नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा आयोजित एक इवेंट में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (NV Ramana) ने कहा कि मानवाधिकारों (Human rights) को सबसे ज्यादा खतरा पुलिस स्टेशनों में होता है. भारत में पुलिस कस्टडी में हत्या, टॉर्चर, नकली एनकाउंटर, महिलाओं के साथ यौन शोषण और बलात्कार के ना जाने कितने ऐसे उदहारण हैं जिनके आरोप पुलिस और दूसरे लॉ एनफॉर्सेमेंट ऐजेंसी पर लगते रहते हैं.
लेकिन जब देश में कानून के सबसे बड़े पहरेदार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश तक पुलिस स्टेशनों को मानवाधिकार के लिए खतरा बताएं तो स्थिति गंभीर है.
इस मौजूदा स्थिति को सुधारने का सबसे अच्छा तरीका है लोगों को उनके अधिकारों के साथ साथ पुलिसकर्मियों को कोड ऑफ़ कंडक्ट से परिचित कराना. कानून के रखवालों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोड ऑफ कंडक्ट बना रखे हैं. यूएन के मुताबिक पुलिस को निम्न 10 बातों का ख्याल रखना चाहिए.
पुलिसकर्मी किसी को टॉर्चर नहीं करेंगे. युद्ध या इमरजेंसी का हवाला देकर भी नहीं. खासतौर पर महिला, बच्चे, बुजुर्ग, शरणार्थी और अल्पसंख्यकों का ख्याल रखेंगे.
सभी पीड़ितों के खिलाफ करुणा और सम्मान की भावना रखी जाये और उनकी सुरक्षा और निजता का ख्याल रखा जाये. किसी भी तरह की हिंसा पीड़ित महिला को स्पेशल केयर दी जाये और उससे इस तरह पूछताछ की जाये कि उसको अपमान ना लगे.
पुलिस फोर्स का इस्तेमाल बहुत जरूरी होने पर किया जाना चाहिये और अगर इस्तेमाल की जरूरत हो भी तो वो कम से कम हो. इस अधिकार के मुताबिक जहां तक हो सके पुलिस को अहिंसक होना चाहिए.अगर पुलिस से कोई घायल हो तो उसे तुरंत मेडिकल सहायता मिले , उसके परिवारवालों को तुरंत सूचित किया जाये. अगर किसी की मौत हो जाये तो पुलिसकर्मी अपने ऑफिसर को बताए और ऑफिसर सुनिश्चित करें कि मामले की पूरी तरह सही जांच हो.
जहां गैरकानूनी या अहिंसक भीड़ इकट्ठा हो वहां पुलिस फोर्स के इस्तेमाल से बचा जाए. अगर हिंसक सभा में पुलिस का इस्तेमाल हो तो वो भी कम से कम हो. किसी भी तरह के हथियार का इस्तेमाल शांतिपूर्व चल रही रैली में नहीं करना चाहिए. किसी हिंसक विरोध प्रदर्शन में भी पुलिस हथियार का इस्तेमाल तभी कर सकती है जब बाकी और तरीके असफल रहें.
गोलीबारी करना या पुलिस के द्वारा घातक कार्रवाई तभी करनी चाहिये जब खुद पुलिस की जान या दूसरों की जिंदगी को खतरा हो. पुलिस अपने सेल्फ डिफेंस में गोली चला सकती है या किसी साथी की जान जोखिम में हो तो गोली चला सकती है.अगर पुलिस ने किसी पर गोली चलायी है तो उसके बारे में तुरंत रिपोर्ट की जानी चाहिए और उसकी जांच होनी चाहिए.
बिना किसी कानूनी आधार के किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और जब गिरफ्तारी हो तो वो कानून के नियमों के मुताबिक हो. किसी को भी गिरफ्तारी के वक्त उसकी वजह बताना जरूरी है. गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को कौन सी जेल ले जाया गया, किस ऑफिसर ने गिरफ्तार किया इसकी रिकॉर्डिंग होनी चाहिए और ये रिकॉर्डिंग गिरफ्तार व्यक्ति के वकील को दी जानी चाहिए. गिरफ्तारी के वक्त पुलिस ऑफिसर को अपनी पहचान बताना जरूरी है.अगर किसी कानूनी वजह से शरणार्थी को हिरासत में लिया जाता है तो उसकी न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए और इसके बारे में यूनाइटेड हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी ( UNHCR) को सूचित किया जाना चाहिए.
किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को अपने परिवारवालों को सूचित करने का, कानूनी मदद लेने का और जरूरत होने पर किसी तरह की मेडकिल सहायता लेने का हक है. अगर किसी आर्थिक तंगी या उस वक्त पैसे ना होने की वजह से हिरासत में लिया गया व्यक्ति अपने परिवार को सूचित नहीं कर सकता तो ये काम पुलिस को करना चाहिए. आरोपी को अपने वकील से मिलने और अपना पक्ष रखे जाने का हक है और ऐसा करते वक्त वो पुलिस की नज़र में हो सकता है लेकिन पुलिस को उसकी बातें सुनने का अधिकार नहीं.
हिरासत में लिए व्यक्ति के साथ मानवीय व्यवहार होना चाहिए. पुलिस को टॉर्चर, दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए. पुलिस को भड़कावे या बहकावे में नहीं आना चाहिए. पुलिस कस्टडी में किसी महिला के साथ बलात्कार या यौन शोषण करना जुर्म है. बच्चों को भी बहुत जरूरी होने पर हिरासत में लेना चाहिए और तुरंत उनके परिवार को सूचित किया जाना चाहिए. नाबालिग बच्चों को बड़ों से अलग रखा जाना चाहिए और उनको पुलिस या किसी दूसरे हिरासत में लेने वाले कर्मी द्वारा यौन शोषण या शारीरिक-मानसिक शोषण से बचाना चाहिए.
गैरकानूनी ढंग से किसी को मारना , ऐसा ऑर्डर देना या ऐसे काम को छुपाना गलत है. पुलिस सेल्फ डिफेंस के नाम पर किसी को मार नहीं सकती . पुलिस को अगर किसी सीनियर द्वारा किसी के खिलाफ गोली चलाने का ऑर्डर मिले तो उनको इसको नहीं मानना चाहिये. इसके अलावा किसी भी एनकाउंटर की जांच होनी चाहिए.
ऊपर बताये 9 कानूनों का कहीं उल्लंघन होता है तो अपने सीनियर ऑफिसर या सरकारी वकील को बताएं और कानून के अंतर्गत इन नियमों के उल्लंघन की पूरी जांच होनी चाहिए. अगर किसी पुलिस ऑफिसर ने ऊपर बताए नियमों का पालन नहीं किया तो उसके खिलाफ जांच होनी चाहिए. इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि क्या नियमों का उल्लंघन पुलिस ने अपने अधिकारियों के आदेश पर किया?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)