ADVERTISEMENTREMOVE AD

Bangladesh Elections: शेख हसीना का PM बने रहना भारत के लिए क्यों अहम? Explained

बांग्लादेश में चुनावी प्रक्रिया क्या है? विपक्ष चुनाव का बहिष्कार क्यों कर रहा है और भारत के लिए यह चुनाव क्यों अहम है? | Explained

Published
कुंजी
5 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

Bangladesh Election 2024 Explained: भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में 7 जनवरी को आम चुनाव होने जा रहा हैं. चुनाव से पहले ही अनुमान लगाया जा रहा है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) चौथी बार सत्ता में वापसी कर सकती हैं. इसकी वजह है कि देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया है और वे इस चुनाव को शेख हसीना सरकार का ढोंग बता रहे हैं. फिलहाल, आवामी लीग की देश में सरकार है, जिसकी मुखिया शेख हसीना हैं. उनके आलोचकों का कहना है कि ये फर्जी चुनाव कराया जा रहा है.

आइए इस एक्सप्लेनर में जानते हैं बांग्लादेश में चुनावी प्रक्रिया क्या है? विपक्ष चुनाव का बहिष्कार क्यों कर रहा है और भारत के लिए यह चुनाव क्यों अहम है?

Bangladesh Elections: शेख हसीना का PM बने रहना भारत के लिए क्यों अहम? Explained

  1. 1. बांग्लादेश में कैसे होता है चुनाव?

    बांग्लादेश में राष्ट्रीय स्तर पर एक सदन वाली विधायिका का चुनाव होता है. यहां की राष्ट्रीय संसद को जातीय संघ कहा जाता है. बांग्लादेश के जातीय संघ में कुल 350 सदस्य (सांसद) हैं जिनमें से 300 सदस्य सीधे वोटिंग के माध्यम से चुने जाते हैं. वे जीतने के बाद संसद में अगले 5 साल तक एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.

    इसके अलावा बाकी बचीं 50 सीटें उन महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं जो सत्तारूढ़ दल या गठबंधन द्वारा चुनी जाती हैं.

    इस बार आम चुनाव के लिए मतदान 7 जनवरी को सुबह 8 बजे (स्थानीय समय) शुरू होगा और शाम 4 बजे समाप्त होगा. इसके तुरंत बाद वोटों की गिनती शुरू हो जाएगी और शुरुआती नतीजे 8 जनवरी तक आने की उम्मीद है.

    रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार 300 संसदीय सीटों के लिए कुल 1,896 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस बार कुल उम्मीदवारों में से 5.1% महिलाएं हैं, जो अब तक की सबसे अधिक हिस्सेदारी है.

    Expand
  2. 2. बांग्लादेश में सरकार का मुखिया कौन होता है?

    भारत की तरह ही प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है. जबकि राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है जिसका चुनाव राष्ट्रीय संसद द्वारा किया जाता है. राष्ट्रपति एक औपचारिक पद है और सरकार चलाने पर उसका कोई वास्तविक नियंत्रण नहीं होता है. बांग्लादेश की आजादी से लेकर 1991 में संवैधानिक सुधार तक, राष्ट्रपति का चुनाव भी जनता करती थी. हालांकि ऐसा केवल तीन मौकों पर हुआ. संवैधानिक सुधार और 1991 में संसदीय लोकतंत्र की वापसी के बाद राष्ट्रपति का कार्यालय काफी हद तक एक औपचारिक पद रहा है.

    राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, हालांकि वे अगले राष्ट्रपति के चुने जाने तक पद पर बने रहते हैं.

    Expand
  3. 3. बांग्लादेश में कितनी पार्टी का सिस्टम? वहां अब तक कितने चुनाव हुए हैं?

    बांग्लादेश में अनौपचारिक रूप से ही सही लेकिन दो-दलीय प्रणाली दिखती है. इसका मतलब है कि दो प्रमुख राजनीतिक दल या गठबंधन हैं जो मुख्य रूप से चुनाव लड़ते हैं- इसमें से एक का नेतृत्व बांग्लादेश अवामी लीग और दूसरे का नेतृत्व बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी करती है. जातीय पार्टी (इरशाद) को भी पिछले कुछ वर्षों में चुनावी सफलता मिली है. पिछले कुछ वर्षों से विपक्ष में रहने के बाद 2019 के आम चुनाव में जातीय पार्टी (इरशाद) ने बांग्लादेश अवामी लीग के नेतृत्व वाले ग्रैंड अलायंस में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की. हालांकि, पार्टी अगले दिन पीछे हट गई और घोषणा की कि उसका इरादा विपक्ष का हिस्सा बने रहने का है.

    1971 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से राष्ट्रीय संसद के सदस्यों को चुनने के लिए बांग्लादेश में कुल 11 आम चुनाव हुए हैं. जिसमें से 5 बार अवामी लीग, चार बार बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और दो बार जातीय पार्टी (इरशाद) ने सरकार बनाई है.

