन से पहले, उन्होंने कहा था कि राज्य का पहला मुख्यमंत्री एक दलित होगा. अपने पहले कार्यकाल के बाद, उन्होंने अपने वादे से पीछे हटना ये कहते हुए उचित ठहराया कि लोगों ने उन्हें दूसरा कार्यकाल दिया है."
पल्लीकोंडा मणिकांता

मणिकांत ने कहा, वो अपनी कल्याणकारी नीतियों और सोशल इंजीनियरिंग तंत्र के जरिए इस वैधता को बनाए हुए हैं. उन्होंने कहा, "केसीआर की अपील, अभिव्यक्ति और सोशल इंजीनियरिंग तकनीक, जाति अत्याचार जैसे मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनने से रोकती है. उदाहरण के लिए, यदि हिंसा का कोई मामला है, तब मुआवजा का वादा होगा. सामाजिक न्याय की 'उन्मूलन अवधारणा' इसी तरह काम करती है."

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