भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission) में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC - Chief Election Commissioner) और दो अन्य निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioner) की नियुक्ति (Appoint) के संबंध में संसद के दोनों सदनों में नया बिल पेश हो चुका है.
इस बिल में बताया गया कि कैसे सीईसी और दो अन्य ईसी की नियुक्ति होगी और कौन उनकी नियुक्ति करेगा? कैसे बिल की मदद से नियुक्ति में भारत के चीफ जस्टिस की भूमिका हटा दी गयी है? साथ ही जानें कि अभी चुनाव आयोग के प्रमुख की नियुक्ति कैसे होती है? सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति को लेकर क्या कहा था? क्या संसद सुप्रीम कोर्ट की कही बात को टाल सकता है?
गौरतलब है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र निकाय है. यह देश में होने वाले लोकसभा, राज्यसभा और राज्य के विधानसभा और देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव को निष्पक्ष ढंग से करवाने के लिए जिम्मेदार है.
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में CJI का रोल नहीं, सरकार का दबदबा, बिल पर विवाद क्यों?
1. कैसे होती है चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
चुनाव आयोग का कार्यभार तीन सदस्यों पर होता है. एक- मुख्य निर्वाचन आयुक्त जो चुनाव आयोग के प्रमुख होते हैं. दूसरा, दो अन्य निर्वाचन आयुक्ति, जो प्रमुख के अधीन काम करते हैं.
संविधान के अनुसार कानून के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा तीनों को नियुक्ति किया जाएगा. लेकिन इन पदों पर नियुक्ति के लिए देश में अब तक कोई कानून नहीं बना है.
ऐसे में कानून मंत्रालय कुछ नामों की सिफारिशें प्रधानमंत्री के पास विचार के लिए भेजता है. फिर प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति तीनों को नियुक्त करते हैं.
Expand2. सुप्रीम कोर्ट को क्यों करना पड़ा हस्तक्षेप
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई थी. इस पीआईएल ने केंद्र द्वारा चुनाव आयोग के सदस्यों को नियुक्त करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. यानी याचिका में निष्पक्षता का सवाल उठाया गया और कहा गया कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र निकाय के सदस्यों को कैसे नियुक्त कर सकती है?
इसके बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की बेंच ने मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया क्योंकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 324 की बारीकी से जांच की जरूरत थी, जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त की भूमिका से जुड़ा है.
फिर 2 मार्च 2023 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक हाई पावर कमेटी को सीईसी और ईसी को चुनना होगा. इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस केएम जोसेफ कर रहे थे.
फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि, चूंकि संविधान के कहे अनुसार संसद ने कोई कानून नहीं बनाया इसलिए न्यायालय ने ये कदम उठाया है.
Expand3. संसद में पेश किए गए नए बिल में क्या है?
नए बिल के अनुसार, एक सर्च कमेटी का गठन किया जाएगा. इसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेगा. साथ ही इसमें दो अन्य सदस्य भी शामिल होंगे, जो सचिव रैंक के नीचे नहीं होंगे, इन्हें चुनाव से संबंधित ज्ञान और अनुभव होना जरूरी है.
ये कमेटी पांच लोगों का एक पैनल बनाएगी जो निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए योग्य होंगे.
बिल के मुताबिक, इन पांच लोगों के पैनल को सेलेक्शन कमेटी के पास भेजा जाएगा. इस कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे. कमेटी में शामिल केंद्रीय मंत्री को प्रधानमंत्री नामित करेंगे. ये कमेटी चुनाव आयोग के तीन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करेगी.
Expand4. क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट कर संसद नया कानून बना सकती है?
इस बिल के पेश होने से पहले मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक हाई पावर कमेटी को सीईसी और ईसी को चुनना होगा और अदालत ने कहा था कि संसद इस पर कानून बनाए.
अब संसद के पास अधिकार है कि वह अदालत के आदेश में बदलाव कर सकती है. यहां तक की कुछ मामलों में पूरे आदेश को भी पलट सकती है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने फैसला इस आधार पर सुनाया कि संसद ने कानून नहीं बनाया इसलिए अदालत को ये कदम उठाना पड़ रहा है. ऐसे में संसद अब कानून बना रही है.
