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Review: ना भूल पाने वाला तजुर्बा है नवाजुद्दीन और नंदिता की ‘मंटो’

एक और व‍िवाद‍ित किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मंटो के किरदार को पर्दे पर बखूबी उतारा है 

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‘अगर आप मेरे अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो जमाना ना-काबिले बर्दाश्त है’

मंटो एक शख्स जिसने अपनी बात हमेशा सबसे समने खुलकर रखी. एक बेबाक आवाज जिसने समाज को आईना दिखाया. एक ऐसा लेखक जो ये लिख सकता था कि इंसान कितना गलत हो सकता है.

मंटो एक ऐसे लेखक थे जो हर किसी को रास नहीं आए. उनका लिखा हुआ कई लोगों को नागवार गुजरा. लेकिन समाज की बेड़ियां कभी मंटों की कलम की बंदिशें नहीं बनीं, वो अपनी कहानी से उन तक पहुंचे जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया था. और समाज में कम होती नैतिकता को उजागर किया.

मंटो बहुत सालों तक उस दर्द से अपने आपको नहीं निकाल पाए जिसने उन्हें मुंबई और उनके दोस्तों से दूर कर दिया था.

डायरेक्टर नंदिता दास ने अपनी 112 मिनट की फिल्म में लेखक सआदत हसन मंटो की जिन्दगी में आए उतार-चढ़ाव की कहानी को बहुत खूबसूरती से पर्दे पर उतारा है.फिल्म में उनके लाहौर जाने से पहले मुंबई में लंबे वक्त तक रहने के किस्सों से लेकर उनकी कहानियों पर चले मुकदमों को जीवंत किया गया है. उनकी बेहतरीन कहानी ‘ठंडा गोश्त’ पर भी पाबंदी लगाई गई. फिल्म में सभी कड़ियों को बेहद संजीदा तरीके से एक दूसरे से जोड़ा गया है. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कार्तिक विजय की सिनेमेटोग्राफी और रीता घोष के प्रोडक्शन डिजाइन ने फिल्म में 40 के दशक यानी आजादी से पहले के हर पहलू को पर्दे पर बखूबी उतारा है. फिल्म के एक-एक सेट ने जैसे मंटो को स्क्रीन पर एक बार फिर से जिंदा कर दिया. नंदिता ने देश विभाजन का दंश से झेल रहे एक व्यक्ति की कहानी को चंद लम्हों में समेट कर अपनी फिल्म में पिरोने की कोशिश की है.

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फिल्म में छोटी-छोटी कई दिल छू लेने वाली कहानियां हैं, जैसे सुपरस्टार श्याम से उनकी दोस्ती, इस्मत चुगताई उनकी हाजिर जवाबी और पैसों के लिए प्रोड्यूसर्स और मैगजीन के मालिकों से जद्दोजहद. अपने परिवार के लिए उनका प्यार और जिसे वो घर समझते थे उससे दूर होने का दर्द भी फिल्म में शामिल है. फिल्म में पिरोयी गई ‘टोबा टेक सिंह’ और ‘खोल दो’ जैसी कहानियां मंटो के अनुभवों को दर्शाती हैं.

एक बार फिर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की बेहतरीन एक्टिंग दर्शकों का दिल जीत लेगी. सआदत हसन मंटो के किरदार को नवाज ने बखूबी निभाया है. इस फिल्म में नवाज की अदाकारी ने ये साबित कर दिया है कि वो इस देश के बेहतरीन एक्टर्स की लिस्ट में शामिल हैं. 
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फिल्म में मंटो की पत्नी का किरदार निभा रही रसिका दुग्गल ने अपनी मखमली अवाज के साथ मंटो के साथ हरदम खड़े रहने वाला किरदार निभाया वहीं ताहिर राज भसीन ने श्याम चड्ढा का बेहतरीन रोल प्ले किया. दिव्य दत्ता, रणवीर शोरी, शशांक अरोड़ा, विजय वर्ना, तिलोत्तमा शोम, परेश रावल, चंदन रॉय सान्याल, जावेद अख्तर, ऋषि कपूर, नीरज कानी जैसे लोगों ने फिल्म को अलग-अलग शेड दिए हैं.

जो लोग मंटो को नहीं जानते शायद ये फिल्म उन्हें ज्यादा समझ न आए लेकिन जो लोग जरा भी मंटो को जानते हैं वो इस फिल्म से बाहर निकलना नहीं चाहेंगे. यही नहीं वो मंटो में और भी डूब जाना चाहेंगे और उन्हें पढ़ना चाहेंगे.

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यह एक ऐसा एक्सपीरियंस है जो फिल्म के साथ खत्म नहीं होता है. हम चंद लम्हों की फिल्म में मंटो को अपने दिल में समेटे हॉल से बाहर निकल तो आए हैं लेकिन मंटो से मोहब्बत का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता.

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