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नींबू की कीमतों में क्यों लगी आग, क्या है असली वजह?

पिछले 17 महीनों से सब्जियों और ईंधन में ही नहीं बल्कि कपड़े व बर्तनों में मंहगाई दर्ज की गई है.

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पिछले कुछ दिनों से भारत में नींबू (Lemon) की कीमत में बेलगाम बढ़ोतरी देखी गई है. देश भर के ज्यादातर बाजारों में एक नींबू की फुटकर कीमत 10 से 15 रुपये के बीच है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक गाजियाबाद थोक मार्केट में नींबू लगभग 350 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट पर बिक रहा है. एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद के एक नींबू विक्रेता ने कहा कि पहले हम एक बोरा नींबू 700 रूपए में खरीद लेते थे, लेकिन अब इसकी कीमत 3500 रूपए है. हम एक नींबू 10 रूपए में बेच रहे हैं और कोई भी इसे खरीदने को तैयार नहीं है.

नींबू की कीमतों में क्यों लगी आग, क्या है असली वजह?

  1. 1. नींबू मंहगे होने के पीछे की असली वजह क्या है?

    मुंबई और कोलकाता जैसे बाजारों में नींबू एक महीने पहले 100 रुपये और 90 रुपये प्रति किलो था, जो अब बढ़कर 120 रुपये और 180 रुपये प्रति किलो के थोक रेट पर बिक रहा है.

    आइए जानते हैं कि देश में नींबू के दाम हो रही लगातार बढ़ोतरी के पीछे की असली वजह क्या है और भारत में नींबू कितनी मात्रा में और कहां उगाए जाते हैं.

    नींबू मंहगे होने के पीछे की असली वजहे है, हस्त बहार और उसके बाद के अंबे बहार. देश भर में पिछले साल मॉनसून अच्छा था, लेकिन सितंबर और अक्टूबर के महीने में असाधारण रूप से भारी बारिश हो गई. नींबू के खेत नमी के नजरिए से संवेदनशील होते हैं. इस प्रकार भारी बारिश की वजह से अधिकांश पेड़ों में फूल नहीं आए. नींबू को आम तौर पर कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है और अम्बे बहार से अगला फल आने तक इसकी मार्केटिंग की जाती है. इस बार काफी कम फसल होने के कारण, किसानों के पास स्टोर करने के लिए कम पैदावार थी.

    अंबे बहार के दौरान भी बेमौसम बारिश होने से नींबू के फूलों पर असर पड़ा. फरवरी के आखिर में बढ़ते तापमान ने भी फसल को प्रभावित किया है, जिससे छोटे फल गिर गए. गर्मियों में जब नींबू की मांग सबसे ज्यादा होती है तो स्टोर किया हुआ हस्त बहार और ताजे अंबे बहार के फल मार्केट में भेजे जाते हैं, लेकिन इस बार दोहरी मार ने नींबू उत्पादन खास असर डाला है.

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  2. 2. गर्मी में भारत में कहां और कितना नींबू उगाया जाता है?

    'ईंधन के दामों में हुई बढ़ोतरी भी है एक वजह'

    कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि नींबू और अन्य सब्जियों में लगी आग के पीछे की बड़ी वजह ईंधन के दामों हुई बढ़ोतरी है.

    एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक थोक व्यापारी तिलक सैनी ने कहा ने कहा कि मेरे 30 साल के कारोबार में नींबू ज्यादा से ज्यादा 150 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बिका है लेकिन कभी भी 300 रूपए किलो नहीं हुआ. फ्यूल की बढ़ती कीमतों की वजह से ट्रांस्पोर्ट लागत में 24,000 प्रति ट्रक की बढ़ोतरी हुई है.

    एएनआई रिपोर्ट के मुताबिक एक अन्य थोक व्यापारी ने कहा कि नींबू के दामों में बढ़ोतरी मुख्य रूप से आपूर्ति में कमी और गर्मी के मौसम में अधिक मांग की वजह से हुई है.

    इस बार नींबू की फसल का उत्पादन कम हुआ है और रमजान आने व तापमान बढ़ने की वजह से इसकी मांग में बढ़ोतरी हुई है.

    प्यास बुझाने के काम आने वाले नींबू को हिंदीभाषी क्षेत्रों में निम्बू भी बोला जाता है, जो मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- नींबू और चूना. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नींबू पूरे भारत में लगभग 3.17 लाख हेक्टेयर में फैले बगीचों में उगाया जाता है.

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  3. 3. कब तक है नींबू के कीमतों में कमी आने की उम्मीद?

    नींबू पेड़ों में एक साल के अंतर्गत तीन बार फूल आते हैं और फल लगते हैं. नींबू की खेती में आंध्र प्रदेश सबसे आगे हैं, जहां पर 45 हजार हेक्टेयर में नींबू का उत्पादन होता है. इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे राज्य नींबू उत्पादन के प्रमुख राज्यों में शामिल हैं.

    रिपोर्ट के मुताबकि भारत में एक साल के अंतर्गत 37.17 लाख टन से अधिक नींबू का उत्पादन किया जाता है, जिसकी खपत घरेलू स्तर पर होती है. यह न तो निर्यात किया जाता है और न ही आयात.

    किसान आमतौर पर एक एकड़ में 210-250 नींबू के पेड़ लगाते हैं, और बागों में रोपण के तीन साल बाद पहली फसल आती है. औसतन एक पेड़ से लगभग 1000-1500 नींबू के फल लगते हैं.