    Expand
  4. 4. पिछले चुनाव में क्या हुआ था?

    30 दिसंबर 2018 को हुए पिछले आम चुनाव में 80% वोट पड़े थे. प्रधान मंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश अवामी लीग ने 302 सीटों जीतकर सरकार बनाई. जबकि जातीय पार्टी केवल 26 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल बन गई. वहीं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी मात्र 7 सीट हासिल कर पाई.

    Expand
  5. 5. इसबार विपक्ष चुनाव का विरोध क्यों कर रहा है?

    पूर्व प्रधान मंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व में मुख्य विपक्षी पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) इस बार चुनाव का बहिष्कार कर रही है. बीएनपी और उनके सहयोगी दलों की मांग है कि जब तक नया चुनाव न हो जाए, शेख हसीना को प्रधानमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए.

    उनकी मांग है अंतरिम सरकार की देखरेख में चुनाव हो और नतीजों के बाद नई सरकार बने. हालांकि आवामी लीग की मौजूदा सरकार को यह मंजूर नहीं है.

    विपक्षी नेता तारिक रहमान ने आम चुनावों को शेख हसीना के शासन को मजबूत करने के लिए बनाया गया एक 'दिखावा' करार दिया है. पिछले साल उनकी पार्टी ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. 2023 में विरोध अभियान के दौरान कम से कम 11 लोग मारे गए और उनके हजारों समर्थकों को गिरफ्तार किया गया. एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए रहमान ने कहा कि उनकी पार्टी के लिए पहले से ही निर्धारित परिणाम वाले चुनाव में लड़ना अनुचित होगा.

    Expand
  6. 6. शेख हसीना का अबतक का कार्यकाल कैसा रहा? 

    बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व में कुछ आर्थिक प्रगति हुई और और उसकी सराहना भी हुई है. विश्व बैंक के अनुसार, देश ने अपनी आबादी को खिलाने के लिए संघर्ष करने से लेकर खाद्य निर्यातक बनने की ओर कदम बढ़ाया है.

    2006 में बांग्लादेश की जीडीपी 71 अरब डॉलर थी जो 2022 में बढ़कर 460 अरब डॉलर तक पहुंच गयी. यही वजह रही कि बांग्लादेश को भारत के बाद दक्षिण एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थान हासिल हुआ है.

    देश के सामाजिक संकेतक फले-फूले हैं. 98% लड़कियां अब प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रही हैं. हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग में बांग्लादेश आगे बढ़ा है और सैमसंग जैसी बड़ी कंपनी चीन छोड़कर यहां आ रही है.

    पिछले एक दशक में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय तीन गुना हो गई है, विश्व बैंक का अनुमान है कि पिछले दो दशकों में 25 मिलियन से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं. इसके अलावा, सितंबर 2017 में, बांग्लादेश सरकार ने म्यांमार से रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा रोकने का आह्वान करते हुए लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण दी- यह एक ऐसा कदम था जिसे बांग्लादेश में व्यापक समर्थन मिला और वैश्विक स्तर पर प्रशंसा भी मिली.

    हालांकि, बांग्लादेश महामारी के बाद आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है, जीवनयापन की बढ़ती लागत और विदेशी भंडार में गिरावट का सामना कर रहा है. विदेशी ऋण में 240 प्रतिशत की वृद्धि के बाद ढाका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से वित्तीय सहायता मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा.
    Expand
  7. 7. बांग्लादेश के चुनाव का भारत पर क्या असर पड़ेगा?

    भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्ते की नींव ऐतिहासिक, पारंपरिक और भाषाई आधार पर है.  प्रतिष्ठित पत्रकार और आउटलुक के पूर्व उप संपादक एसएनएम आब्दी क्विंट हिंदी के लिए लिखते हैं कि बांग्लादेश सिर्फ हमारे पड़ोस में पाकिस्तान, नेपाल, भूटान या श्रीलंका जैसा कोई दूसरा देश नहीं है, यह उससे कहीं अधिक है. भौगोलिक दृष्टि से, बांग्लादेश अच्छी तरह से और सही मायने में भारत के "अंदर" अंतर्निहित है. म्यांमार और दक्षिण में बंगाल की खाड़ी के पानी के साथ एक छोटी सीमा को छोड़कर, बांग्लादेश सभी तरफ से पांच भारतीय राज्यों -पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम से घिरा हुआ है. उस अर्थ में, बांग्लादेश, वास्तव में भारत के "अंदर" है और इसलिए पारंपरिक अर्थ में पड़ोसी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. स्वाभाविक रूप से, बांग्लादेश की घरेलू राजनीति और शासन यानी वहां की सरकार दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत पर अधिक प्रभाव डालती है.

