पीएम नरेंद्र मोदी बायोपिक पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में अपना पक्ष रखा है. अब इस मामले में 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में फैसला आएगा. चुनाव आयोग ने 17 अप्रैल को ये फिल्म देखी थी, जिसके बाद उन्होंने अपना पक्ष रखा है.
फिल्म मेकर्स की तरफ से ये मांग की गई थी कि चुनाव आयोग एक बार फिल्म देख ले, उसके बाद फैसला ले. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि एक बार फिल्म देखें फिर कोई फैसला करें. ये फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी, लेकिन रिलीज से एक दिन पहले चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद फिल्म के मेकर्स ने फिल्म से रोक हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी थी.
चुनाव आयोग ने फिल्म रिलीज पर लगाई थी रोक
सेक्शन 126 (1) रिप्रजेंटेटिव ऑफ द पिपल एक्ट के तहत पीएम मोदी की बायोपिक पर रोक लगाई गई थी. इसके तहत बताया गया था कि किसी भी तरह का चुनावी कंटेंट, चाहे वो सिनेमा के जरिए हो, टीवी के जरिए या फिर ऐसे किसी माध्यम से प्रसारित नहीं किया जा सकता है.
हालांकि, 'पीएम नरेंद्र मोदी' को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) की ओर से 'यू' सर्टिफिकेट दिया गया था.
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सुप्रीम कोर्ट ने भी एक याचिका पर कहा था कि अगर फिल्म चुनावी बैलेंस को बिगाड़ रही है और किसी एक पॉलिटिकल पार्टी के पक्ष में है तो इस पर चुनाव आयोग को संज्ञान लेना चाहिए. इसमें कहा गया था कि अगर फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज होनी है तो चुनाव आयोग को सभी परिस्थितियों को देखते हुए इस पर फैसला लेना चाहिए. जिसके बाद चुनाव आयोग ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगा थी.
विपक्षी पार्टियों को था फिल्म पर ऐतराज
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षियों पार्टियों ने फिल्म की रिलीज रोकने की मांग की थी. विपक्ष का आरोप है कि ये फिल्म एक प्रोपगेंडा फिल्म है, जिसका मकसद बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रचार करना है.
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