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बॉलीवुड की 'मिमी' साउथ की 'सारा' से क्यों नहीं मिली?

अब भी जब किसी फिल्म में अबॉर्शन की बात आती है तो उसके लिये किलिंग जैसा शब्द इस्तेमाल होता है.

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सरोगेसी जैसे सेंसेटिव टॉपिक पर बनी फिल्म 'मिमी' में कॉमेडी अच्छी है, लेकिन एक टॉपिक पर ये फिल्म भी दकियानूसी निकली और वो है अबॉर्शन (गर्भपात) की आजादी.

इस फिल्म में कृति सेनन सरोगेट मदर हैं, लेकिन जब इस बच्चे के पेरेंट्स बच्चा नहीं चाहते तो सिंगल मदर होते हुऐ भी वो अबॉर्शन कराने के लिये साफ मना कर देती है. फिल्म में पंकज त्रिपाठी जब उन्हें इसके लिये बोलते हैं तो वो ऐसे चिल्लाती है जैसे अबॉर्शन कोई क्राइम हो.

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पुरानी सोच से बाहर नहीं निकल पा रहीं फिल्में?

बच्चा कंसीव करने के बाद मां और बच्चे के बीच कैसा इमोशनल कनेक्शन बनता है इस पर भी फिल्म में लंबे चौड़े डायलॉग हैं. फिल्म के ट्रेलर का पहला डायलॉग है कि कोख में बच्चा पालना सबसे महान काम है. अब भी जब किसी फिल्म में अबॉर्शन की बात आती है तो उसके लिये किलिंग जैसा शब्द इस्तेमाल होता है.

2 साल पहले आई सुपरहिट कॉमेडी फिल्म 'गुड न्यूज' में भी जब मेडिकल नैग्लीजेंस की वजह से अक्षय और दिलजीत के स्पर्म बदल जाते हैं तो अक्षय फिल्म में अपनी वाइफ करीना से बोलते हैं कि ‘लेट्स किल द बेबी’ और इस मामले पर वो अपनी पत्नी की कोई बात भी नहीं सुनेंगे. एक और डायलॉग है, जिसमें दिलजीत कियारा से कहते हैं कि हम अपने बच्चे को उन्हें मारने नहीं देंगे. एक और सीन में करीना जब अबॉर्शन न करने का फैसला लेती है तो यही कहती है कि वो मर्डरर नहीं बनना चाहती. अब कोई फिल्म के डायलॉग राइटर को समझाओ कि अबॉर्शन करने से कोई खूनी नहीं बन जाता. हालांकि बाद में फिल्म में इनफर्टिलिटी, आईवीएफ और प्रेग्नेंसी से जुड़े टॉपिक को बड़े सलीके से कॉमेडी फॉर्म में दिखाया है. लेकिन अबॉर्शन को किलिंग का नाम देकर उन्होंने इस सेंसेटिव मुद्दे पर कोई नया और प्रोग्रेसिव एटीट्यूड नहीं अपनाया.

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किलिंग तो जैसे अबॉर्शन के लिये फिल्मों में पर्यायवाची है. अगर आपको याद हो तो 'सलाम नमस्ते' मूवी में जब लिव इन में रहते हुये प्रीति जिंटा प्रेग्नेंट हो जाती है और उनके पार्टनर बने सैफ बच्चा नहीं चाहते तो वो भी यही कहते हैं कि ‘लेट्स किल इट’ जिसके जवाब में प्रीति कहती हैं कि ‘द वर्ड इस अबॉर्शन’ जिस पर सैफ झल्ला के कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है कुछ भी बोलो.

एक और ब्लॉकबस्टर फिल्म 'सुल्तान' जिसमें रेसलर बनी अनुष्का प्रेग्नेंट हो जाती है और इस पर उनके पिता झल्लाते हुऐ कहते हैं इस पेट को लेकर रेसलिंग करोगी क्या, अनुष्का भी जवाब में बड़े दीन-हीन अंदाज में कहती हैं कि वो 'सुल्तान' के सपने में ही अपने सपने देख लेगी. यानी वही सोच कि बच्चा करेंगे चाहे अपने सपनों की कुर्बानी क्यों ना देनी पड़े, क्योंकि अगर अपने करियर के लिये अबॉर्शन करा लिया तो समाज की नजरों में एकदम बुरी औरत बन जायेंगी.

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अपनी खुशी से अबॉर्शन करने वाली महिला विलेन

'ऐतराज' फिल्म से डेब्यू करने वाली प्रियंका चोपड़ा को फिल्म में वैंप दिखाया था क्योंकि वो अपनी शर्तों पर जीना चाहती है और खासतौर पर जब वो प्रेग्नेंट होती है तो अबॉर्शन कराने के लिए दलील देती है कि वो बच्चा होने से नहीं डरती बस अपने करियर पर फोकस करना चाहती है. फिल्म में वो ये भी कहती है कि करियर में सक्सेसफुल होने के लिये उसने बहुत मेहनत की है और बच्चा पैदा करना उसका सपना नहीं. अबॉर्शन की बात पर अक्षय प्रियंका को छोड़कर करीना को प्यार करने लगते हैं. अपने टर्म एंड कंडिशन पर जीने वाली प्रियंका को फिल्म में नेगेटिव रोल में दिखाया है और इस फिल्म से भी वही मैसेज दिया कि अगर आप अपने सपनों के लिये, करियर के लिये या पैशन के लिये अबॉर्शन कराती हैं, तो आपने बहुत गलत काम कर दिया.

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Sara's जैसी फिल्में देती हैं नई सोच

ज्यादातर बॉलीवुड फिल्में अबॉर्शन कराने को नैतिक रूप से गलत दिखाती हैं, वहीं मलयालम फिल्म 'सारा' में अबॉर्शन को एक महिला के अधिकार के रूप में दिखाया गया है. फिल्म में एक्ट्रेस का डायलॉग है कि “ऐसा नहीं है कि उनको बच्चे पसंद नहीं बस उनको पालने की काबिलियत उसमें नहीं और ना ही मुझे इसकी जरूरत लगती, मेरे लिये कुछ ऐसा करना जरूरी है जिसे दुनिया याद रखे, ना कि बच्चे पैदा करो और सिर्फ वो आपको याद रखें”

आज की दौर में जब माई बॉडी माई चॉइस की बात उठती है तो अबॉर्शन पर ये बात लागू क्यों नहीं. कोई अबॉर्शन ना कराना चाहे ये एक महिला की खुद की मर्जी होनी चाहिए, लेकिन अगर कोई महिला अबॉर्ट कराना चाहे तो ये उसके चरित्र पर दाग जैसा ना माना जाये. फिल्मों के जरिये इस मुद्दे पर समाज को नयी सोच देनी चाहिये कि अबॉर्शन कराना कोई अपराध नहीं है, या कोई गिल्ट वाला काम नहीं है ये एक महिला का पूरी तरह निजी मामला है और अबॉर्ट करना किलिंग नहीं और कराने वाली लेडी कोई मर्डरर नहीं.

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गौर करने वाली बात ये है कि देश में अबॉर्शन किसी मेडिकल क्राइम की केटेगरी में नहीं आता और पूरी तरह लीगल है और इसे लेकर नियम काफी लिबरल हैं. नये कानून के मुताबिक महिला चाहे मैरिड हो या अनमैरिड वो 24 हफ्ते तक अबॉर्शन करा सकती है. हालांकि इसमें डॉक्टर की सलाह जरूरी है और किसी वजह से ही गर्भपात की अनुमति है. नये नियम में महिला की प्राइवेसी का भी पूरा ध्यान रखा गया है.

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