ADVERTISEMENTREMOVE AD
i

‘मणिकर्णिका’औसत,लेकिन रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में कंगना बेमिसाल

ये कंगना की पहली ऐसी फिल्म भी है, जिसमें उन्होंने डायरेक्शन में हाथ आजमाया

छोटा
मध्यम
बड़ा

Manikarnika: The Queen of Jhansi

‘मणिकर्णिका’ औसत,लेकिन रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में कंगना बेमिसाल

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कंगना रनौत की पहली पीरियड फिल्म रिलीज हो चुकी है! दरअसल ये कंगना की पहली ऐसी फिल्म भी है, जिसमें उन्होंने डायरेक्शन में हाथ आजमाया, जिसका क्रेडिट उन्हें फिल्म के दूसरे डायरेक्टर राधा कृष्ण जगर्लामुदी के साथ मिल रहा है. मणिकर्णिका में कुछ गड़बड़ियां दिखती हैं. जगर्लामुदी ने फिल्म को आधे रास्ते में छोड़ दिया और कंगना ने कुछ खास सीन्स को शूट करने के लिए डायरेक्शन की कमान संभाली. सोनू सूद फिल्म से अचानक गायब हो जाते हैं.

कुछ ऐसी उड़ती हुई खबरें आई थीं, कि कंगना ने फिल्म में बहुत ज्यादा दखलंदाजी की है, जिससे सबको दिक्कत हुई. फिल्म रिलीज से पहले करणी सेना की धमकियों और कंगना के पलटवार को भी मत भूलिए.

मणिकर्णिका में कंगना रानी लक्ष्मी बाई के किरदार में ढली हैं, जिन्होंने अंग्रेजों से इतनी हिम्मत और ताकत से जंग लड़ी कि उनकी बहादुरी के किस्से लोकगीतों का हिस्सा बन गए.

पहले सीन से फिल्म की झलक

फिल्म के शुरुआती सीन से ही पूरी फिल्म का अंदाजा लग जाता है. कंगना एक बाघ को मारने के लिए धनुष में तीर तानती है, जबकि आसपास मौजूद लोग अचरज से देख रहे हैं. वो तीर छोड़ती है जो सीधे निशाने को भेद देती है. उनकी नीली साड़ी का उड़ता हुआ पल्लू भंसाली की याद दिलाता है.

तीर लगने पर बाघ घायल हो जाता है और फिर कंगना ही उसकी मरहम-पट्टी कर उसकी जिंदगी बचाती है. वो कहती है कि उसका इरादा कभी भी बाघ को नुकसान पहुंचाना नहीं था, बल्कि लोगों की हिफाजत करना था.

यही है मणिकर्णिका. हमेशा एक्शन के केंद्र में. प्रॉप्स से घिरी हुई और कई बार स्पेशल इफेक्ट्स के साथ बुरी तरह फिल्माई गई.

नाटकीयता लाने के लिए क्रिएटिव आजादी का इस्तेमाल करना नई बात नहीं हैं. जब तक बैकग्राउंड में अमिताभ बच्चन की आवाज सुनाई देती है, हम बहुत सी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं.

मणिकर्णिका में समस्या यह नहीं है कि कंगना अच्छी नहीं लगी हैं. किरदार में वो बखूबी ढली हैं. उनकी भाव-भंगिमा, बॉडी लैंग्वेज, असरदार तरीके से फिल्माए गए एक्शन सीक्वेंस, तलवारबाजी वगैरह सबकुछ सटीक है. इमोशनल सीन्स में वो लाजवाब हैं, लेकिन उनके आसपास मौजूद हर किरदार अपनी लय खोता हुआ नजर आता है.

टीम वर्क में कमी

कहानी 1828 से शुरू होती है, क्योंकि ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की है कि नवजात मणिकर्णिका का "इतिहास के पन्नो में नाम जिवित रहेगा." बड़ी होकर वह खूबसूरत और बहादुर बनती है. गंगाधर राव के साथ उनका गठजोड़ झांसी और इसके निराश शासक दोनों की मदद करने वाला है. अंग्रेजों ने झांसी पर दावा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की लेकिन मणिकर्णिका ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. कंगना अकेले ही हमें कहानी के साथ जोड़े रखती है. लेकिन आखिरकार फिल्म एक टीम वर्क होता है. स्क्रीनप्ले में खामियां, दूसरे किरदारों का कम स्क्रीन अपीयरेंस फिल्म की कमजोर कड़ियां हैं.

मणिकर्णिका के पति के किरदार में जीशु सेनगुप्ता के लिए संजय सूरी की आवाज की डबिंग की गई है. यह एक तरह से उनके प्रभाव को काफी कम कर देता है. असंतुष्ट भाई सदाशिव राव का किरदार निभाने वाले मोहम्मद जीशान अयूब और अंकिता लोखंडे का कैमियो रोल है.

तात्या टोपे के किरदार में अतुल कुलकर्णी और गुलाम गौस खान के किरदार में डैनी डेन्जोंगपा महज प्रॉप्स के इस्तेमाल पर सिमट गए. प्रसून जोशी ने ब्रिटिश अधिकारियों के लिए सबसे मजेदार और मजबूत डायलॉग बचाकर रखे.

एक्टर के तौर पर कंगना ने हमेशा की तरह निराश नहीं किया. लेकिन एक निर्देशक के तौर पर फिल्म मेकिंग के हर पहलू को ऊपर उठाना अहम है. यही वो जगह है जहां "क्वीन" मात खा जाती हैं. 'मणिकर्णिका' पूरी तरह से एक साथ नजर नहीं आती है. बेशक कंगना का ऑनस्क्रीन काम बढ़िया है, लेकिन पूरी फिल्म एक औसत दर्जे की है, जो केवल कुछ जगहों पर ही असरदार नजर आती है. अगर फिल्म में सब कुछ कंगना के बराबर का होता, तो मणिकर्णिका और भी दमदार फिल्म होती.

मैं 5 में से 2.5 क्विंट दूंगी!

देखें वीडियो - द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: मनमोहन के रियल लाइफ के कितने करीब?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×