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Soorarai Pottru: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की बौछार के पीछे वजह क्या है?

सूराराई पोत्रु फिल्म 'सिंपल फ्लाई' नाम की किताब पर आधारित है.

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तमिल फिल्म सूराराई पोत्रु (Tamil Film Soorarai Pottru) इस साल के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में छाई रही. इसने सर्वश्रेष्ठ फिल्म, पटकथा लेखन, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (संयुक्त), सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और बैकग्राउंड स्कोर का पुरस्कार जीता है.

1 जनवरी 2020 से 31 दिसम्बर 2020 तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रमाणित फिल्मों में से इन पुरस्कारों का चयन किया गया. सूराराई पोत्रु फिल्म 'सिंपल फ्लाई' नाम की किताब पर आधारित है. इसकी हिंदी डब 'उड़ान' नाम से अमेजन प्राइम पर उपलब्ध है और फिल्म की रीमेक की घोषणा पहले ही हो चुकी है.

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फिल्म की कहानी

सूराराई पोत्रु की कहानी जीआर गोपीनाथ की है जो हर आम भारतीय की तरह एक बड़ा सपना देखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं. गोपीनाथ को अपना ये सपना पूरा करने के लिए तंत्र के साथ लड़ना पड़ता है पर जहां कुछ बुरे लोग होते हैं वहां अच्छे लोग भी हैं, इन्हीं लोगों की मदद से गोपीनाथ अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं.

जीआर गोपीनाथ के इस सपने के सच होने की कहानी को बड़े पर्दे पर तमिल फिल्म स्टार 'जय भीम' फेम 'सूर्या' ने निभाया है.

निर्देशन, कोरियोग्राफी और अभिनय हैं कमाल

सुधा कोंगरा ने फिल्म के निर्देशन और कहानी लिखने का काम किया है, सुधा तमिल और तेलुगु सिनेमा का जाना-माना नाम हैं. हिंदी भाषी उनसे साला खड़ूस फिल्म की वजह से परिचित हैं, जिसमें उन्होंने निर्देशन का काम किया है.

सूराराई पोत्रु में स्क्रीन पर कभी कभी वह कहानी का समय और दिन दिखाने भर से ही दृश्यों में रंग भर देती हैं.

फिल्म के शुरुआती दृश्य में एक प्लेन इमरजेंसी लैंडिंग करता है और फिर इसकी कहानी कुछ समय पीछे चले जाती है. दर्शक फिल्म की शुरुआत से ही गोपीनाथ बने सूर्या से जुड़ जाते हैं और अंत तक उसकी जीत चाहते हैं.

फिल्म में बेहतरीन कोरियोग्राफी की वजह से खुलकर नाचना हो या अपने बीमार पिता से जल्दी मिलने के लिए लोगों के सामने हवाई जहाज के टिकट के पैसे मांगने के लिए गिड़गिड़ाना, सूर्या ने गोपीनाथ की कहानी को पूरी शिद्दत के साथ निभाया है.

सूराराई पोत्रु में सूर्या की पत्नी बनी युवा अभिनेत्री अपर्णा बालमुरली टैलेंट से भरी हुई हैं, वह एक सफल अभिनेत्री होने के साथ-साथ बेहतरीन सिंगर भी हैं. फिल्म में जितने भी दृश्यों में वह सूर्या के सामने हैं, कहीं भी वह उनसे कम नही लगी हैं और इसलिए उन्हें भी सूर्या के साथ इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है. इस फिल्म में गीतों के दौरान नृत्य करते हुए अपर्णा की अभिव्यक्ति कमाल की है.

नकारात्मक और कॉमेडी दोनों ही किरदारों को बखूबी निभाने के लिए मशहूर परेश रावल इस फिल्म में नकारात्मक किरदार में हैं और वह दर्शकों की नफरत बटोरने में सफल भी हुए हैं.

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सुधा का पटकथा लेखन और जी वी का बैकग्राउंड स्कोर

फिल्म ने पटकथा लेखन और बैकग्राउंड स्कोर के लिए भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता है इसलिए इन पर भी चर्चा करना जरूरी बन जाता है.

सुधा कोंगरा के पटकथा लेखन में पारंगत होने की वजह से फिल्म के कुछ महत्वपूर्ण दृश्य ठीक से बनने में कामयाब हुईं. सूर्या का राष्ट्रपति तक पहुंचना और बाइक से चलते सूर्या का ऑटो में बैठी अपर्णा को शादी के लिए प्रपोज करने वाले दृश्य याद रखने लायक हैं. इंटरनेट के शुरुआती समय और चिट्ठी के दिनों को दिखाने में भी कोई गलती नहीं हुई है.

सूराराई पोत्रु का बैकग्राउंड स्कोर जी वी प्रकाश कुमार द्वारा तैयार किया गया है. जी वी प्रकाश संगीतकार ए आर रहमान के भांजे हैं और उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. परेश रावल और सूर्या की पहली मुलाकात को बैकग्राउंड स्कोर के जरिए रोचक बना दिया गया है. बैकग्राउंड स्कोर की वजह से फिल्म के लगभग हर दृश्य को सीधे दर्शकों से कनेक्ट करवाने की सफल कोशिश करी गई है.

फिल्म की शूटिंग मदुरई, चैन्नई, चंडीगढ़ और दिल्ली में पूरी हुई है. पहाड़, तालाब, इंडिया गेट, फिल्म का छायांकन इन सब की खूबसूरती दर्शकों को सही से दिखाने में कामयाब रहा है.

फिल्म में हम सूर्या के घर आए अतिथियों को जमीन पर बैठ कर खाते देखते हैं और हिंदी सिनेमा में हम शायद ही यह दृश्य देखते हों. इस तरह दक्षिण का सिनेमा सीधे दर्शकों के दिल से जुड़ता है और यही उसकी सफलता का एक बड़ा कारण भी है.

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हेल्मेट न पुरस्कार लेने वालों का दिखा न देने वालों को

सूर्या इस फिल्म में कई बार बाइक चलाते हैं पर एक बार भी उन्हें हम हेल्मेट पहने नहीं देखते, इन दिनों जब नए यातायात नियमों की वजह से आम जनता से अधिक जुर्माना वसूला जा रहा है तब इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार देते इस विषय पर चर्चा हुई होगी या नहीं ये सोचने वाली बात है.

देर से आए फिर भी दुरस्त नहीं आए

2020 की फिल्मों को 2022 में पुरस्कार देना थोड़ा अखरता है. लॉकडाउन खुल जाने के बाद इन पुरस्कारों की घोषणा कर दी जानी चाहिए थी. इतनी देर से पुरस्कार मिलने पर पुरस्कारों की अहमियत में कहीं न कहीं कमी तो आ ही जाती है.

इतनी देर से पुरस्कार दिए जाने के बाद एक और बात है जो अखरती है, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार बड़ी ही सादगी से दिए जाते हैं. हम कई फिल्म पुरस्कारों के इवेंट को बड़ी ही चकाचौंध से होते देखते हैं, इसे भी एक पर्व की तरह मनाया जा सकता है.

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