यूपी विधानसभा (UP Assembly Election 2022) के चुनाव परिणाम आने में अब कुछ ही घंटे शेष बचे हैं. अब उल्टी गिनती शुरू हो गई है कि अबकी बार यूपी में किसकी सरकार. हालांकि, 7 मार्च को आए एग्जिट पोल के नतीजों से तो यही समझ आ रहा कि सीएम योगी के नेतृत्व में बीजेपी दोबारा सरकार बना रही है. अगर एग्जिट पोल के आंकड़े 10 मार्च को नतीजों में तब्दील होते हैं तो ये चुनाव सीएम योगी को राष्ट्रीय पटल पर मोदी के बाद दूसरे सबसे बड़े लोकप्रिय नेता की कतार में खड़ा कर देगा. इसके साथ ही यूपी की सत्ता की कुर्सी पर दोबारा काबिज होने के बाद सीएम योगी के नाम कई रिकॉर्ड भी दर्ज हो जाएंगे.
तो आइए जानते हैं कि अगर सीएम योगी दोबारा यूपी की कुर्सी पर बैठते हैं तो उनके नाम कौन-कौन से रिकॉर्ड दर्ज होंगे.
यूपी के पहले CM होंगे जो कार्यकाल पूरा कर दोबारा सत्ता में आएंगे
भारत की आजादी के बाद यूपी में ऐसा पहली बार होगा जब कोई मुख्यमंत्री अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता पर काबिज होगा. भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अभी तक पिछले 70 साल के इतिहास में नहीं हुआ है. हालांकि, यूपी में ऐसे कई मुख्यमंत्री हुए जो दोबारा सत्ता में आए, लेकिन उन सबमें किसी ने भी अपने 5 साल के कार्यकाल को पूरा नहीं किया.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री संपूर्णानंद, चंद्र भानू गुप्ता से लेकर हेमवती नंदन बहुगुणा भी दोबारा सत्ता में काबिज हुए लेकिन, किसी का पहला कार्यकाल एक साल का था, तो किसी का 2 साल का था तो किसी का 3 साल का था. यानी कहने का मतलब ये है कि सीएम योगी यूपी के ऐसे पहले सीएम बनेंगे जो 5 साल का कार्यकाल पूरा कर दोबार कुर्सी पर बैठेंगे.
15 साल में विधायक के तौर पर पहला मुख्यमंत्री बनेंगे
यूपी में 29 अगस्त साल 2003 से लेकर 13 मई साल 2007 तक समाजवादी पार्टी की सरकार जिसके मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. मुलायम सिंह यादव ने साल 2004 में हुए उपचुनाव में गुन्नौर से रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज की थी. उसके बाद साल 2007 में यूपी विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें बसपा की सरकार बनी और प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं मयावती. लेकिन, मायावती ने साल 2007 से कहीं से चुनाव नहीं लड़ा था. ऐसे मुंख्यमंत्री बनने के लिए वो विधान परिषद से चुनकर आईं.
यही साल 2012 के चुनाव का भी हुआ. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और यूपी के सीएम के तौर पर अखिलेश यादव को कमान सौंपी गई. अखिलेश यादव भी उस समय कहीं से विधायक चुनकर नहीं आए थे. लिहाजा, विधान परिषद के रास्ते सीएम बने.
अब समय आता है साल 2017 विधानसभा का. इस विधानसभा में एसपी को मात देकर बीजेपी पूर्ण बहुत से सरकार बनाती है और सीएम बनते हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. उस समय योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद होते हैं. लिहाजा, मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें भी विधान परिषद का रास्ता ही अपनाना पड़ता है. हालांकि, इस बार वो गोरखपुर शहर से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. अगर फिर वो यहां से जीत जाते हैं, साथ ही बीजेपी की सरकार बनती है तो वो पिछले 15 साल में पहले व्यक्ति होंगे जो जनता के बीच से चुनकर आने वाले मुख्यमंत्री बनेंगे.
