कहते हैं फिल्मों में ना तो कोई किसी का दोस्त होता है और ना ही दुश्मन. यहां सारे रिश्ते सिर्फ काम और मतलब के होते हैं. जिससे जिसका मतलब वो उसके साथ, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है. चमकदार सिनेमा के गलियारे में कुछ ऐसे किस्से भी मिलेंगे जहां सिर्फ प्यार था, मोहब्बत और दोस्ती थी. आखिरी सांस तक साथ रहने वाली दोस्ती. हम बात कर रहे हैं मशहूर और मारूफ अदाकार, प्रोडूसर, डायरेक्टर राज कपूर (Raj Kapoor) और गीतकार शैलेन्द्र (Shailendra) की अटूट दोस्ती के अफसाने की.
कैसे शुरू हुआ दोस्ती का सफर?
बात 40 के दशक की है. दोनों की मुलाकात एक मुशायरे के दौरान हुई थी, जहां शैलेंद्र 1947 के दर्दनाक बंटवारे पर अपनी कविता 'जलता है पंजाब' सुना रहे थे. राज कपूर को शैलेंद्र की यह कविता बेहद पसंद आई.
मुशायरे के बाद उन्होंने शैलेन्द्र से मुलाकात की और उनसे इस कविता को खरीदने की बात कही, क्योंकि वह इसे अपनी पहली डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म 'आग' (1948) में इस्तेमाल करना चाहते थे. साथ ही उन्होंने शैलेंद्र को फिल्म के दूसरे और गीत लिखने का ऑफर दिया.
शैलेंद्र ने अपनी कविता बेचने से मना कर दिया और फिल्म का ऑफर भी बड़ी शालीनता से ठुकरा दिया. शैलेन्द्र उन दिनों भारतीय रेलवे (Indian Railway) में काम करते थे.
इसके बाद परिस्थितियां कुछ ऐसी बदलीं कि शैलेन्द्र की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी. उनके घर में नन्हा मेहमान आने वाला था इसलिए आर्थिक स्थिरता बेहद जरूरी थी. उन दिनों राज कपूर साहब फिल्म 'बरसात' (1949) पर काम कर रहे थे.
शैलेन्द्र ने उनसे मुलाकात की और उनके साथ काम करने की ख्वाहिश जताई, तो राज कपूर साहब काफी खुश हुए. उस वक्त तक फिल्म के दो गीत नहीं लिखे गए थे. शैलेन्द्र ने फिल्म के दो गीत 'बरसात में' और 'पतली कमर' लिखे जो सुपर हिट हुए. इस फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन ने तैयार किया था.
दोस्तों का सफर
शैलेन्द्र और राज कपूर की दोस्ती का सफर ‘बरसात’ फिल्म से शुरू हुआ. शैलेन्द्र को बरसात फिल्म के गीत लिखने के लिए 500 रुपये का मेहनताना दिया गया था. उन दिनों राज कपूर की फिल्मों में एक टीम के तौर पर शंकर जयकिशन संगीत दिया करते थे, आवाज मुकेश की होती थी और गीत हसरत जयपुरी लिखा करते थे.
शैलेन्द्र ने अपने आगमन से इस टीम को और मजबूती दी. शैलेन्द्र की शंकर जयकिशन से भी काफी अच्छी दोस्ती हो गयी थी. एक बार दोनों में किसी बात को लेकर मनमुटाव हो गया और शंकर जयकिशन ने किसी और गीतकार से अपनी फिल्मों में गीत लिखने के लिए अनुबंधित कर लिया. यह बात जब शैलेन्द्र को पता चली तो उन्होंने शंकर जयकिशन को एक नोट भेजा, जिसमें उन्होंने लिखा- 'छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते, तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल'
नोट पढ़ते ही अनबन खत्म हो गयी. इन दोस्तों का साथ कभी नहीं टूटने वाला था और उन्होंने मिलकर कई अमर गीत दिए, जो आज भी बहुत ही चाव से सुने जाते हैं.
‘वाह पुष्किन! दिल खुश कर दिया...क्या गीत लिखा है!’
वक्त के साथ राज कपूर का शैलेंद्र की दोस्ती और गहरी होती चली गयी. राज कपूर और शैलेंद्र को लोग प्यार से ‘पुष्किन’ या ‘कविराज’ बुलाया करते थे.
दोनो ने लगभग 21 फिल्मों में साथ काम किया, जिनमें 'मेरा नाम जोकर', 'तीसरी कसम', 'सपनों का 'सौदागर', 'संगम', 'अनाड़ी' और 'जिस देश में गंगा बहती है' जैसे गाने शामिल हैं.
जब फिल्म ‘अनाड़ी’ (1959) का एक गाना 'सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी...' रिकॉर्ड किया जा रहा था और यह गीत राज कपूर के पसंदीदा शैलेंद्र ने ही लिखा था. उस दिन कहीं और बिजी होने की वजह रिकॉर्डिंग में नहीं आ सके थे. जब वह स्टूडियो पहुंचे तो ये गीत मुकेश की आवाज में रिकॉर्ड किया जा चुका था.
राज कपूर को ये गीत काफी पसंद आया और वह इसकी कॉपी अपने घर ले गए, जिससे उसे सुकून से सुन सकें. घर जाकर उन्होंने कई-कई बार उस गीत को सुना लेकिन आखिरी में उनसे ना रहा गया तो वह शैलेन्द्र के घर पहुंच गए. वहां राज कपूर ने शैलेन्द्र को गले लगा कर कहा- वाह पुश्किन! दिल खुश कर दिया, क्या गीत लिखा है. इतना कहने के बाद दोनों दोस्त फूट-फूटकर रोने लगे.
14 दिसंबर: जब खुशी मातम में बदल गयी
14 दिसंबर 1966 को राज कपूर अपना जन्मदिन मना रहे थे, तो शैलेन्द्र साहब खराब स्वस्थ्य की वजह से अस्पताल में भर्ती थे. तब सिंगर मुकेश ने फोन करके यह खबर दी कि शैलेन्द्र की हालात नाजुक है. अभी मुकेश राज कपूर को फोन पर ये जानकारी दे ही रहे थे कि शैलेन्द्र कोमा में चले गए. फिर तो शैलेन्द्र की हालत बिगड़ती ही चली गयी.
इसके बाद उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट दिया गया, ब्लड ट्रांस्फ्यूजन किया गया लेकिन वह मनहूस खबर आयी जिसने राज कपूर का दिल तोड़कर रख दिया. राज कपूर के जन्मदिन के दिन ही 43 साल की उम्र में अपनी शायरी को सीधे सीधे अंदाज में कहने वाला ये शायर इस दुनिया-ए-फानी से रुख्सत हो गया.
शैलेन्द्र के यूं अचानक चले जाने से राज कपूर को गहरा सदमा लगा था और फिल्मफेयर मैगजीन में उन्होंने एक ओपन लेटर लिखा. इसमें उन्होंने शैलेंद्र को याद करते हुए लिखा...
‘मेरी रूह का एक हिस्सा दुनिया से चल बसा. मेरे लिए ये बिलकुल भी सही नहीं हुआ है. मैं चीख रहा हूं, रो रहा हूं. मेरे बागीचे के सबसे सुंदर गुलाब को कोई तोड़ ले गया. शैलेन्द्र एक नेक दिल इंसान था. अब वो चला गया और रह गई हैं तो सिर्फ उसकी यादें, जो कभी भुलाई नहीं जा सकती. वह अपने गीतों के साथ हमेशा हमारे साथ रहेंगे.’
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