लेकिन सवाल यही उठ रहा है कि अदालत ने जो फैसला दिया उससे समझ आता है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता बनी रेहगी. वहीं बिल में बताई गई इस सिलेक्शन कमेटी सवालों के कठघरे में हैं क्योंकि तीन सदस्यों में से दो सदस्य - एक पीएम, दूसरा पीएम द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
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कैसे होती है चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
चुनाव आयोग का कार्यभार तीन सदस्यों पर होता है. एक- मुख्य निर्वाचन आयुक्त जो चुनाव आयोग के प्रमुख होते हैं. दूसरा, दो अन्य निर्वाचन आयुक्ति, जो प्रमुख के अधीन काम करते हैं.
संविधान के अनुसार कानून के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा तीनों को नियुक्ति किया जाएगा. लेकिन इन पदों पर नियुक्ति के लिए देश में अब तक कोई कानून नहीं बना है.
ऐसे में कानून मंत्रालय कुछ नामों की सिफारिशें प्रधानमंत्री के पास विचार के लिए भेजता है. फिर प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति तीनों को नियुक्त करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट को क्यों करना पड़ा हस्तक्षेप
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई थी. इस पीआईएल ने केंद्र द्वारा चुनाव आयोग के सदस्यों को नियुक्त करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. यानी याचिका में निष्पक्षता का सवाल उठाया गया और कहा गया कि केंद्र सरकार चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र निकाय के सदस्यों को कैसे नियुक्त कर सकती है?
इसके बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की बेंच ने मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया क्योंकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 324 की बारीकी से जांच की जरूरत थी, जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त की भूमिका से जुड़ा है.
फिर 2 मार्च 2023 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक हाई पावर कमेटी को सीईसी और ईसी को चुनना होगा. इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस केएम जोसेफ कर रहे थे.
फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि, चूंकि संविधान के कहे अनुसार संसद ने कोई कानून नहीं बनाया इसलिए न्यायालय ने ये कदम उठाया है.
संसद में पेश किए गए नए बिल में क्या है?
नए बिल के अनुसार, एक सर्च कमेटी का गठन किया जाएगा. इसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेगा. साथ ही इसमें दो अन्य सदस्य भी शामिल होंगे, जो सचिव रैंक के नीचे नहीं होंगे, इन्हें चुनाव से संबंधित ज्ञान और अनुभव होना जरूरी है.
ये कमेटी पांच लोगों का एक पैनल बनाएगी जो निर्वाचन आयुक्त बनने के लिए योग्य होंगे.
बिल के मुताबिक, इन पांच लोगों के पैनल को सेलेक्शन कमेटी के पास भेजा जाएगा. इस कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे. कमेटी में शामिल केंद्रीय मंत्री को प्रधानमंत्री नामित करेंगे. ये कमेटी चुनाव आयोग के तीन महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करेगी.
क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट कर संसद नया कानून बना सकती है?
इस बिल के पेश होने से पहले मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक हाई पावर कमेटी को सीईसी और ईसी को चुनना होगा और अदालत ने कहा था कि संसद इस पर कानून बनाए.
अब संसद के पास अधिकार है कि वह अदालत के आदेश में बदलाव कर सकती है. यहां तक की कुछ मामलों में पूरे आदेश को भी पलट सकती है.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने फैसला इस आधार पर सुनाया कि संसद ने कानून नहीं बनाया इसलिए अदालत को ये कदम उठाना पड़ रहा है. ऐसे में संसद अब कानून बना रही है.
लेकिन सवाल यही उठ रहा है कि अदालत ने जो फैसला दिया उससे समझ आता है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता बनी रेहगी. वहीं बिल में बताई गई इस सिलेक्शन कमेटी सवालों के कठघरे में हैं क्योंकि तीन सदस्यों में से दो सदस्य - एक पीएम, दूसरा पीएम द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री हैं.
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