फेसबुक (Facebook) का नामकरण हुआ है. फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग ने ऐलान किया है कि फेसबुक कंपनी को अब मेटा प्लेटफॉर्म इंक (Meta Platform Inc)- यानि 'मेटा' (Meta) के नाम से जाना जाएगा. जैसे ही ये ऐलान हुआ लोगों के मन में सवाल उठने लगा कि नाम ही बदलने वाला है या काम भी बदलेगा? अब क्या नया होने वाला है? क्या लाइक, शेयर, कमेंट की दुनिया बदलने वाली है? नए नाम का मतलब क्या है? और नए नाम के साथ भारतीय यूजर के लिए क्या बदलने वाला है?
चलिए तो आपके सवालों का एक-एक कर जवाब देते हैं. लेकिन उससे पहले बस इतना समझ लीजिए कि ये फेसबुक की जरिए वर्चुअल दुनिया को रियल दुनिया से मिलाने की तैयारी है. इसे ऐसे समझिए कि जैसे आप इंटरनेट पर अपने किसी दोस्त से जो किसी और शहर या देश में है उससे बात करते हैं, लेकिन आपको ऐसा लगे जैसे आप एक-दूसरे के सामने ही बैठे हैं.
क्या आम यूजर फेसबुक की जगह मेटा कहेंगे?
दरअसल, 2004 में लॉन्च हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक (Facebook) का पहले नाम द फेसबुक था, फिर कंपनी ने बाद में इसे सिर्फ फेसबुक किया...और अब इसका नाम मेटा हो गया है. लेकिन आपको बता दें जो नाम में बदलाव किया गया है वो पेरेंट कंपनी के लिए है. मतलब फेसबुक कंपनी का नाम बदला है. न कि कंपनी के बाकी प्लेटफॉर्म का. मतलब आप जो इस्तेमाल करते हैं वो फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप का नाम नहीं बदला है. सिर्फ कंपनी का नाम बदला है.
क्यों बदला नाम?
फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग का कहना है कि उनकी कंपनी सिर्फ एक सोशल मीडिया कंपनी नहीं है, बल्कि उससे अलग भी कंपनी बहुत सी चीजें कर रही है. मार्क जकरबर्ग ने कंपनी के नए नाम के ऐलान के दौरान कहा,
'हमने सामाजिक मुद्दों से जूझने और काफी प्लेटफॉर्म पर एक साथ रहते हुए बहुत कुछ सीखा है और अब समय आ गया है कि हमने जो कुछ भी सीखा है उसके अनुभव से एक नए अध्याय की शुरुआत करें. मुझे ये घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि आज से हमारी कंपनी अब मेटा है. हमारा मिशन वही है. हमारे ऐप्स और ब्रांड के नाम नहीं बदल रहे हैं. आज हम एक सोशल मीडिया कंपनी के नाम से जाने जाते हैं, लेकिन डीएनए के हिसाब से हम एक ऐसी कंपनी हैं जो लोगों को जोड़ने वाली टेक्नोलॉजी विकसित करती है.'
जकरबर्ग ने कहा कि मेटा ग्रीक शब्द 'बियॉन्ड' से आया है. हमारी कंपनी ऐसी है जो लोगों को जोड़ने के लिए टेक्नोलॉजी बनाती है.
यूजर्स क्या उम्मीद कर सकते हैं?
मार्क जकरबर्ग ने मेटावर्स को एक "वर्चुअल वातावरण" बताया है, जिसमें आप सिर्फ एक स्क्रीन पर देखने के बजाय अंदर क्या चल रहा है उसमें वर्चुअली शामिल हो सकते हैं. वर्चुअल रियलिटी हेडसेट, ऑगमेंटेड रियालिटी ग्लास, स्मार्टफोन ऐप या दूसरे उपकरणों का उपयोग करके लोग मिल सकते हैं, काम कर सकते हैं और खेल सकते हैं. फेसबुक ने यह कदम इंटरनेट के भविष्य को देखते हुए उठाया है. मतलब मेटावर्स इंटरनेट के भविष्य से जुड़ा फेसबुक का एक आइडिया है, जिसके मुताबिक भविष्य में यूजर्स एक वर्चुअल यूनिवर्स में काम कर पाएंगे.