    1996 में अपने पहले कार्यकाल के बाद से ही शेख हसीना ने भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं और उन्होंने वर्षों से लगातार अपना रुख बनाए रखा है. यह कोई रहस्य की बात नहीं है कि भारत सरकार यह पुरजोर चाहेगी कि हसीना के हाथ में ही बांग्लादेश की बागडोर रहे.

    भारत को डर है कि बीएनपी और उसके सहयोगी जमात-ए-इस्लामी की वापसी से बांग्लादेश उल्फा जैसे कट्टरपंथियों और अलगाववादी ताकतों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन सकता है, जैसा कि तब हुआ था जब गठबंधन ने 2001 और 2006 के बीच सत्ता संभाली थी.

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

    Expand

बांग्लादेश में कैसे होता है चुनाव?

बांग्लादेश में राष्ट्रीय स्तर पर एक सदन वाली विधायिका का चुनाव होता है. यहां की राष्ट्रीय संसद को जातीय संघ कहा जाता है. बांग्लादेश के जातीय संघ में कुल 350 सदस्य (सांसद) हैं जिनमें से 300 सदस्य सीधे वोटिंग के माध्यम से चुने जाते हैं. वे जीतने के बाद संसद में अगले 5 साल तक एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इसके अलावा बाकी बचीं 50 सीटें उन महिलाओं के लिए आरक्षित होती हैं जो सत्तारूढ़ दल या गठबंधन द्वारा चुनी जाती हैं.

इस बार आम चुनाव के लिए मतदान 7 जनवरी को सुबह 8 बजे (स्थानीय समय) शुरू होगा और शाम 4 बजे समाप्त होगा. इसके तुरंत बाद वोटों की गिनती शुरू हो जाएगी और शुरुआती नतीजे 8 जनवरी तक आने की उम्मीद है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार 300 संसदीय सीटों के लिए कुल 1,896 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस बार कुल उम्मीदवारों में से 5.1% महिलाएं हैं, जो अब तक की सबसे अधिक हिस्सेदारी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बांग्लादेश में सरकार का मुखिया कौन होता है?

भारत की तरह ही प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है. जबकि राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है जिसका चुनाव राष्ट्रीय संसद द्वारा किया जाता है. राष्ट्रपति एक औपचारिक पद है और सरकार चलाने पर उसका कोई वास्तविक नियंत्रण नहीं होता है. बांग्लादेश की आजादी से लेकर 1991 में संवैधानिक सुधार तक, राष्ट्रपति का चुनाव भी जनता करती थी. हालांकि ऐसा केवल तीन मौकों पर हुआ. संवैधानिक सुधार और 1991 में संसदीय लोकतंत्र की वापसी के बाद राष्ट्रपति का कार्यालय काफी हद तक एक औपचारिक पद रहा है.

राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, हालांकि वे अगले राष्ट्रपति के चुने जाने तक पद पर बने रहते हैं.

0

बांग्लादेश में कितनी पार्टी का सिस्टम? वहां अब तक कितने चुनाव हुए हैं?

बांग्लादेश में अनौपचारिक रूप से ही सही लेकिन दो-दलीय प्रणाली दिखती है. इसका मतलब है कि दो प्रमुख राजनीतिक दल या गठबंधन हैं जो मुख्य रूप से चुनाव लड़ते हैं- इसमें से एक का नेतृत्व बांग्लादेश अवामी लीग और दूसरे का नेतृत्व बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी करती है. जातीय पार्टी (इरशाद) को भी पिछले कुछ वर्षों में चुनावी सफलता मिली है. पिछले कुछ वर्षों से विपक्ष में रहने के बाद 2019 के आम चुनाव में जातीय पार्टी (इरशाद) ने बांग्लादेश अवामी लीग के नेतृत्व वाले ग्रैंड अलायंस में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा की. हालांकि, पार्टी अगले दिन पीछे हट गई और घोषणा की कि उसका इरादा विपक्ष का हिस्सा बने रहने का है.

1971 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से राष्ट्रीय संसद के सदस्यों को चुनने के लिए बांग्लादेश में कुल 11 आम चुनाव हुए हैं. जिसमें से 5 बार अवामी लीग, चार बार बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और दो बार जातीय पार्टी (इरशाद) ने सरकार बनाई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पिछले चुनाव में क्या हुआ था?

30 दिसंबर 2018 को हुए पिछले आम चुनाव में 80% वोट पड़े थे. प्रधान मंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश अवामी लीग ने 302 सीटों जीतकर सरकार बनाई. जबकि जातीय पार्टी केवल 26 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल बन गई. वहीं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी मात्र 7 सीट हासिल कर पाई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसबार विपक्ष चुनाव का विरोध क्यों कर रहा है?

