स्टारडम, शोहरत और ग्लैमर के चकाचौंध से भरी बॉलीवुड इंडस्ट्री की दुनिया बाहर से जितनी चटख रंगीन और शोख नजर आती है, असलियत में और अंदरूनी तौर पर उसका स्याह पहलू भी है, जो अमूमन इस चकाचौंध में छिपा ही रहता है. यहां उगते सूरज की ही इबादत की जाती है, और किसी सितारे की चमक फीकी पड़ते ही उसे बड़ी बेरुखी से भुला दिया जाता है.
बॉलीवुड में अलग-अलग दौर में ऐसे कई कलाकार आए, जिन्होंने अपने करियर के शुरुआती दौर में तो खूब शोहरत हासिल की, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे इंडस्ट्री ने उन्हें इस कदर भुला दिया, कि वे गुमनामी के अंधेरे में जिंदगी जीने को मजबूर हो गए. न किसी को उनकी खबर थी, न किसी को फिक्र.
सतीश कौल
हाल ही में खबर आई थी कि बॉलीवुड, टेलीविजन और पंजाबी सिनेमा के मशहूर एक्टर सतीश कौल इन दिनों बीमारी और बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं. एक दौर था जब सतीश कौल को 'पंजाबी सिनेमा के अमिताभ बच्चन' के तौर पर पहचाना जाता था. लेकिन पिछले कुछ समय से वे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं और चोटिल होने के बाद से उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया.
हालांकि गनीमत ये है कि मीडिया में ये बात सामने आने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनकी सुध ली, और उनकी मदद को आगे आए.
राज किरण
अर्थ, प्यार का मंदिर, कर्ज, घर हो तो ऐसा, तेरी मेहरनबानियां, बसेरा, बुलंदी जैसी फिल्मों में काम कर चुके राज किरण 90 के दशक के बाद बॉलीवुड से गायब हो गए थे. एक दशक से भी ज्यादा समय तक किसी ने उनकी सुध नहीं ली कि वे कहां हैं और किस हालत में हैं. इस दौरान राज किरण की मौत की अफवाह भी उड़ी.
साल 2011 में फिल्म कर्ज में राज किरण के साथ काम कर चुके ऋषि कपूर जब राज किरण के भाई गोविंद मेहतानी से मिले तो पता चला कि राज पिछले दस साल से अमेरिका के अटलांटा में एक पागलखाने में भर्ती है. बताया गया कि राज किरण को उनकी पत्नी और बेटे ने धोखा दिया था, तब से वे डिप्रेशन में चले गए थे और अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे.
परवीन बाबी
70 के दशक में बॉलीवुड में परवीन बाबी की क्या अहमियत थी, इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 1976 में टाइम मैगजीन ने अपने कवर पेज पर उन्हें जगह दी थी. अपने बोल्ड और बिंदास इमेज से परवीन ने उस दौर में अपनी अलग पहचान बनाई थी. 1983 में परवीन बाबी ने बॉलीवुड का दामन छोड़ दिया और थोड़े समय तक बैंगलोर में रहने के बाद अमेरिका चली गईं. 1989 में वो भारत लौट आईं.
परवीन ने शादी नहीं की थी. लिहाजा जिंदगी में अकेलेपन और डिप्रेशन ने उन्हें जल्द ही अपनी आगोश में ले लिया. कामयाबी की बुलंदी हासिल करने के बाद परवीन ‘स्कीजोफ्रेनिया’ नाम के मनोरोग का शिकार हो गईं.
एक जमाने में सबके दिलों पर राज करने वाली परवीन दुनिया से ऐसे विदा हुई कि किसी को कुछ पता ही नहीं चला. साल 2005 में मुंबई में उनके फ्लैट के बाहर जब दूध और अखबार पड़े देखा गया, तो आसपास के लोगों ने दरवाजा खुलवाया. परवीन अपने घर में मृत पाई गईं.
