ADVERTISEMENTREMOVE AD
i

गुलाबो सिताबो रिव्यू: कमाल के अमिताभ-आयुष्मान, फिर भी थोड़ी कमी

अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है ‘गुलाबो सिताबो’

छोटा
मध्यम
बड़ा

Gulabo Sitabo

रिव्यू: मजेदार कैरेक्टर्स के बावजूद ध्यान नहीं खींच पाती ‘गुलाबो सिताबो’

फिल्म की शुरुआत में हमारी मुलाकात होती है अमिताभ बच्चन से. हांफते हुए बच्चन अपनी जेब से बल्ब निकालते हैं. ऐसा उन्होंने क्यों किया और इससे वो क्या करेंगे, ये पता चलता है अगले सीन में. अपनी लंबी दाढ़ी, चश्मे और चाल-ढाल से बच्चन तुरंत हमारा ध्यान खींच लेते हैं. जैसे ही वो एक बुजुर्ग किरदार में ढलने लगते हैं, जिसे दुनिया 'लालची' कहती है, हम अमिताभ बच्चन की स्टार क्वॉलिटी को भूल जाते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
शूजीत सरकार की फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ अमेजन प्राइम पर रिलीज हो गई है. कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण फिल्ममेकर्स ने इसे ऑनलाइन रिलीज किया है.

अविक मुखोपाध्य का कैमरा धीरे-धीरे लखनऊ की गलियों में गुम हो जाता है और जूही चतुर्वेदी ने कहानी में जो स्थानीय तड़का लगाया है, ये फिल्म को और बेहतर बना देती है.

फिल्म की कहानी मिर्जा (अमिताभ बच्चन) और उसकी किरायेदारों संग झगड़े को लेकर है. मिर्जा फातिमा महल को अपने नाम करना चाहता है, और किरायेदार पैसे देते नहीं. सभी किरायेदारों में से सबसे जिद्दी है बांके (आयुष्मान खुराना), जो कि फातिमा महल में अपनी मां और तीन बहनों के साथ रहता है. बांके हमेशा गुस्से में रहता है. वो जमीन पर अपना दावा करता है. मिर्जा जहां बांके को निकालने की हर कोशिश करता है, तो बांके भी उतनी ही हिम्मत से लड़ता है.

दोनों के बीच जमीन को लेकर विवाद चलता रहता है, वहीं हवेली की असली मालिक, बेगम को इसकी परवाह ही नहीं है. बेगम की दुनिया में नेहरू जी हर जगह मौजूद हैं.

फिल्म में असली पावर महिलाओं के पास हैं. फिर चाहे बांके की बहन, गुड्डो (सृष्टि श्रीवास्तव) हो या उसकी लव इंट्रेस्ट फौजिया (पूर्णिमा शर्मा), जो एक मौका नहीं छोड़ती उसे अपने दिल का हाल बताने का, या फिर शानदार बेगम (फार्रुख जफर). इस फिल्म में महिलाएं निखरकर सामने आई हैं. आर्कियोलॉजिस्ट के रोल में विजय राज और क्रिस्टोफर क्लार्क वकील के रोल में ब्रिजेंद्र काला ने भी शानदार काम किया है.

फिर चाहे ‘पीकू’ हो, या ‘अक्टूबर’ या ‘विकी डोनर’, शूजीत सरकार की फिल्मों रोजाना की जिंदगी और इसकी खुशियों और गमों के बारे में होती हैं.

इस फिल्म में भी उन्होंने कोशिश की है, लेकिन वो ज्यादा देर तक हमारा ध्यान खींच नहीं पाए. लेकिन इससे फिल्म ने लालच पर जो मजबूत बातें रखी हैं, उसका प्रभाव कम नहीं होता.

'गुलाबो सिताबो' को 5 में से 3 क्विंट!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×