मशहूर अभिनेता, नाटककार, फिल्मकार, साहित्यकार, लेखक गिरीश कर्नाड ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 10 जून की सुबह गिरीश कर्नाड ने बेंगलुरू में आखिरी सांस ली. उनके निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया, गिरीश कर्नाड की जिंदगी को कुछ शब्दों में बयां करना आसान नहीं है, उन्होंने अपने 81 साल के जीवन में जो उपलब्धियां हासिल कीं वो बहुत कम लोगों को मिलती हैं.
गिरीश कर्नाड को कई कलाओं में महारत हासिल थी. अदाकारी, निर्देशन, लेखन. उनके लिखे नाटकों का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. गिरीश कर्नाड को साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ज्ञानपीठ भी मिल चुका है.
बचपन में ही थियेटर से जुड़े
गिरीश कर्नाड को बचपन से ही थियेटर का शौक था, उनके पिता भी थियेटर में काफी रूचि रखते थे. उनके पिता अक्सर घर पर थियेटर की बातें करते, जो गिरीश कर्नाड को बहुत पसंद आती थीं. धीरे-धीरे वो खुद थियेटर से जुड़ने लगे और स्कूल के दौरान ही वो नाटकों में हिस्सा लेने लगे.
अमेरिका से नौकरी छोड़कर भारत आए
गिरीश कर्नाड जब 14 साल के थे तब उनका परिवार कर्नाटक के धारवाड़ में शिफ्ट हो गया था. उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक ऑर्ट्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. ग्रेजुएशन के बाद वो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के लिए गए. वो 1963 में ऑक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट भी चुने गए. इंग्लैंड के बाद कर्नाड अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ शिकॉगो में पढ़ाने भी लगे. लेकिन कुछ वक्त तक टीचिंग के बाद उनका मन नहीं लगा तो आखिर में सबकुछ छोड़कर अपने वतन लौट आए.
एक खत ने बदल दी कर्नाड की जिंदगी
गिरीश कर्नाड के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि उन्होंने 17 साल की उम्र में आयरिश लेखक सीन ओ कैसी का स्केच बनाकर उन्हें भेजा था. उनका स्केच देखकर कैसी ने उन्हें लेटर भेजा, जिसमें लिखा था कि ये सब करके अपना वक्त मत जाया करो. कुछ ऐसा काम करो कि लोग तुम्हारा ऑटोग्राफ मांगे. इस खत ने गिरीश कर्नाड की जिंदगी बदल दी.
1961 में गिरीश कर्नाड ने अपना पहला नाटक ‘ययाति’ लिखा. उनका लिखा एक और नाटक ‘तुगलक’ खूब मशहूर हुआ. इस नाटक का कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया. उनकी रचनाओं में एक तरफ पुरातन भारत की झलक दिखती थी, तो वहीं दूसरी तरफ आधुनिकता की भी छाप होती थी.
कन्नड़ फिल्म ‘संस्कार’ से शुरुआत
गिरीश कर्नाड ने कन्नड़ फिल्म संस्कार से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की. उनकी पहली फिल्म को गोल्डन लोटस अवॉर्ड मिला. उनकी मशहूर कन्नड़ फिल्मों में तब्बालियू मगाने, ओंदानोंदु कलादाली, चेलुवी कादु और कन्नुड़ु हेगादिती हैं.
गिरीश कर्नाड ने मेरी जंग, अपने पराये, भूमिका, एक था टाइगर और टाइगर जिंदा है जैसी हिंदी फिल्मों में भी अहम किरदार निभाए. नागेश कुकुनूर की फिल्म इकबाल में भी वो अहम भूमिका में थे. गिरीश कर्नाड को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया था. उन्होंने चार फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीते.
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