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Millennials Review Classics:‘सड़क’ में रूमानी गाने और दुख ही दुख 

रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद भी रुलाई नहीं आई

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फिल्मसड़क 2आ रही है. 1991 में आई रोमांटिक थ्रिलर ‘सड़क’ का सीक्वल. आने वाली फिल्म में एक्साइटिंग ये है कि इस फिल्म से महेश भट्ट डायरेक्शन की दुनिया में वापसी कर रहे हैं. दूसरा, टाइम गैप. 27 सालों बाद ये सीक्वल आ रहा है. तीसरा, फिल्म के लीड में आलिया भट्ट और आदित्य राॅय कपूर होंगे. बाकी , फिल्म आने के बाद पता चलेगा.

लेकिन सड़क में एक्साइटिंग क्या था ये जानने के लिए मैंने फिल्म देखी. बता दूं ये मेरे पैदा होने से पहले बनी फिल्म है. 1991 में ये बाॅक्सआॅफिस पर सुपरहिट और उस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी.

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फिल्म देखनी शुरू ही की थी, जब तक कैरेक्टर्स के नाम याद होते गाना शुरू हो जाता है... ‘रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं..’

इस फिल्म को अंत तक इसलिए भी देख पाई क्योंकि इसके गाने नाॅस्टेल्जिया दे जाते हैं. 90 के कुछ अच्छे गाने जो गाहे-बगाहे आॅटो-बसों में सुन रखे थे, वो इसी फिल्म में है.. ‘तुझे अपना बनाने की कसम खाई है...’

फिल्म की कहानी से पहले मैंने गानों की बात कर दी, इसका मतलब ये कि फिल्म ऐवरेज थी. एक फिल्म की कहानी के लिए जो चीजें चाहिए वो सब कुछ है इस फिल्म में. हीरो, हिरोइन, दोस्ती, विलेन, दुख और दुख.

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रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद भी रुलाई नहीं आई

90 की दशक वाली संजय दत्त की फिल्म देखने की बात की जाए तो मुझे सिर्फ संजू का हेयरस्टाइल याद आता है. फिल्म शुरू होती है मुंबई की सड़क पर टैक्सी चलाते रवि यानी संजय दत्त से. रवि फिल्म में गुंडों से भी लड़ता है. उसकी बाॅडी भी जबरदस्त है. वो काम को शिद्दत से करने वाला मेहनती, पढ़ा-लिखा, काबिल, मजबूरी में बना टैक्सी ड्राइवर है. वो दिन-रात टैक्सी चलाता है. दिन-रात टैक्सी चलाने के पीछे वजह पैसे कमाना नहीं है. वो हमेशा सड़कों पर अपनी टैक्सी दौड़ाता रहता है क्योंकि उसे नींद नहीं आती. वो अपनी मर चुकी बहन की याद और सपने से बचने के लिए सोता नहीं है.

डाॅक्टर के पास उसके दोस्त ले जाते हैं. डाॅक्टर इलेक्ट्रिक शाॅक देने की बात करता है जो रवि के दोस्तों को मंजूर नहीं होता. क्योंकि प्यार सबकुछ ठीक कर देता है ना! तो दोस्तों को लगता है कि रवि की जिंदगी में कोई लड़की आएगी जो उसे ठीक कर देगी.

तो रोमांस की एंट्री का ये एंगल सोचा गया!

रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद भी रुलाई नहीं आई

फिल्म की नायिका पूजा यानी पूजा भट्ट की डायलाॅग डिलीवरी कम, एक्सप्रेशन डिलीवरी ज्यादा है फिल्म में. उन्होंने एक बेचारी हिरोइन का किरदार निभाया है, जिसके चाचा ने उसे मजबूरी में जिस्मफरोशी के लिए कोठे पर बेच दिया है. एक भोली-भाली, खूबसूरत लड़की जो पूरी फिल्म में हीरो के भरोसे है.

रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद भी रुलाई नहीं आई

फिल्म में बेहतरीन रोल विलेन का है. वो विलेन जो हट्टा-कट्टा, रोबीला सा नहीं है. वो है कोठे की मालकिन बनीं सदाशिव अमरापुरकर. 'बनीं' इसलिए क्योंकि उन्होंने महारानी नाम के किन्नर की भूमिका निभाई है.

