मशहूर फिल्म मेकर श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) नई फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिसका नाम है- Mujib: The Making of a Nation. ये फिल्म बांग्लादेशी लीडर शेख मुजीबुर्रहमान की जिंदगी पर बन रही है. वो शख्स जिसने बांग्लादेश को बनाने, आजादी दिलाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी और एक दिन उसी की सेना ने उसे पूरे परिवार के साथ कत्ल कर दिया.
कौन थे शेख मुजीबुर्रहमान
1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया था- पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान, जो बाद में बांग्लादेश बना था. अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. जुर्म इस हद तक बढ़ने लगा कि सैकड़ों हत्याएं की गईं और महिलाओं के साथ अत्याचार किया जाने लगा. उस दौर में जब मासूमों पर सितम ढाया जा रहा था तब एक करिश्माई शख्स उन लोगों के साथ मसीहा बनकर खड़ा था जिसका नाम था- शेख मुजीबुर्रहमान, जिसे लोगों ने बंगबंधु की उपाधि से नवाजा.
शेख मुजीबुर्रहमान बिना थके तब तक लड़ते रहे जब तक बांग्लादेश को एक अलग राष्ट्र स्थापित नहीं कर दिया.
कोलकाता से शुरू हुई राजनीति
शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की थी, उन्होंने बांग्लादेश को तबाही के दौर से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाई. 1971 में बांग्लादेश का बनना दुनिया की महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं में से एक था, जिसमें शेख मुजीबुर्रहमान का बड़ा योगदान था.
शेख मुजीबुर्रहमान का जन्म 17 मार्च 1920 को ढाका के गोपालगंज में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई गोपालगंज में ही हुई, उसके बाद उन्होंने कोलकाता के इस्लामिया कॉलेज में दाखिला लिया. इसी कॉलेज से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई. 1943 में वो बंगाल मुस्लिम लीग के सदस्य बने, इसी दौरान वो पाकिस्तान आंदोलन से जुड़े, धीरे-धीरे उनका कद बढ़ता गया. आजादी के बाद जब उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्र भाषा बनाने का ऐलान किया गया तब शेख मुजीबुर्रहमान ने इसका विरोध किया और मुस्लिम लीग को छोड़ दिया.
हुसैन सईद, मौलाना भाषानी और यार मोहम्मद खान ने अवामी मुस्लिम लीग का गठन किया तो शेख मुजीबुर्रहमान इसका अहम हिस्सा बने, 1953 में उन्हें अवामी मुस्लिम लीग का महासचिव भी बनाया गया. 1963 में वो अवामी लीग के अध्यक्ष बने. 1986 में जनरल अयूब के खिलाफ उन्होंने आंदोलन में हिस्सा लिया. 1 दिसंबर 1969 को उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश नाम देने का ऐलान भी कर दिया. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ संग्राम की अगुवाई की और आखिरकार 1971 में बांग्लादेश बना और शेख मुजीबुर्रहमान ही इसके पहले राष्ट्रपति बने और बाद में प्रधानमंत्री भी चुने गए.
बांग्लादेश की सेना ने ही की बेरहमी से हत्या
बांग्लादेश को मुक्ति तो मिल गई थी, लेकिन देश के अंदर के हालात बेहद खराब होने लगे, जनता और सेना का रोष धीरे-धीरे सरकार के खिलाफ बढ़ता जा रहा था. बांग्लादेश की मुक्ति के तीन साल बाद ही 15 अगस्त 1975 को सेना ने तख्ता पलटकर शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी.
15 अगस्त 1975 की सुबह शेख मुजीबुर्रहमान की जिंदगी की सबसे काली और खौफनाक सुबह थी, जब सेना के कुछ अफसरों ने उनके निवास पर हमला कर दिया और उनको गोलियों से छलनी कर दिया. वो अफसर वहीं नहीं रुके उन्होंने मौत का ऐसा तांडव किया कि शेख मुजीबुर्रहमान के परिवार के सदस्यों को चुन-चुनकर मारा, उनकी पत्नी, उनके बेटे, दोनों बहुएं और 10 साल के बेटे तक को नहीं बख्शा, उनकी बेटियां इसलिए बच गईं क्योंकि वो उस वक्त जर्मनी में थीं. शेख हसीना और रेहाना देश में नहीं थीं इसलिए दोनों जिंदा बच गईं.
शेख हसीना ने इस हादसे के बाद भारत में कई सालों तक शरण भी ली और बाद में बांग्लादेश जाकर चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज हुईं.
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