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बिहार में कैसे बनती है ‘जबरिया जोड़ी’, क्या होता है पकड़वा विवाह?

सिद्धार्थ मलहोत्रा और परीणीति चोपड़ा की फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ रिलीज को तैयार है,

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सिद्धार्थ मलहोत्रा और परि‍णीति चोपड़ा की फिल्म जबरिया जोड़ी रिलीज हो गई है. फिल्म का प्लॉट बिहार के पकड़वा विवाह पर आधारित है, जिसमें बंदूक की नोंक पर लड़कों की शादी कराई जाती है. बिहार में कई दशकों से इस तरह शादियां कराई जाती रही हैं, लेकिन बॉलीवुड में पहली बार इस टॉपिक पर फिल्म बन रही है.

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क्या होता है पकड़वा विवाह और क्यों होती हैं ऐसी शादियां?

बिहार में शादी के मकसद लड़कों को अगवा किया जाता था और लड़के को मार पीटकर जबरन मंडप में बैठाकर शादी कराई जाती थी. वैसे पकड़वा विवाह के मामले पिछले 2 तीन साल पहले तक भी कभी-कभार सुनने को मिलते रहे हैं, लेकिन 80 के दशक में बकायदा ऐस गिरोह बनाए गए थे, जो इस तरह की शादियां कराया करती थीं. फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ में भी सिद्धार्थ मलहोत्रा एक ऐसे गैंग के सदस्य हैं, जो शादी के लिए लड़कों को अगवा करता है.

कैसे काम करता था पकड़वा विवाह कराने वाला गैंग?

80 के दशक में बिहार में कई ऐसे गैंग बनाए गए थे, जिनकी शादी के सीजन में खास डिमांड रहती थी. ये गिरोह लड़की के लिए सही लड़के की तलाश करता था और मौका देखकर उसे अगवा करके उसकी शादी कराता था. शादी के बाद लड़के के घरवालों पर भी लड़की को मान्यता देने के लिए दबाव मनाया जाता था. कई बार तो सामाजिक दबाव में घरवाले लड़की को मान्यता दे देते थे, लेकिन कई बार ऐसे रिश्तों को कोर्ट में चुनौती देकर अमान्य भी घोषित किया जा चुका है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए लिखा है कि साल 2014 में 2526, 2015 में 3000, 2016 में 3070 और नवंबर 2017 तक 3405 पकड़वा विवाह के मामले रिपोर्ट किए गए थे. 

ऐसी शादियों के पीछे का मकसद क्‍या?

दहेज लेना और देना, दोनों कानूनन जुर्म है, ये सबको मालूम है. लेकिन हर किसी को ये भी मालूम है कि इस कानून को जमीन पर उतारने वाली मशीनरी किस हद तक लचर है. ज्‍यादातर मामलों में दोनों ही पक्ष आपसी रजामंदी से लेन-देन करते हैं, इसलिए मामले कोर्ट-कचहरी तक नहीं पहुंचते. नतीजतन ये कुप्रथा चलती रहती है. पकड़वा विवाह को काफी हद तक दहेज प्रथा का साइड इफेक्‍ट माना जा सकता है.

समाज की अलग-अलग जातियों के हिसाब से, लड़के की काबिलियत और पद के हिसाब से हर किसी का एक अघोषि‍त ‘मार्केट रेट’ होता है. जो लड़की वाले इस रेट के हिसाब से शादी के लिए लड़के वालों की डिमांड पूरी करने में खुद को लाचार पाते हैं, वे पकड़वा विवाह जैसा शॉर्टकट इस्‍तेमाल करते हैं.

टारगेट पर होते हैं ऐसे लड़के...

  • लड़के वाले लड़की वालों की तुलना में ज्‍यादा अमीर हों
  • लड़का टैलेंटेड हो और उसमें अपने भावी परिवार का भरण-पोषण करने की क्षमता हो
  • दोनों पक्ष समान जाति के हों
  • शादी के बाद लड़की जिस घर में आसानी से एडजस्‍ट कर सके
  • लड़के का व्‍यवहार, शादी के प्रति उसका रुझान
  • रिश्‍ते के बाद दोनों परिवारों के बीच मेल-मिलाप की संभावना ज्‍यादा हो

क्‍या हर बार ऐसी शादी सफल हो जाती है?

ऐसे भी मामले देखे गए हैं कि शादी के बाद लड़का चंगुल से भाग निकला और इस तरह की शादी को मानने से ही इनकार कर दिया. अक्‍सर शादी के बाद लड़कों को बाइज्‍जत उनके घर पहुंचा दिया जाता है. ये धमकी भी दी जाती है कि वे जल्‍द से जल्‍द दुल्‍हन को अपने घर लाने की तैयारी करें. लेकिन हर बार ऐसी शादी सफल हो जाए, ये जरूरी नहीं.

ये भी पढ़ें- ‘जबरिया जोड़ी’ का ट्रेलर रिलीज, बिहार के पकड़वा विवाह की है कहानी

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