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स्वर्ग से बनकर आई थी ऋषि-नीतू की जोड़ी, परी-कथाओं जैसा था रोमांस

नीतू की ऋषि से मुलाकात जब हुई तो वो 14 बरस की थीं

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वो जवां दिलों की धड़कन थी. वो सपनों का राजकुमार था. वो चुलबुले थे... शरारती थे... क्यूट थे... वो दोनों जब पर्दे पर आते थे, तो रोमांस के देवता आसामान से फूल बरसाते थे. उन्हें देखने के लिए लोग अपनी घड़ियां बेचकर ब्लैक में टिकट खरीदते थे. वो बॉलीवुड की सबसे प्यारी और रोमांटिक जोड़ी थे. वो नीतू और ऋषि थे.

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बचपन की मुलाकात से मोहब्बत के सफर तक

नीतू की ऋषि से मुलाकात जब हुई तो वो 14 बरस की थीं. मधु जैन की किताब कपूरनामा में नीतू बताती हैं-

मैने चिंटू को तब जाना जब हम चार-पांच बरस तक स्टूडियो का रास्ता साथ-साथ तय किया करते थे. हम दोस्त थे. उनके कई लड़कियों से चक्कर थे. वो अपनी सहेलियों से मेरी बात करवाया करते थे ,या मैं इनकी ओर से उन्हें फोन कर लिया करती थी.

जब मैं 17 साल की थी और हम एक साथ शूटिंग कर रहे थे, तो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें मेरी कमी खल रही है.

मैने जवाब दिया- क्या बेकार की बात कर रहे हो?

उन्होंने अपने जूते उतारे और कहा कि देखो मैंने अपने अंगूठे नहीं चढ़ा रखे हैं.

जब मैं 18 बरस की हुई तो उन्होंने यह कहकर मेरे गले में एक चाबी पहना दी कि वो मेरे दिल पर ताला लगाने के लिए है. वह हर जगह मेरे साथ जाया करते थे.

एक बार ताज में खाना खाने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा- क्या तुम शादी करना चाहती हो?

मैने कहा- हां.. लेकिन किससे करूं?

उनका जवाब था- बेशक मुझसे, और किससे?

मैंने उन्हें कह दिया कि पहले मैं अपनी रुकी हुई फिल्में पूरी करूंगी.

सगाई या परी-कथा का कोई सीन?

नीतू-ऋषि की सगाई सूरज बड़जात्या की किसी फिल्म के सीन की तरह थी. नीतू बताती हैं,

“13 अप्रैल 1979 को दिल्ली में उद्योगपति अनिल नंदा, राजेंद्र कुमार की बेटी के साथ सगाई कर रहे थे. इस सगाई के लिए रितु नंदा (राज कपूर की बेटी) मुझे दावत दे चुकी थीं. राज कपूर और उनका परिवार मेरे पहुंचने का इंतजार कर रहे थे. रितु ने ऋषि को जबरदस्ती पकड़ लिया और कहा- अब इससे सगाई करो. रितु ने एक हीरे की अंगूठी का भी जुगाड़ किया और वो मुझे दे दी गई. ये बिलकुल किसी परी की कहानी जैसा था.”
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रील लाइफ से रियल लाइफ तक

1980 में शादी का फैसला करने से पहले दोनों दर्जन भर फिल्में साथ कर चुके थे. दर्शकों ने इस जोड़ी को सर-आंखों पर बिठाया. रोमांटिक संगीत और जिंदादिली से लबरेज नीतू-ऋषि की फिल्में उस दौर में आईं जब सिनेमा में हिंसात्मक फिल्मों का चलन बढ़ रहा था. साल 1975 में दोनों ने ‘खेल खेल में’, ‘रफूचक्कर’ और ‘जिंदादिल’ कीं.

अगले ही साल अमिताभ, शशि कपूर और राखी के साथ यश चोपड़ा की ‘कभी-कभी’ आई. 1977 में ‘अमर अकबर एंथनी’ जैसी मल्टीस्टारर के साथ नीतू-ऋषि की एक अहम फिल्म आई ‘दूसरा आदमी’. ये एक संवेदनशील फिल्म है, जो तीस बरस की शादीशुदा महिला और एक कम उम्र नौजवान के आपसी रिश्तों की बारीक पड़ताल करती है. शादीशुदा महिला के रोल में राखी थीं और युवा जोड़े के रोल में नीतू-ऋषि.

उसके बाद ‘झूठा कहीं का’, ‘दुनिया मेरी जेब में’ जैसी फिल्मों की फेहरिस्त है, जिसने 70 के दशक का दूसरा हिस्सा नीतू और ऋषि कपूर के नाम ही कर दिया था.

बनते-बिगड़ते रिश्ते!

90 के दशक में दोनों के रिश्तों में कुछ कड़वाहट आईं. यहां तक कि नीतू अपना घर छोड़कर एक दोस्त के घर रहने चली गईं. लेकिन साल 2000 में वो लौट आईं. साल 2009 में दोनों इम्तियाज अली की फिल्म ‘लव आज कल’ में एक साथ पर्दे पर फिर नजर आए.

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(इस लेख के लिए तथ्य मधु जैन की किताब कपूरनामा से लिए गए हैं जिसका हिंदी संस्करण पेंगुइन बुक्स ने पब्लिश किया है.)

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