(इस आर्टिकल को सबसे पहले 3 मई 2018 को प्रकाशित किया गया था. नरगिस के जन्मदिन पर इसे दोबारा पब्लिश किया गया है.)
एक बार इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के महान एक्टर राज कपूर उस जमाने की मशहूर क्लासिकल सिंगर जद्दनबाई से मिलने उनके घर पहुंचे, दस्तक देने पर दरवाजा खुला, तो सामने खड़ी उस हसीन लड़की के चेहरे के नूर को बस एक टक देखते रह गए. उसने अपनी नाजुक सी उंगलियों से जुल्फों को सहेजा तो हाथों में लगा बेसन माथे पर लिपट गया. कहते हैं ये राज कपूर के लिए नरगिस का पहला दीदार था. बाद में राज कपूर ने इसी सीन को हुबहू फिल्म बॉबी में डिंपल कपाड़िया पर फिल्माया.
नरगिस रुपहले पर्दे की वो महान अदाकारा जिसने हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरती और अदाकारी से दर्शकों के जहन में अपनी छाप छोड़ दी.
फातिमा राशिद ...जिन्हें फिल्मी दुनिया ने नरगिस के नाम से पहचान दी. उनका जन्म 1 जून 1929 को कोलकाता में हुआ. उनके पिता उत्तम चंद मोहन चंद पेशे से डॉक्टर थे. उन्होंने इस्लाम धर्म कबूल किया और उनका नाम अब्दुल रशीद हो गया. मां जद्दनबाई भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारंगत गायिका थी. उनका परिवार आजादी के बाद पाकिस्तान से चलकर इलाहाबाद आ बसा.1935 में 6 साल की नन्हीं उम्र में बेबी नरगिस ने फिल्म ‘तलाश-ए-हक’ में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपने फिल्मी सफर शुरूआत की. 14 साल की उम्र में 1942 में बनी फणि मजूमदार की फिल्म तमन्ना में भी खास किरदार निभाया.
देवआनंद ,दिलीप कुमार ,राज कपूर जैसे मशहूर कलाकारों के साथ उनकी जोड़ी को खूब पसंद किया गया.
जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो, चोरी चोरी मेरे दिल में समाते हो.. यह तो बताओ कि तुम, मेरे कौन हो’, शायद नरगिस और राज कपूर की करीबी का सिलसिला शायद ऐसे ही किसी गीत के इर्द-गिर्द शुरू हुआ होगा और फिल्म श्री 420 के ‘ प्यार हुआ इकरार हुआ, तक जा पहुंचा.
कहते हैं कि नरगिस राज कपूर से शादी करना चाहती थी जो पहले से ही शादीशुदा थे. कश्मकश के बाद राज कपूर ने अपनी पत्नी को तलाक देने से मना कर दिया, दोनों के रिश्ते ने यहीं दम तोड़ दिया और आगे के सफर में नरगिस अकेली हो गई. और इसी अकेलेपन ने उन्हें डिप्रेशन की तरफ धकेल दिया.
किसी को हो ना हो किस्मत को अपना रास्ता मालूम होता है. 1957 में आई महबूब खान की ‘मदर इंडिया जिसने नरगिस को अमर कर दिया. उस दौर मे मदर इंडिया ने ऑस्कर अवार्ड्स नॉमिनेशन में जगह बनाई, और नरगिस को नेशनल अवार्ड से नवाजा गया.
इसे भी शायद किस्मत ही कहगेें..इसी मोड़ पर नरगिस की मुलाकात सुनील दत्त से हुई, दिलीप कुमार के मना करने के बाद सुनील दत्त ने इस फिल्म में हीरो का किरदार निभाया. कहते हैं शूटिंग के दौरान सेट में आग लग गई जिसमें नरगिस बुरी तरह फंस गई थीं, सुनील दत्त ने अपनी जान पर खेलकर नरगिस को बचा लिया पर खुद इस हादसे में घायल हो गए थे. यहां से नरगिस और सुनील दत्त के रिश्ते की शुरुआत हुई. जो आगे चलकर 1958 में शादी के बंधन में बदल गई.
किसी इंटरव्यू में सुनील दत्त ने कहा था"
जिस तरह उन्होंने मेरी बीमार बहन का ख्याल रखा और इलाज कराया. मैंने उनमें एक जीवनसाथी को देखा. मैंने उन्हें काफी पहले से पसंद करता था, आखिरकार हिम्मत कर के प्रपोज किया और उन्होंने हां कर दी”.
शादी के बाद में नरगिस का नाम निर्मला दत्त हो गया. दो बेटियां नम्रता और प्रिया, और बेटे संजय दत्त को जन्म दिया. जो आज हिंदुस्तान में मशहूर नाम है. शादी के बाद नरगिस ने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया. और समाज सेवा से जुड़ गईं. 1980 मे उन्हें राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया गया. उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाजा.
इसी दौरान नरगिस को अचानक कैंसर की बीमारी ने घेर लिया. जिस के इलाज के लिए वो अमेरिका रहीं, वापस लौटने पर अचानक कोमा की स्टेज में चली गई. नरगिस का एक ही सपना था कि वे अपने बेटे संजय दत्त को फिल्मी पर्दे पर देख सके, लेकिन संजय की फिल्म रॉकी के रिलीज होने के 3 दिन पहले 3 मई 1981 को नरगिस ने दुनिया से नाता तोड़ लिया.
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