ADVERTISEMENTREMOVE AD

Brazil की संसद से सुप्रीम कोर्ट तक, लोकतंत्र पर हमले में सेना का हाथ? 5 बड़े सवाल

Brazil Attack: Jair Bolsonaro के हजारों समर्थकों ने संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया, क्यों?

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

ब्राजील में अराजकता फैली जब 8 जनवरी, 2023 को पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो (Jair Bolsonaro) के हजारों कट्टर दक्षिणपंथी समर्थकों ने वहां की संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया. इस पूरे वाकये ने आज से लगभग 2 साल पहले 6 जनवरी 2021 को US कैपिटल पर हुए ट्रंप समर्थकों के हमले की याद दिला दी. उसबार की तरह ही इस बार भी प्रदर्शनकारियों को इन महत्वपूर्ण इमारतों की सुरक्षा का उल्लंघन करते हुए और वहां मौजूद पुलिसकर्मियों की पिटाई करते देखा गया.

हजारों की तादाद में हिंसक भीड़ का यह बवाल जेयर बोल्सोनारो के राष्ट्रपति चुनाव में हारने के कुछ हफ्ते बाद सामने आया है. इस चुनाव में जीत हासिल कर पूर्व लेफ्टिस्ट राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने फिर से राष्ट्रपति पद पर वापसी की है.

हमने डेनवर यूनिवर्सिटी में ब्राजील की राजनीति के एक्सपर्ट राफेल इओरिस से सवाल किए और इस हमले के अर्थ, उसकी वजह और आगे क्या हो सकता है, यह समझने की कोशिश की. हमने यह भी जाना कि क्या इस हिंसक भीड़ को वहां की आर्मी का छुपा समर्थन मिला हुआ है.

Brazil की संसद से सुप्रीम कोर्ट तक, लोकतंत्र पर हमले में सेना का हाथ? 5 बड़े सवाल

  1. 1. ब्राजील की संसद, SC और राष्ट्रपति भवन पर भीड़ के तोड़-फोड़ के पीछे कौन था?

    हमने जो कुछ देखा उसके पीछे बोल्सोनारो के हजारों कट्टर समर्थक थे- जो उनके अति दक्षिणपंथी एजेंडे को मानते हैं और हाल के चुनाव में मिली हार के बाद मामले को अपने हाथों में लेने का प्रयास कर रहे हैं. भले ही इस हिंसक बवाल के समय बोल्सोनारो ब्राजील की राजधानी में नहीं बल्कि अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में थे, मेरा मानना ​​है कि जो हुआ उसके लिए अंततः वही जिम्मेदार हैं.

    जब वे खुद सत्ता में थे, उन्होंने राजनीतिक संस्थानों में जनता के अविश्वास को प्रोत्साहित किया, कांग्रेस को बंद करने की वकालत की और सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा. और यही संस्थान प्रदर्शनकारियों के टारगेट पर रहे.

    जो हुआ उसके पीछे और लोग भी थे. ब्राजील में पिछले कई हफ्तों से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, और ऐसे प्रदर्शनों को फंड देने वाली बड़ी जमात है, जैसे कि बड़े ज़मींदार और व्यापारिक समूह जिन्होंने हजारों बोल्सनारो समर्थकों को राजधानी ब्रासीलिया तक पहुंचने के लिए बसों का किराया दिया.

    साथ ही फिर वहां की मिलिट्री की भूमिका है. सेना के बड़े अधिकारी लंबे समय से बोल्सोनारो के कट्टर दक्षिणपंथी एजेंडे का समर्थन करते रहे हैं. यहां तक ​​कि हाल ही में उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में तख्तापलट की मांग को लेकर हुए कई प्रदर्शनों को अपना साफ समर्थन दिखाया है.

    देश की राजधानी में संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन जैसे प्रमुख संस्थानों पर हमला होता है और उन्हें रोकने वाली सुरक्षा इतनी कमजोर दिखती है. यह स्थिति मुझे यह सवाल पूछने के लिए मजबूर करती है कि: क्या मिलिट्री लापरवाह थी, या उनकी इसमें मिलीभगत है?

    Expand
  2. 2. क्या आप ब्राजील की इस अराजकता में सेना की भूमिका पर विस्तार से बता सकते हैं?