अब फेसबुक का बिजनेस मॉडल को बदलना कोई हल्का फैसला नहीं है. इस साल के दूसरी तिमाही में विज्ञापन बिक्री में 57% की बढ़ोतरी, मासिक सक्रिय यूजर में 7% की बढ़ोतरी और नेट प्रॉफिट में लगभग 10.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की है.
फिलहाल, विज्ञापन फेसबुक सोशल-नेटवर्किंग बिजनेस मॉडल पर हावी है, लेकिन मेटावर्स कंपनी बनने के कदम से नए रेवेन्यू सोर्स की संभावना बढ़ जाती है. फिलहाल यूजर्स बिना पैसे दिए अपने विचारों, फोटो, पोस्ट, एक्टिविटी, घटनाओं और रुचियों को टू-वे तरीके से शेयर करते हैं. लेकिन यूजर्स मेटावर्स में इंटरएक्टिविटी के लिए भुगतान करने के इच्छुक हो सकते हैं.
मतलब जो कुछ भी वर्चुअल वर्ल्ड में, स्क्रीन के पीछे हो रहा है, वह मान लीजिए कि आपके सामने आपके आसपास होने लगे, उसे बहुत से यूजर इस्तेमाल करना चाहेंगे.
मेटावर्स को ऐसे समझ सकते हैं कि ये हम कैसे काम करते हैं, सीखते हैं और जिंदगी जीते हैं, इसे परिभाषित करेगा. इसका मतलब है कि VR और AR अपने मौजूदा फंक्शन से आगे बढ़ेंगे, और रोजमर्रा की तकनीक बन जाएंगे जिस पर हम सभी निर्भर रहेंगे. इनमें सबसे बड़ा मुद्दा डिजिटल प्राइवेसी का है. हम सोशल मीडिया के मौजूदा नजरिए को देखकर मेटावर्स के लिए फेसबुक की सोच का अनुमान लगा सकते हैं. हमारे ऑनलाइन जीवन, निजी डेटा और हमारी निजी बातचीत पर कंट्रोल, निगरानी और पकड़ बढ़ सकती है. VR और AR हेडसेट, यूजर्स और उनके परिवेश के बारे में भारी मात्रा में डेटा जमा करते हैं.
मेटावर्स शब्द कहां से आया है?
शब्द "मेटावर्स" को आप वर्चुअल रियलिटी के तौर पर समझ सकते हैं. मेटावर्स वो शब्द है जिसे पहली बार नील स्टीफेंसन ने अपने 1992 के डायस्टोपियन नॉवेल "स्नो क्रैश" में लिखा था. यह इंटरनेट को एक 3डी वर्चुअल दुनिया के रूप में देखता है, जहां लोग रियल टाइम में एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं. सिलिकॉन वैली में कई लोग अभी मेटावर्स को भविष्य के रूप में देखते हैं. Google से लेकर माइक्रोसॉफ्ट इसमें भारी निवेश कर रहे हैं.
बता दें कि फेसबुक के फॉर्मर सिविक इंटीग्रिटी चीफ समिध चक्रवर्ती ने मेटावर्स नाम का सुझाव दिया था.
मेटावर्स आपको कब तक मिल सकता है?
फेसबुक के मुताबिक कंपनी अभी मेटावर्स बनाने के शुरुआती फेज में है. मेटावर्स को पूरी तरह से डेवलप होने में 10 से 15 साल लग सकते हैं. इसके लिए कंपनी 10 हजार लोगों को हायर भी करेगी. जकरबर्ग ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मेटावर्स एक नया इकोसिस्टम होगा जो कंटेंट क्रिएटर्स के लिए लाखों नौकरियां पैदा करेगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)