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छपाक रिव्यू:कमियां हैं,लेकिन गंभीर मुद्दे पर ईमानदारी से बनी फिल्म

छपाक बिना किसी तामझाम के ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है.

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Chhapaak

छपाक बिना किसी तामझाम के ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है.

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दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक की शुरुआत देश के साल 2012 में हुए जघन्य अपराधों में शामिल दिल्ली निर्भया केस के प्रोटेस्ट से होती है. पुलिस प्रोटेस्टर्स पर आंसू गैस के गोले छोड़ते और लाठी चार्ज करते हुए नजर आ रही है. ये सीन कुछ उसी तरह दिखाई दे रहा है जिस तरह के हालात इन दिनों हमारे देश में दिखाई दे रहे हैं.

इन प्रदर्शनकारियों के बीच एक पिता अपनी बेटी की पासपोर्ट साइज फोटो दिखाते हुए नजर आते हैं और यही नजारा पत्रकारों का ध्यान अपनी तरफ खींचता है. महिलाएं और उनके खिलाफ होने वाले अपराध आज भी मेनस्ट्रीम मीडिया का ध्यान अपने तरफ आकर्षित कर रहे हैं.

जब हम मालती(दीपिका पादुकोण) से मिले, जो एसिड अटैक सर्वाइवर और एक्टिविस्ट लक्ष्मी अग्रवाल का रोले प्ले कर रहीं हैं, वो धीरे-धीरे अपने  जिंदगी को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रही हैं. 

उनके चहरे पर वो निशान अभी भी देखे जा सकते हैं, लगता है जैसे अब यही निशान उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे हों.

छपाक, मतलब छींटा, ये कहानी एक महिला के संघर्ष और हिम्मत की है, जिसमें उस पर क्रूर हमला किया जाता है. इस हमले ने न सिर्फ उसका चेहरा छीन लिया, बल्कि उसकी पहचान भी छीन ली. यही वजह छपाक को न केवल एक महत्वपूर्ण फिल्म बनती है, बल्कि ये एक ऐसी फिल्म भी है जिसे देखना थोड़ा मुश्किल है.

छपाक बिना किसी तामझाम के ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है.
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मेघना गुलजार के डायरेक्शन में बनी और अवंतिका चौहान की लिखी गई इस फिल्म में एहसासों का पूरा गुलदस्ता शामिल है, जो कि इस फिल्म के असर को और भी बड़ा बना देता है.
यहां तक कि हमले के सबसे डरावने दिन को फिल्म में दो बार फिर से दिखाया गया है, इसमें हम दो और ऐसी महिलाओं से मिलते हैं, जिन्होंने एसिड अटैक के इस दर्द को जिया है. और दूसरा हिस्सा इस फिल्म में मालती के अटैकर बशीर को दिखाया गया है कि उसे अपने किए का कोई पछतावा नहीं है.

फिल्म में मेलोड्रामा की बजाय सच्चाई को दिखाया गया है. फिल्म इस मुद्दे को उठाती नजर आती है कि कैसे एक महिला के साथ हुई अपराध उसकी पूरी जिंदगी खत्म कर देता है. फिल्म का एक्शन कोर्ट रूम से शुरू होता है, जहां मालती अपने लिए न्याय की लड़ाई लड़ते हुए नजर आती है. वो एसिड के खुलेआम बाजारों पर मिलने पर कोर्ट में याचिका दाखिल करती है.

अनगिनत सुनवाई और कानून में निराशाजनक खामियां - ये सभी बातें हमें एक साहसी महिला की तारीफ के साथ-साथ न्यायिक प्रणाली पर कई सवाल उठाती नजर आती है. मालती एक शक्तिशाली महिला, लॉयर अर्चना और एनजीओ चलाने वाले आलोक ये किरदार जो कि मधुरजीत सरगी और विक्रांत मैसी ने प्ले किए है, शानदार है. इन के किरदारों को देखकर ऐसा लगता है कि छपाक की कहानी इन्हीं के लिए है.

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छपाक बिना किसी तामझाम के ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है.

कहानी में इतने मजबूत किरदारों के बावजूद ऐसा लगता है कि फिल्म में इंटरवल के बाद कुछ दिखाने और बाताने के लिए नहीं है. दीपिका एसिड अटैक सर्वाइवर के किरदार में नजर आ रहीं है. इस फिल्म में अटैक के सीन को जिस तरह रिक्रिएट किया गया है, वो दिल को नहीं छूता.

कोर्ट रूम से निकलकर फिल्म मालती और आलोक के प्यार और एसिड अटैक सर्वाइर की प्रशासन से नाराजगी की कहानी दिखाती है. छपाक बिना किसी तामझाम के ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है.

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