    यह सही है कि सड़क पर सुरक्षा वहां के सशस्त्र बलों की जिम्मेदारी नहीं है. लेकिन बोल्सोनारो के एजेंडे के लिए वहां की सेना के निरंतर समर्थन ने राज्यों के सैन्य पुलिस के सदस्यों के बीच भी ऐसे विचारों की वैधता में मदद की है. साथ ही सेना की पुलिस (मिलिट्री पुलिस) को ही राजधानी ब्रासीलिया में प्रदर्शनों पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.

    बोल्सोनारो समर्थक प्रदर्शनकारी चुनाव बाद सैन्य हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं. वे दावा कर रहे हैं- बिना किसी सबूत के - कि चुनाव में धांधली हुई और इसी वजह से लूला ने राष्ट्रपति बनकर सत्ता में वापसी की है.

    वे उम्मीद कर रहे हैं कि मिलिट्री का कोई सीनियर मेंबर लूला को बाहर करने के लिए प्रदर्शन का समर्थन करेगा. मिलिट्री के कई सीनियर मेंबर ने बोल्सनारो के लिए समर्थन दिखाया है और सेना के ठिकानों के पास बने प्रदर्शन शिविरों पर एक्शन लेने से परहेज किया है.

    ब्राजील में सेना का नागरिक सरकार को स्वीकार नहीं करने का एक लंबा इतिहास रहा है. आखिरी सैन्य तख्तापलट 1964 में हुआ था. बेशक, तब से अब परिस्थितियां अलग हैं. तब शीत युद्ध उफान पर था और इसे तख्तापलट को अमेरिका सहित कई बाहरी सरकारों ने समर्थन दिया था.

    सेना के बड़े अधिकारियों को सरकार में पद देकर बोल्सोनारो ने ब्राजील की सेना के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं. बोल्सोनारो के करीबी दक्षिणपंथी जनरल रक्षा मंत्री, चीफ ऑफ स्टेट और यहां तक ​​कि COVID-19 महामारी के बीच स्वास्थ्य मंत्री बनाये गए थे.

    अनुमान है कि पिछले आठ वर्षों में लगभग 6,000 सक्रिय सैन्य कर्मियों को सरकार में गैर-सैन्य पदों पर नौकरी दी गई थी.

    नौसेना और वायु सेना दोनों में कुछ जनरल विशेष रूप से विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करते रहे हैं. चुनाव के बाद से कई जनरलों ने घोषणा की है कि प्रदर्शनकारियों द्वारा सैन्य हस्तक्षेप की मांग वैध है.

    मेरी समझ से यह कहना उचित है कि ब्राजील में जो कुछ भी हुआ उसे सेना के कुछ लोग बढ़ावा दे रहे थे. लेकिन जब हंगामा हुआ तो सशस्त्र बल शांत हो गए. हो सकता है कि सेना ने विरोध को समर्थन दिया हो, लेकिन बात पारंपरिक तख्तापलट जैसी नहीं थी. सड़कों पर टैंक नहीं उतरा.

    Expand
  3. 3. तो क्या आप इसे 'तख्तापलट की कोशिश' मानेंगे?

    यही तो मूल सवाल है. 8 जनवरी की घटनाएं एक ऐसे विरोध-प्रदर्शन की तरह लग रही थीं जो हिंसक हो गयी और काबू से बाहर हो गयी. कुछ इमारतों के अंदर तोड़फोड़ इस बात की पुष्टि करती है. लेकिन कई हफ्तों से ये भीड़ तैयार हो रही थी और यह अच्छी तरह से वित्तपोषित था, जिसमें बोल्सनारो समर्थकों को राजधानी तक लाने के लिए सैकड़ों बसों का पैसा फंड किया गया था. कई प्रदर्शनकारियों का खुला उद्देश्य सैन्य हस्तक्षेप था. तो उस अर्थ में, मैं इसे तख्तापलट के प्रयास के समान ही कहूंगा.

    Expand
  4. 4. यह हमला हमें ब्राजील में लोकतंत्र के बारे में क्या बताता है?

