अंकुर, मंडी, भूमिका, जुनून, मंथन और तमस जैसी फिल्मों को संगीत दे चुके म्यूजिक डायरेक्टर वनराज भाटिया इन दिनों तंगहाली में दिन गुजार रहे हैं. वनराज का कहना है कि उनके बैंक अकाउंट में एक रुपये भी नहीं है.
मुंबई मिरर की एक रिपोर्ट के मुताबिक वनराज बढ़ती उम्र और बिजी वर्कलाइफ से अलग होने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए हैं. वनराज साल 1988 में फिल्म ‘तमस’ के लिए बेस्ट म्यूजिक का नेशनल अवॉर्ड और साल 2012 में पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजे जा चुके हैं. वनराज का कहना है-
मैरे बैंक अकाउंट में एक रुपये भी नहीं है. मेरी याददाश्त कम हो गई है, सुनने में परेशानी होती है और घुटनों में दर्द की शिकायत रहती है. उनका सहारा सिर्फ घर में काम करने वाले डोमेस्टिक हेल्प है.
वनराज का कहना है कि वो अपनी तंगहाली से इतने मजबूर हो गए हैं कि उन्हें क्रॉकरी और घर का सामान बेचना पड़ रहा है.
वनराज के साथ रह रहे उनके डोमेस्टिक हेल्प का कहना है कि, लंबे वक्त से वनराज का कोई मेडिकल चेकअप नहीं हुआ है. इसलिए ये बता पाना थोड़ा मुश्किल है कि आज की तारीख में उनकी मेडिकल कंडीशन क्या है.
भाटिया के कुछ दोस्त और फैंस उनकी देखभाल कर रहे हैं. डोनेशन से जमा किए गए पैसों से भाटिया का गुजारा चल रहा है. लेकिन उनका गुजारा चलाने के लिए ये रकम काफी नहीं है.
भाटिया के कामों में कुंदन शाह की फिल्म ‘जाने भी दो यारो’, अपर्णा सेन की 36 चौरंगी लेन, और प्रकाश झा की हिप हिप हुर्रे जैसी फिल्में शामिल हैं. अंकुर (1974) से सरदारी बेगम (1996) तक, वह श्याम बेनेगल के पसंदीदा संगीतकार थे. दोनों ने मंथन, भूमिका, जूनून, कलयुग, मंडी, त्रिकाल और सूरज का सावन घोड़ा समेत कई फिल्मों पर एक साथ काम किया.
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