रिची मेहता की सात भागों वाली थ्रिलर वेब सीरीज दिल्ली क्राइम सर्दी की उस रात 10.30 बजे की कहानी से शुरू होती है. शुरुआत के वॉइसओवर से पता चलता है कि कानून के रखवालों पर समस्याओं का एक बड़ा बोझ है. एक ऐसे शहर में जहां हर साल लगभग 11,000 घिनौने अपराध होते हैं, वहां ज्यादा काम करके कम पैसे में गुजारा करने वाली पुलिस फोर्स क्या-क्या कर सकती है और उनमें से भी ज्यादातर कर्मियों को ट्रैफिक ड्यूटी और वीआईपी सुरक्षा में लगा दिया जाता है.
पहला एपिसोड मूड को सेट करता है: यह तीखा है, भारी है और कड़ी चोट करता है. दिसम्बर 2012 की एक सर्द रात में दिल्ली की एक चलती हुई बस में एक युवा महिला के नृशंस गैंगरेप के पुलिस इन्वेस्टीगेशन के बारे में एक सीरीज और क्या हो सकती है?
शो की शुरुआत मारे-पीटे गए लड़के और गंभीर रूप से घायल और सड़क किनारे फेंकी गई लड़की की खोज के साथ होती है. केस की फाइलों के आधार पर, मेहता की पुलिस प्रक्रिया कुछ नाटकीय और सिनेमाई इफेक्ट के साथ वास्तविक है, जो हमें इन्वेस्टीगेशन के पीछे की सच्चाई की तरफ ले जाती है.
वह लड़का जब उस रात हुई वारदात के बारे में बताता है, तब आप बस इतना ही कह सकते हैं, ‘उस बस में मत जाना!’ यह सीरीज अपनी ओर खींचती है, क्योंकि हम पहले से उस घटना के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, फिर भी हम क्रिमिनल माइंड को समझने के लिए हर एक डिटेल को जानने के लिए बेताब होते हैं. और फिर जब मुख्य संदिग्ध रूखेपन से और मुंहजोरी से कहानी को अपने ढंग से पेश करता है, तो देखने वालों की भौहें तन जाती हैं.
मीडिया का बावलापन, जनाक्रोश, राजनीतिक हस्तक्षेप और यहां तक कि अवसरवाद को भी दिखाया गया है, लेकिन दिल्ली के अपराध का आशय यह नहीं है. बेरहमी साफ और व्यापक है लेकिन इसका ठीक करह से दिखाया नहीं गया है. इसका फोकस पुलिस और अधिकारियों पर ही रहता.
पुलिस का किरदार निभाने वाले अच्छे कलाकार हैं. उनके किरदार चेहरे पर मुस्कुराहट तो लाते हैं, साथ ही साथ कठोर भी दिखाई देते हैं. इसमें कुछ अच्छी इनसाइट्स भी हैं, जैसे एक शाकाहारी पुलिसकर्मी द्वारा एक सहकर्मी के चिकन डिश की पेशकश को रोकना और कैसे स्कूल का पुराना हिंदी गाना थोड़ा सुकून देता है.
जांच की अगुआ डीसीपी वर्तिका चतुर्वेदी (शेफाली शाह) खोजबीन प्रक्रिया में सहायता के लिए एक टीम तैयार करती हैं. शाह शो की एंकर हैं. उनकी एक किशोर बेटी है, यशस्विनी दयामा, जिसे ध्यान में रखते हुए वह चतुर्वेदी के पेशेवरपन के साथ न्याय करती हैं.
पुरुष प्रधान दुनिया में एक महिला के रूप में शाह, चतुर्वेदी की गुस्सा और झुंझलाहट को प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है.
इसके ठीक उलट हैं नौसिखिया नीति सिंह (रसिका दुगल). वह अपने अनुभवी कमांडिंग ऑफिसर के बिलकुल विपरीत हैं. राजेश तैलंग ईमानदारी और सहजता से ऑफिसर भूपेन्द्र सिंह का किरदार निभाते हैं, जो चतुर्वेदी के सेकंड इन कमांड अधिकारी हैं. आदिल हुसैन पुलिस कमिशनर का किरदार निभाते हैं और पुलिस के काम को राजनीतिक सत्ता के खेल के साथ संतुलित करने की कोशिश करते हैं. डेंजिल स्मिथ वर्तिका के पति का और विनोद शेरावत, जया भट्टाचार्य, गौरव राणा, गोपाल दत्त और अनुराग अरोड़ा भी अधिकारियों का किरदार निभाते हैं.
एक और खराब बात यह है कि अंग्रेजी संवाद अक्सर बनावटी लगते हैं और कई सपोर्टिंग एक्टर्स की परफॉरमेंस, विशेष रूप से जो आम नागरिक का किरदार निभा रहे हैं, अनुभवहीन है और ड्रामा की ताकत को कम करती है. हालांकि मेहता ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है. सिनेमेटोग्राफी, म्यूजिक, लोकेशन, डायलेक्ट इस सीरीज को व्यापक, विस्तृत और गहरा असर छोड़ने वाली सीरीज बनाती है.
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16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया गैंगरेप केस ने दिल्ली समेत पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. दिल्ली क्राइम नाम से एक नई वेब सीरीज बनाई गई है, जिसमें निर्भया केस का भी जिक्र है. इस केस की पड़ताल पूर्व डीसीपी (दक्षिणी दिल्ली) छाया शर्मा कर रही थीं. क्विंट ने उनसे बातचीत की और ये जानना चाहा कि कैसे इस 'ब्लाइंड' केस के तह तक दिल्ली पुलिस पहुंच सकी.
यहां देखिए इंटरव्यू:-
यह इंटरव्यू पहली बार 12 मई 2017 को पब्लिश हुआ था. नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज 'दिल्ली क्राइम' पर क्विंट ने इस पर खास बातचीत की.
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