    ब्राजील एक चौराहे पर खड़ा है. बोल्सोनारो के शासन में देश लोकतंत्र के मोर्चे पर पीछे गया, क्योंकि खुद राष्ट्रपति के हमले और घोटालों से लोगों का लोकतांत्रिक संस्थानों में भरोसा कमजोर होता गया.

    और बोल्सोनारो द्वारा लोकतंत्र को कमजोर करने के बावजूद देश के करीब आधे लोगों ने उन्हें वोट दिया. लेकिन लूला की जीत से यह संकेत मिलता है कि बोल्सोनारो के चार साल के शासन के बाद उससे भी अधिक लोग देश में लोकतांत्रिक संस्थानों का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं.

    तो कुल मिलकर यह ब्राजील के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. ब्राजील में मीडिया ने प्रदर्शनकारियों के हिंसक बवाल की कड़ी निंदा की है. आने वाले दिनों में, 'क्या हुआ' इसकी जांच होगी और उम्मीद है कि कुछ हद तक जवाबदेही भी तय होगी.लेकिन लाख टके का सवाल है कि लूला अपनी सेना में मौजूद लोकतंत्र विरोधी तत्वों को कैसे हैंडल करते हैं.
    Expand
  5. 5. क्या ब्राजील के इस उन्माद की US कैपिटल पर हुए 6 जनवरी 2021 के हमले की तुलना जायज है?

    ट्रंप और बोल्सोनारो, दोनों के समर्थक अपने नेता की हार के पीछे चुनावी धांधली का दावा करते हैं. ये समर्थक अति दक्षिणपंथी हैं और बंदूक के अधिकार से लेकर पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं जैसे मुद्दों का समर्थन करते हैं.

    दोनों में एक महत्वपूर्ण अंतर सेना की भूमिका है. US कैपिटल हिल में 6 जनवरी 2021 के हमले में पूर्व सैन्यकर्मी जरूर मौजूद थे, लेकिन शीर्ष अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने इसकी पुरजोर निंदा की थी. साथ ही 8 जनवरी 2023 को ब्रासीलिया में हुए हमले के विपरीत अमेरिका में प्रदर्शनकारी सैन्य हस्तक्षेप की मांग नहीं कर रहे थे.

    दोनों में कुछ स्पष्ट समानताएं भी हैं - दोनों में हमने कट्टर दक्षिणपंथी, शक्तिशाली समूहों और व्यक्तियों को एक देश की दिशा को चुनावी नतीजे को इनकार करते हुए और लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला करने की कोशिश करते हुए देखा.

    अब यह देखना होगा कि क्या कैपिटल हिल के उन्माद के बाद अमेरिका में जो कुछ हुआ, वैसे ब्राजील में भी होगा?

    अमेरिका में अधिकारियों ने इसमें शामिल बहुत से लोगों को दंडित करने का अच्छा काम किया है. लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि हम ब्राजील में भी ऐसा ही देखेंगे, क्योंकि उन्हें देश भर में सेना और पुलिस बलों के भीतर शक्तिशाली समूहों का सामना करना पड़ेगा.

    (यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है. यह आर्टिकल मूल रूप से द कन्वर्सेशन पर प्रकाशित हुआ था. ओरिजिनल आर्टिकल आप यहां पढ़ सकते हैं.)

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

    Expand

ब्राजील की संसद, SC और राष्ट्रपति भवन पर भीड़ के तोड़-फोड़ के पीछे कौन था?

हमने जो कुछ देखा उसके पीछे बोल्सोनारो के हजारों कट्टर समर्थक थे- जो उनके अति दक्षिणपंथी एजेंडे को मानते हैं और हाल के चुनाव में मिली हार के बाद मामले को अपने हाथों में लेने का प्रयास कर रहे हैं. भले ही इस हिंसक बवाल के समय बोल्सोनारो ब्राजील की राजधानी में नहीं बल्कि अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में थे, मेरा मानना ​​है कि जो हुआ उसके लिए अंततः वही जिम्मेदार हैं.

जब वे खुद सत्ता में थे, उन्होंने राजनीतिक संस्थानों में जनता के अविश्वास को प्रोत्साहित किया, कांग्रेस को बंद करने की वकालत की और सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा. और यही संस्थान प्रदर्शनकारियों के टारगेट पर रहे.