37 साल में सत्ता बरकरार रखने वाले पहले सीएम होंगे
यूपी में कांग्रेस के एनडी तिवारी 3 अगस्त साल 1984 को सीएम बने. इसके बाद मार्च साल 1985 में 9वीं विधानसभा के चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस 269 सीटों के साथ दोबार सत्ता में लौटी तो मुख्यमंत्री को तौर पर लौटे फिर से एनडी तिवारी. हालांकि, कांग्रेस में गुटबाजी के बाद 24 सितंबर 1985 को मुख्यमंत्री पद से हट गए. यानी कहने का मतलब ये है कि जिस व्यक्ति के मुख्यमंत्री रहते प्रदेश में चुनाव लड़ा गया वही, मुख्यमंत्री दोबारा सरकार में आया.
यही हाल सीएम योगी के साथ है. अगर बीजेपी दोबारा सरकार में आती है और सीएम योगी आदित्यनाथ बनते हैं तो पिछले 37 साल के इतिहास में पहला मौका होगा जब किसी सीएम के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया हो, जीता गया हो और वही दोबारा मुख्यमंत्री बना हो.
नोएडा अंधविश्वास तोड़ने वाले सीएम बनेंगे
नोएडा का अंधविश्वास यूपी की राजनीति में काफी लोकप्रिय है. कहा जाता है कि यूपी के जिस मुख्यमंत्री ने अपने कार्यकाल के दौरान शहर का दौरा किया वह अगला चुनाव हार गया है या अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका.
ऐसे में अगर यूपी में बीजेपी दोबारा आती है और योगी आदित्यनाथ कमान संभालते हैं तो ये भी राजनीति भ्रम टूट जाएगा. इस भ्रम को तोड़ने वाले मुख्यमंत्री बनेंगे योगी आदित्यानाथ. क्योंकि, सीएम योगी ने पीएम मोदी के साथ 25 दिसंबर, 2018 को दिल्ली मेट्रो की मैजेंटा लाइन का उद्घाटन करने के लिए नोएडा का दौरा किया था.
कब से लोकप्रिय है नोएडा अंधविश्वास
नोएडा का विवाद तब लोकप्रिय हुआ जब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को नोएडा से लौटने के कुछ दिनों बाद ही जून 1988 में पद छोड़ना पड़ा. उसके बाद वीर बहादुर सिंह के उत्तराधिकारी बने एनडी तिवारी. एनडी तिवारी भी नोएडा का दौरा करने के बाद सीएम की कुर्सी गंवा बैठे. इसके बाद, यूपी के सीएम और अन्य नेताओं ने नोएडा को दरकिनार करना शुरू कर दिया. यही वजह रही कि मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह यूपी के सीएम रहते कभी नोएडा नहीं गए.
हालांकि, इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में मायावती ने अक्टूबर 2011 में दलित स्मारक स्थल का उद्घाटन करने के लिए नोएडा के लिए उड़ान भरी थीं, लेकिन साल 2012 का विधानसभा चुनाव वह हार गईं. साल 2012 में यूपी के सीएम बने अखिलेश यादव. यादव तो इस अंधविश्वस को इतना मानने लगे कि उन्होंने नोएडा में आयोजित एशियाई विकास बैंक शिखर सम्मेलन तक को छोड़ दिया, जिसमें खुद पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह मुख्य अतिथि थे.
इतना ही नहीं अखिलेश यादव ने तो तब और हद कर दी जब नोएडा की बजाय लखनऊ से 165 किलोमीटर लंबे यमुना एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया. यही हाल राजनाथ सिंह ने भी किया था. अक्टूबर 2000 से मार्च 2002 के बीच यूपी के सीएम के रूप में, राजनाथ सिंह ने नोएडा के बजाय दिल्ली से दिल्ली-नोएडा-दिल्ली (DND) फ्लाईवे का उद्घाटन किया था.
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