पूर्व प्रधान मंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व में मुख्य विपक्षी पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) इस बार चुनाव का बहिष्कार कर रही है. बीएनपी और उनके सहयोगी दलों की मांग है कि जब तक नया चुनाव न हो जाए, शेख हसीना को प्रधानमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए.

उनकी मांग है अंतरिम सरकार की देखरेख में चुनाव हो और नतीजों के बाद नई सरकार बने. हालांकि आवामी लीग की मौजूदा सरकार को यह मंजूर नहीं है.

विपक्षी नेता तारिक रहमान ने आम चुनावों को शेख हसीना के शासन को मजबूत करने के लिए बनाया गया एक 'दिखावा' करार दिया है. पिछले साल उनकी पार्टी ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. 2023 में विरोध अभियान के दौरान कम से कम 11 लोग मारे गए और उनके हजारों समर्थकों को गिरफ्तार किया गया. एक मीडिया संस्थान से बात करते हुए रहमान ने कहा कि उनकी पार्टी के लिए पहले से ही निर्धारित परिणाम वाले चुनाव में लड़ना अनुचित होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शेख हसीना का अबतक का कार्यकाल कैसा रहा? 

बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व में कुछ आर्थिक प्रगति हुई और और उसकी सराहना भी हुई है. विश्व बैंक के अनुसार, देश ने अपनी आबादी को खिलाने के लिए संघर्ष करने से लेकर खाद्य निर्यातक बनने की ओर कदम बढ़ाया है.

2006 में बांग्लादेश की जीडीपी 71 अरब डॉलर थी जो 2022 में बढ़कर 460 अरब डॉलर तक पहुंच गयी. यही वजह रही कि बांग्लादेश को भारत के बाद दक्षिण एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थान हासिल हुआ है.

देश के सामाजिक संकेतक फले-फूले हैं. 98% लड़कियां अब प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रही हैं. हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग में बांग्लादेश आगे बढ़ा है और सैमसंग जैसी बड़ी कंपनी चीन छोड़कर यहां आ रही है.

पिछले एक दशक में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय तीन गुना हो गई है, विश्व बैंक का अनुमान है कि पिछले दो दशकों में 25 मिलियन से अधिक नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं. इसके अलावा, सितंबर 2017 में, बांग्लादेश सरकार ने म्यांमार से रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा रोकने का आह्वान करते हुए लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण दी- यह एक ऐसा कदम था जिसे बांग्लादेश में व्यापक समर्थन मिला और वैश्विक स्तर पर प्रशंसा भी मिली.

हालांकि, बांग्लादेश महामारी के बाद आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है, जीवनयापन की बढ़ती लागत और विदेशी भंडार में गिरावट का सामना कर रहा है. विदेशी ऋण में 240 प्रतिशत की वृद्धि के बाद ढाका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से वित्तीय सहायता मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बांग्लादेश के चुनाव का भारत पर क्या असर पड़ेगा?

भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्ते की नींव ऐतिहासिक, पारंपरिक और भाषाई आधार पर है.  प्रतिष्ठित पत्रकार और आउटलुक के पूर्व उप संपादक एसएनएम आब्दी क्विंट हिंदी के लिए लिखते हैं कि बांग्लादेश सिर्फ हमारे पड़ोस में पाकिस्तान, नेपाल, भूटान या श्रीलंका जैसा कोई दूसरा देश नहीं है, यह उससे कहीं अधिक है. भौगोलिक दृष्टि से, बांग्लादेश अच्छी तरह से और सही मायने में भारत के "अंदर" अंतर्निहित है. म्यांमार और दक्षिण में बंगाल की खाड़ी के पानी के साथ एक छोटी सीमा को छोड़कर, बांग्लादेश सभी तरफ से पांच भारतीय राज्यों -पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम से घिरा हुआ है. उस अर्थ में, बांग्लादेश, वास्तव में भारत के "अंदर" है और इसलिए पारंपरिक अर्थ में पड़ोसी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. स्वाभाविक रूप से, बांग्लादेश की घरेलू राजनीति और शासन यानी वहां की सरकार दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत पर अधिक प्रभाव डालती है.

1996 में अपने पहले कार्यकाल के बाद से ही शेख हसीना ने भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं और उन्होंने वर्षों से लगातार अपना रुख बनाए रखा है. यह कोई रहस्य की बात नहीं है कि भारत सरकार यह पुरजोर चाहेगी कि हसीना के हाथ में ही बांग्लादेश की बागडोर रहे.

भारत को डर है कि बीएनपी और उसके सहयोगी जमात-ए-इस्लामी की वापसी से बांग्लादेश उल्फा जैसे कट्टरपंथियों और अलगाववादी ताकतों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन सकता है, जैसा कि तब हुआ था जब गठबंधन ने 2001 और 2006 के बीच सत्ता संभाली थी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×