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मंदाकिनी
राज कपूर के निर्देशन में 1985 में आई फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' ने मंदाकिनी को रातों-रात स्टार बना दिया. फिल्म में एक बोल्ड सीन था, जिसमें वो सफेद साड़ी पहने झरने के नीचे नहाती हैं. इस सीन ने उन्हें बॉलीवुड की नई ग्लैमर गर्ल बना दिया, और उन्होंने एक के बाद एक कई हिट फिल्में की. लेकिन ये सितारा जितनी तेजी से चमका, उतनी ही जल्दी कहीं ओझल भी हो गया.
1993 में मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद इस आतंकी हमले का मास्टर माइंज दाऊद इब्राहिम भारत से भाग चुका था. 1994 में शारजाह में एक क्रिकेट मैच के दौरान दाऊद के साथ मंदाकिनी की तस्वीरें सामने आयीं. दोनों के अफेयर की चर्चा जोरों पर थी, हालांकि मंदाकिनी ने हमेशा इससे इंकार करते हुए कहा कि दाऊद से उनका रिश्ता सिर्फ दोस्ती तक था.
ब्लास्ट केस में मंदाकिनी से भी पुलिस पूछताछ हुई. उन्हें क्लीन चिट तो मिल गई, लेकिन इसके बाद उन्हें बॉलीवुड में काम मिलना बंद हो गया. आखिरी बार उन्हें साल 1996 में फिल्म 'जोरदार' में देखा गया. इसके बाद मंदाकिनी बॉलीवुड से गायब हो गईं. कई सालों तक उनकी कोई खोज-खबर नहीं मिली. तब ये कहा जाने लगा कि वो दाऊद के साथ दुबई में रहती हैं.
फिलहाल मंदाकिनी मुंबई में ही रहती हैं. शादीशुदा हैं, एक बेटी की मां हैं, और फिल्मों की चकाचौंध से दूर एक तिब्बतियन हर्बल सेंटर चलाती हैं. साथ ही तिब्बतियन योगा भी सिखाती हैं.
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नकुल कपूर
साल 2002 में आई फिल्म 'तुमसे अच्छा कौन है' से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाले एक्टर नकुल कपूर को भले ही आज कोई याद न करता हो, लेकिन एक वक्त था जब लड़कियां पहली ही फिल्म के बाद इस चॉकलेट ब्वॉय की दीवानी हो गई थीं. लेकिन नकुल कब लाइमलाइट में आए और कब गुमनामी में खो गए, पता ही नहीं चला. बीच में इतने साल गुजर गए, लेकिन नकुल का कोई अता-पता नहीं था. एक बार मीडिया में उनकी मौत की अफवाह भी उड़ी.
पिछले साल पता चला कि नकुल अब भारत में नहीं रहते. वे कनाडा के वैंकुअर में योगा इंस्टीट्यूट चलाते हैं, जहां वे खुद योगा इंस्ट्रक्टर भी हैं.
अनु अग्रवाल
1990 में आई सुपरहिट फिल्म 'आशिकी' ने राहुल रॉय और अनु अग्रवाल को घर-घर में पहचान दिलाई. हालांकि इस फिल्म में बाद वो कुछ और फिल्मों में भी दिखीं, लेकिन जो कामयाबी उन्हें 'आशिकी' ने दी, वो किसी और फिल्म ने नहीं दी. मासूम सी सूरत और 'गर्ल नेक्स्ट डोर' इमेज वाली अनु का फिल्मी सफर ज्यादा वक्त तक नहीं चला. 1996 तक आते -आते अनु बड़े पर्दे से गायब हो गईं और उन्होंने अपना रुख योग और अध्यात्म की तरफ कर लिया.
साल 1999 में अनु के साथ एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने उनकी पूरी जिंदगी ही पलट दी. एक सड़क दुर्घटना ने न सिर्फ उनकी याददाश्त पर असर डाला, बल्कि पैरालिसिस ने उन्हें चलने- फिरने में भी अक्षम कर दिया.
29 दिनों तक कोमा में रहने के बाद जब अनु होश में आईं, तो वह खुद को पूरी तरह से भूल चुकी थी. फिर धीरे-धीरे ट्रीटमेंट के जरिए उनकी लाइफ वापस पटरी पर लौट सकी. अब ग्लैमर की दुनिया से दूर अनु झुग्गी-झोपड़ी के गरीब बच्चों को फ्री में योगा सिखाती हैं.
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