जो हुआ उसके पीछे और लोग भी थे. ब्राजील में पिछले कई हफ्तों से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, और ऐसे प्रदर्शनों को फंड देने वाली बड़ी जमात है, जैसे कि बड़े ज़मींदार और व्यापारिक समूह जिन्होंने हजारों बोल्सनारो समर्थकों को राजधानी ब्रासीलिया तक पहुंचने के लिए बसों का किराया दिया.

साथ ही फिर वहां की मिलिट्री की भूमिका है. सेना के बड़े अधिकारी लंबे समय से बोल्सोनारो के कट्टर दक्षिणपंथी एजेंडे का समर्थन करते रहे हैं. यहां तक ​​कि हाल ही में उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में तख्तापलट की मांग को लेकर हुए कई प्रदर्शनों को अपना साफ समर्थन दिखाया है.

देश की राजधानी में संसद, सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन जैसे प्रमुख संस्थानों पर हमला होता है और उन्हें रोकने वाली सुरक्षा इतनी कमजोर दिखती है. यह स्थिति मुझे यह सवाल पूछने के लिए मजबूर करती है कि: क्या मिलिट्री लापरवाह थी, या उनकी इसमें मिलीभगत है?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या आप ब्राजील की इस अराजकता में सेना की भूमिका पर विस्तार से बता सकते हैं?

यह सही है कि सड़क पर सुरक्षा वहां के सशस्त्र बलों की जिम्मेदारी नहीं है. लेकिन बोल्सोनारो के एजेंडे के लिए वहां की सेना के निरंतर समर्थन ने राज्यों के सैन्य पुलिस के सदस्यों के बीच भी ऐसे विचारों की वैधता में मदद की है. साथ ही सेना की पुलिस (मिलिट्री पुलिस) को ही राजधानी ब्रासीलिया में प्रदर्शनों पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.

बोल्सोनारो समर्थक प्रदर्शनकारी चुनाव बाद सैन्य हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं. वे दावा कर रहे हैं- बिना किसी सबूत के - कि चुनाव में धांधली हुई और इसी वजह से लूला ने राष्ट्रपति बनकर सत्ता में वापसी की है.

वे उम्मीद कर रहे हैं कि मिलिट्री का कोई सीनियर मेंबर लूला को बाहर करने के लिए प्रदर्शन का समर्थन करेगा. मिलिट्री के कई सीनियर मेंबर ने बोल्सनारो के लिए समर्थन दिखाया है और सेना के ठिकानों के पास बने प्रदर्शन शिविरों पर एक्शन लेने से परहेज किया है.

ब्राजील में सेना का नागरिक सरकार को स्वीकार नहीं करने का एक लंबा इतिहास रहा है. आखिरी सैन्य तख्तापलट 1964 में हुआ था. बेशक, तब से अब परिस्थितियां अलग हैं. तब शीत युद्ध उफान पर था और इसे तख्तापलट को अमेरिका सहित कई बाहरी सरकारों ने समर्थन दिया था.

सेना के बड़े अधिकारियों को सरकार में पद देकर बोल्सोनारो ने ब्राजील की सेना के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं. बोल्सोनारो के करीबी दक्षिणपंथी जनरल रक्षा मंत्री, चीफ ऑफ स्टेट और यहां तक ​​कि COVID-19 महामारी के बीच स्वास्थ्य मंत्री बनाये गए थे.

अनुमान है कि पिछले आठ वर्षों में लगभग 6,000 सक्रिय सैन्य कर्मियों को सरकार में गैर-सैन्य पदों पर नौकरी दी गई थी.

नौसेना और वायु सेना दोनों में कुछ जनरल विशेष रूप से विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करते रहे हैं. चुनाव के बाद से कई जनरलों ने घोषणा की है कि प्रदर्शनकारियों द्वारा सैन्य हस्तक्षेप की मांग वैध है.

मेरी समझ से यह कहना उचित है कि ब्राजील में जो कुछ भी हुआ उसे सेना के कुछ लोग बढ़ावा दे रहे थे. लेकिन जब हंगामा हुआ तो सशस्त्र बल शांत हो गए. हो सकता है कि सेना ने विरोध को समर्थन दिया हो, लेकिन बात पारंपरिक तख्तापलट जैसी नहीं थी. सड़कों पर टैंक नहीं उतरा.

