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समलैंगिता को पहले से ज्यादा स्वीकार करने लगा है समाज: मनोज बाजपेयी

मनोज ने कहा, दुखद है कि LGBT समुदाय के अधिकारों की बात पर समाज कुछ लोगों की राय को पूरे समाज की राय मान लेता है.

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भारत में समलैंगिकता आज भी एक अपराध है. LGBT समुदाय के लोग समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा 377 को खत्म करने के लिए लगातार प्रयास करते रहे हैं.

शुक्रवार को आई फिल्म ‘अलीगढ़’ में एक समलैंगिक की निजी जिंदगी और सामाजिक बहिष्कार के दर्द को बखूबी पर्दे पर उतारने वाले अभिनेता मनोज वाजपेयी ने एक इंटरव्यू में कहा कि अब भारत के लोग समलैंगिकों को पहले से ज्यादा खुलेपन से स्वीकार करने लगे हैं.

पर उन्होंने यह भी कहा कि अब भी बहुत से लोगों को अपने विचारों में बदलाव लाने की जरूरत है. हंसल मेहता की फिल्म ‘अलीगढ़’ में मनोज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दिवंगत प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरस का किरादार निभाकर तारीफें बटोर रहे हैं.

सिरस को समलैंगिक होने के कारण अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी और 2010 में वह अलीगढ़ के अपने अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे.

मनोज ने न्यूज एजेंसी को दिए एक इंट्रव्यू में कहा:

मैं इसे सबसे बड़ी सच्चाई के रूप में स्वीकार कर रहा हूं और मैं यह मानने के लिए तैयार हूं कि आज समलैंगिकों को समाज में काफी हद तक स्वीकार किया जा रहा है.केवल कुछ ही लोग हैं जो इस बात पर हिंसक हो जाते हैं, जिनके लिए हमें ऐसी फिल्में बनानी पड़ती हैं ताकि उनके विचारों को बदला जा सके और इस मुद्दे पर चर्चा जारी रखी जा सके.

मनोज ने कहा कि यह दुखद है कि LGBT समुदाय के अधिकारों की बात आते ही समाज इन कुछ लोगों की राय को ही पूरे समाज की राय मान लेता है.

मनोज ने जोर देते हुए कहा, “मैं हमेशा से मानता रहा हूं कि ये कुछ लोग ही अपनी आवाज को जोर-शोर से रखते हैं और उन्हें दूसरों की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप करने की आजादी न जाने कहां से मिल जाती है.”

फिल्म में अपने किरदार सिरस और खुद उनके लिए प्यार के क्या मायने हैं, यह समझाते हुए मनोज ने कहा:

सिरस को प्यार शब्द की गहरी समझ है और वह अनियंत्रित इच्छा की बात करता है जो कि बेहद स्वाभाविक है. मेरे साथ भी यह होता है. मैं समलैंगिक नहीं हूं. मुझे जब कोई लड़की अच्छी लगती है तो मेरे साथ भी ऐसा ही होता है. जब आप किसी से प्यार करते हैं तो आप उसे पूरीतरह से प्यार करते हैं.

मनोज ने कहा, “आपको किसी से भी प्यार हो सकता है. चाहे कोई पंछी या तितली ही क्यों न हो. प्यार एक बहुत बड़ा शब्द है”

मनोज ने तरह-तरह की भूमिकाओं से दर्शकों का दिल जीता है. 1998 की फिल्म ‘सत्या’ में अंडरवर्ल्ड डॉन भीखू मात्रे और ‘शूल’ में ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर समर प्रताप सिंह की भूमिका से लेकर ‘गैंग्स ऑफ वासीपुर’ में सरदार खान की भूमिका को भी उन्होंने जीवंत कर दिया था.

मनोज ने कहा, “उम्र और अनुभव के साथ आप इंसान के बारे में काफी कुछ सीखते हैं. इन सभी किरदारों और रिसर्च के साथ मैने सिरस के किरदार की बारीकियों को समझा है. उनकी आत्मा, उनकी मन की हालत को समझना मेरे लिए जितना मुश्किल था, उतना ही जरूरी भी था.”

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