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‘भूत’ रिव्यू: साइको-हॉरर ड्रामा में विक्की ने दिखाया कौशल

फिल्म ‘भूत’ देखने से पहले पढ़िए इसका रिव्यू

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Bhoot: Part One - The Haunted Ship

‘भूत’ रिव्यू: साइको-हॉरर ड्रामा में विक्की ने दिखाया कौशल

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हॉरर फ्रैंचाइजी के फर्स्ट पार्ट, 'भूत' की कहानी एक जहाज के बारे में है, जो अरब सागर में रहस्यमय तरीके से प्रकट होता है और अपने आप चलता है. पृथ्वी (विक्की कौशल) और उसके दोस्त रियाज (आकाश धर) दो शिपिंग ऑफिसर हैं. "दुश्मन देश का हाथ" जैसे कुछ हंसी-मजाक के बाद बिना किसी इंसान के चलने वाले इस बड़े से जहाज के बारे में जानने के लिए पृथ्वी की उत्सुकता बढ़ती है.

हॉरर जेनर फिल्मों की कुछ बहुत ही सामान्य चीजों को नवोदित डायरेक्टर भानू प्रताप सिंह ने इस फिल्म में इस्तेमाल किया है. इनमें से कुछ चीजों को डायरेक्टर ने वाकई अच्छी तरह दिखाया है, लेकिन ढाई घंटे की इस फिल्म के आखिर तक, ज्यादातर चीजें भाप बनकर उड़ जाती है. भूत में डर पैदा करने वाले पल अहम हैं. लेकिन इस बेरहम और अशुभ यात्रा में कई जगह लापरवाही भी नजर आती है.

लेकिन फिर कोई भूतों की वैलिडिटी पर कैसे फैसला लेता है? इस शैली की फिल्म की ताकत इस बात पर निर्भर करती है कि कैसे हमें भूत-प्रेतों की इस भयानक दुनिया और बिना सिर वाले रेंगते हुए शरीर में यकीन दिलाया जाए. और यह निश्चित तौर पर अकेले भूत का पता लगाने वाली मशीन के इस्तेमाल के साथ नहीं हो सकता है! फिल्म का श्रेय देने के लिए कहा जा सकता है कि प्रोड्यूसर्स ने एक मनोरंजक साइकोलॉजिकल थ्रिलर और पारंपरिक हॉरर का तालमेल देने की कोशिश की है, लेकिन ये कल्पनाशीलता जल्द ही कुछ बहुत ही अनुमानित नतीजों को जन्म देती है.

विक्की कौशल अपने किरदार में बेहद प्रभावी हैं. फिल्म में वे एक ऐसे आदमी हैं, जो लगातार गम में है और उन्होंने अपने चेहरे पर जो डर और भ्रम की स्थिति उकेरी है, वो हमें काफी हद तक कहानी में बांधे रखता है.  

भूमि पेडनेकर का एक कैमियो अपीयरन्स है और आशुतोष राणा को ज्यादातर नजरअंदाज किया गया है. मेहर विज का किरदार अहम है, और उन्होंने इसे बखूबी निभाया है.

जब तक हम क्लाइमैक्स पर पहुंचते हैं, तब तक सेकंड हाफ की नैरेटिव बार-बार डगमगाने लगती है. अलौकिक घटनाओं से संबंधित 'क्यों ’का जवाब देने की कोशिश में शामिल प्लॉट मैकेनिक्स खींची हुई दिखाई देती है.

‘भूत’ एक अच्छी कोशिश है. तकनीकी बारीकियां भी असरदार हैं, लेकिन दर्शकों को बांधे रखने की कोशिश में कहानी थोड़ी फीकी पड़ जाती है.
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डरावने दिखने वाले मुंबई के स्काईलाइन पर खड़े विशाल जहाज खौफ की वजह बनती है और पुष्कर सिंह के कैमरे ने ऐसा कैनवास तैयार किया है, जहां हम उस पल का इंतजार करते हैं जब हमारे पैरों तले जमीन खिसक जाती है. के नीचे से खींचा जाता है. डर पैदा करने वाले सीन्स को स्ट्रैटेजिक तौर पर फिल्म में इस्तेमाल किया गया है. लेकिन सबसे दिलचस्प जगह तो वो जहाज है, जो भूतिया है. या फिर पृथ्वी खुद भी भूतिया है?

पृथ्वी के मन में जो दृश्य उमड़ते हैं - क्या वे वास्तविक हैं या वे काल्पनिक हैं? जैसा कि इंसान अपने अंदर के हैवानों से लड़ रहा है और साथ ही एक बहुत शोक मना रहा है, क्या उसे दिखने वाले दृश्य असली है? या फिर क्या यह सब केवल उसके दिमाग में मौजूद है?

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