तो क्या आप इसे 'तख्तापलट की कोशिश' मानेंगे?

यही तो मूल सवाल है. 8 जनवरी की घटनाएं एक ऐसे विरोध-प्रदर्शन की तरह लग रही थीं जो हिंसक हो गयी और काबू से बाहर हो गयी. कुछ इमारतों के अंदर तोड़फोड़ इस बात की पुष्टि करती है. लेकिन कई हफ्तों से ये भीड़ तैयार हो रही थी और यह अच्छी तरह से वित्तपोषित था, जिसमें बोल्सनारो समर्थकों को राजधानी तक लाने के लिए सैकड़ों बसों का पैसा फंड किया गया था. कई प्रदर्शनकारियों का खुला उद्देश्य सैन्य हस्तक्षेप था. तो उस अर्थ में, मैं इसे तख्तापलट के प्रयास के समान ही कहूंगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यह हमला हमें ब्राजील में लोकतंत्र के बारे में क्या बताता है?

ब्राजील एक चौराहे पर खड़ा है. बोल्सोनारो के शासन में देश लोकतंत्र के मोर्चे पर पीछे गया, क्योंकि खुद राष्ट्रपति के हमले और घोटालों से लोगों का लोकतांत्रिक संस्थानों में भरोसा कमजोर होता गया.

और बोल्सोनारो द्वारा लोकतंत्र को कमजोर करने के बावजूद देश के करीब आधे लोगों ने उन्हें वोट दिया. लेकिन लूला की जीत से यह संकेत मिलता है कि बोल्सोनारो के चार साल के शासन के बाद उससे भी अधिक लोग देश में लोकतांत्रिक संस्थानों का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं.

तो कुल मिलकर यह ब्राजील के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है. ब्राजील में मीडिया ने प्रदर्शनकारियों के हिंसक बवाल की कड़ी निंदा की है. आने वाले दिनों में, 'क्या हुआ' इसकी जांच होगी और उम्मीद है कि कुछ हद तक जवाबदेही भी तय होगी.लेकिन लाख टके का सवाल है कि लूला अपनी सेना में मौजूद लोकतंत्र विरोधी तत्वों को कैसे हैंडल करते हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या ब्राजील के इस उन्माद की US कैपिटल पर हुए 6 जनवरी 2021 के हमले की तुलना जायज है?

ट्रंप और बोल्सोनारो, दोनों के समर्थक अपने नेता की हार के पीछे चुनावी धांधली का दावा करते हैं. ये समर्थक अति दक्षिणपंथी हैं और बंदूक के अधिकार से लेकर पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं जैसे मुद्दों का समर्थन करते हैं.

दोनों में एक महत्वपूर्ण अंतर सेना की भूमिका है. US कैपिटल हिल में 6 जनवरी 2021 के हमले में पूर्व सैन्यकर्मी जरूर मौजूद थे, लेकिन शीर्ष अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने इसकी पुरजोर निंदा की थी. साथ ही 8 जनवरी 2023 को ब्रासीलिया में हुए हमले के विपरीत अमेरिका में प्रदर्शनकारी सैन्य हस्तक्षेप की मांग नहीं कर रहे थे.

दोनों में कुछ स्पष्ट समानताएं भी हैं - दोनों में हमने कट्टर दक्षिणपंथी, शक्तिशाली समूहों और व्यक्तियों को एक देश की दिशा को चुनावी नतीजे को इनकार करते हुए और लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला करने की कोशिश करते हुए देखा.

अब यह देखना होगा कि क्या कैपिटल हिल के उन्माद के बाद अमेरिका में जो कुछ हुआ, वैसे ब्राजील में भी होगा?

अमेरिका में अधिकारियों ने इसमें शामिल बहुत से लोगों को दंडित करने का अच्छा काम किया है. लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि हम ब्राजील में भी ऐसा ही देखेंगे, क्योंकि उन्हें देश भर में सेना और पुलिस बलों के भीतर शक्तिशाली समूहों का सामना करना पड़ेगा.

(यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है. यह आर्टिकल मूल रूप से द कन्वर्सेशन पर प्रकाशित हुआ था. ओरिजिनल आर्टिकल आप यहां पढ़ सकते हैं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×