उनके डायलाॅग्स काफी दमदार हैं. बालों में हाथ फेरने से लेकर, उन्हें अपने मुंह में दबाने वाले सारे एक्ट्स कमाल के हैं. महारानी का दबदबा काफी है, उसकी सांठ-गांठ पुलिस तक से होती है और वो आसानी से अपना ‘धंधा’ चलाती है. डायलाॅग्स स्ट्राॅन्ग दिए हैं जिससे पता चलता है कि उसके अंदर का गुस्सा किन्नरों के प्रति समाज के रवैये से पनपा है, इसलिए उसके मन में किसी के लिए कोई इज्जत, इंसानियत नहीं है.

फिल्म खत्म होने के बाद आपको दिवंगत सदाशिव अमरापुरकर का कैरेक्टर ज्यादा याद रह जाएगा.

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कहानी का एक-एक किरदार दुखी है

कहानी की बात करें तो फिल्म में दोस्ती, प्यार, मार-धाड़, रोना-धोना सब कुछ समानांतर चलता रहता है. पूरी फिल्म देखने के दौरान एक बार भी हंसी नहीं आती है. हालांकि रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद रुलाई भी नहीं आती!

फिल्म के सभी दुखी किरदार को देखकर मुझे फिल्म मसान का डायलाॅग याद आता रहा- “साला ये दुख काहे खतम नहीं होता है बे?”

रवि का एक जिगरी दोस्त है, जिसकी गर्लफ्रेंड कोठे पर काम करती है. रवि की गर्लफ्रेंड पूजा भी उसी कोठे पर बेची जाती है. रवि उसे अपनी 7 साल की कमाई 30,000 रुपए देकर खरीदना चाहता है (जी हां! 7 साल की कमाई 30,000) ताकि पूजा को वहां से आजाद करा सके.

लेकिन कोठे की मालकिन महारानी (सदाशिव अमरापुरकर) को ये मंजूर नहीं. क्योंकि वो रवि के आंखों में पूजा के लिए प्यार देख लेती है.

लाख जतन के बाद भी रवि पूजा को कोठे से नहीं खरीद पाता. अंत में मारपीट कर रवि और उसका दोस्त अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड वहां से भगा ले जाते हैं. लेकिन रवि के दोस्त और उसकी प्रेमिका की जान चली जाती है.

सालों पहले रवि की बहन की जान भी इसलिए जाती है क्योंकि घर से लव मैरिज करने के लिए भागी थी पर वो कोठे पर बेच दी जाती है.

इन तीनों केस में जिम्मेदार है विलेन- महारानी.

लेकिन, ताज्जुब है कि संजय दत्त को पूरी फिल्म में ये याद नहीं आता कि ये वही महारानी है जिसकी वजह से उसकी बहन की जान गई. फिल्म के अंत में मारपीट के बाद अधमरे हालत में पहुंचने पर एक झटके में उसे बहन की मौत का ख्याल आता है और वो विलेन को मार डालता है. इसके साथ ही वो सबकी मौत का बदला ले लेता है.

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रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद भी रुलाई नहीं आई

फिल्म में कई एक्शन सीन्स हैं. मारपीट, घाव, खून, चोट, गोली के अलावा रोमांस को दर्दनाक बनाने के लिए ‘खून भरी मांग’ भी है.

प्रेम सच्चा और मजबूत है ये बताने के लिए शादी की रस्म बहुत जरूरी है शायद इसलिए फिल्म में पूजा रवि से शादी की मांग रखती है. रवि मंदिर में त्रिशूल से अपना अंगूठा काट पूजा की मांग भर अपना प्रेम सफल कर देता है. उफ्फ..!

कुल मिलाकर कहूं तो, 2 घंटे कुछ मिनट की ये फिल्म बोरिंग नहीं मसालेदार है हालांकि एक्शन सीन का ओवरडोज है.

*चिंदी फुट नोट्स

रुलाने के लिए डाले गए सारे इंग्रेडिएंट्स के बावजूद भी रुलाई नहीं आई
बाएं  रवि की बहन और दाएं हिरोइन पूजा : दोनों ने एक ही लहंगा पहन रखा है

फिल्म के एक सीन में मुझे पूजा उसी कपड़े में दिखी, जो एक सीन में रवि की बहन ने पहन रखा था. एक गाने में 8-8 बदलते कपड़े देखने के बाद इस फिल्म में पूजा को लगातार 3-4 दिन तक एक ही लहंगे में देखना भी मेरे लिए अचरज से कम नहीं था. क्योंकि आज के दौर के सिनेमा के हिसाब से ये नाकाबिले-बर्दाश्त है. कहीं-कहीं तो लगता है कि पूजा के कपड़ों से ज्यादा ध्यान तो चंदा(रवि के दोस्त की प्रेमिका) के कपड़ों पर दिया गया है, उन्होंने कम सीन में ही बदल-बदल कर कपड़े पहने हैं.

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