    नींबू के दामों में आई बढ़ोतरी में तत्काल सुधार की उम्मीद बहुत की कम है. इसकी अगली अक्टूबर महीने के बाद ही तैयार होगी और उसके बाद ही कीमतों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है. इस वक्त अंबे बहार के बाद उन इलाकों से फसल आने की उम्मीद है जहां पर फूल आते वक्त ज्यादा असर नहीं पड़ा है. हालांकि, इसके बाद भी मांग पूरी हो पाने की उम्मीद बहुत ही कम है.

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  4. 4. नींबू के अलावा और कौन की सब्जियों में लगी आग?

    सब्जियों के मार्केट में सिर्फ नींबू ही नहीं है, जिसकी कीमतें आसमान छू रही हैं. इसके अलावा रसोई का बेहद जरूरी हिस्सा हरी मिर्च और करेले के दामों में भी बढ़ोतरी आई है. पूरे देश में हरी मिर्च, टमाटर और शिमला मिर्च जैसी अन्य सब्जियों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं.

    रिपोर्ट्स के मुताबिक मौजूदा वक्त में टमाटर 40 रूपए प्रति किलो के दाम पर बिक रहा है, इससे पहले इसकी कीमत 25 से 30 रूपए प्रति किलो थी. उत्तराखंड में लगभग सभी सब्जियों के दामों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसके अलावा बिहार में मूली, कद्दू और लौकी के दामों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

    एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक एक ग्राहक सोनू शर्मा कहा कि पेट्रोल, डीजल और सीएनजी की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी की वजह से कीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन हमारी आय घट रही है.

    कई सब्जी विक्रेता सब्जी बेचते वक्त ग्राहकों को फ्री में हरी मिर्च दे दिया करते थे लेकिन उनका कहना है कि जब से इसके दाम बढ़े हैं हम ऐसा करना बंद कर दिए हैं.

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  5. 5. 17 महीनों में सबसे ज्यादा मंहगाई

    ईंधन और सब्जियों में ही नहीं बल्कि कपड़े व बर्तनों में मंहगाई दर्ज की गई है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च महीने में फुटकर मंहगाई बढ़कर 6.95 प्रतिशत हो गई, जो 17 महीनों में सबसे ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में और भी स्थिति खराब है.

    Crisil के मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा कि

    हमारे एनालिसिस से पता चला है कि बढ़ रही मंहगाई का बोझ सबसे ज्यादा गरीब उठा रहे हैं क्योंकि गरीबों की टोकरी का सबसे बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थ हैं, जिसमें सबसे अधिक मंहगाई आई है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में कमाने वाले निचले स्तर के 20 प्रतिशत लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.

    QuantEco की रिसर्च नोट के मुताबिक खानी-पीने की चीजों में लगातार छठवें महीने मंहगाई बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो चुकी है, जो नवंबर 2020 के बाद सबसे अधिक है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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मुंबई और कोलकाता जैसे बाजारों में नींबू एक महीने पहले 100 रुपये और 90 रुपये प्रति किलो था, जो अब बढ़कर 120 रुपये और 180 रुपये प्रति किलो के थोक रेट पर बिक रहा है.

आइए जानते हैं कि देश में नींबू के दाम हो रही लगातार बढ़ोतरी के पीछे की असली वजह क्या है और भारत में नींबू कितनी मात्रा में और कहां उगाए जाते हैं.

नींबू मंहगे होने के पीछे की असली वजह क्या है?

नींबू मंहगे होने के पीछे की असली वजहे है, हस्त बहार और उसके बाद के अंबे बहार. देश भर में पिछले साल मॉनसून अच्छा था, लेकिन सितंबर और अक्टूबर के महीने में असाधारण रूप से भारी बारिश हो गई. नींबू के खेत नमी के नजरिए से संवेदनशील होते हैं. इस प्रकार भारी बारिश की वजह से अधिकांश पेड़ों में फूल नहीं आए. नींबू को आम तौर पर कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है और अम्बे बहार से अगला फल आने तक इसकी मार्केटिंग की जाती है. इस बार काफी कम फसल होने के कारण, किसानों के पास स्टोर करने के लिए कम पैदावार थी.

अंबे बहार के दौरान भी बेमौसम बारिश होने से नींबू के फूलों पर असर पड़ा. फरवरी के आखिर में बढ़ते तापमान ने भी फसल को प्रभावित किया है, जिससे छोटे फल गिर गए. गर्मियों में जब नींबू की मांग सबसे ज्यादा होती है तो स्टोर किया हुआ हस्त बहार और ताजे अंबे बहार के फल मार्केट में भेजे जाते हैं, लेकिन इस बार दोहरी मार ने नींबू उत्पादन खास असर डाला है.

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'ईंधन के दामों में हुई बढ़ोतरी भी है एक वजह'

कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि नींबू और अन्य सब्जियों में लगी आग के पीछे की बड़ी वजह ईंधन के दामों हुई बढ़ोतरी है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक थोक व्यापारी तिलक सैनी ने कहा ने कहा कि मेरे 30 साल के कारोबार में नींबू ज्यादा से ज्यादा 150 रूपए प्रति किलो के हिसाब से बिका है लेकिन कभी भी 300 रूपए किलो नहीं हुआ. फ्यूल की बढ़ती कीमतों की वजह से ट्रांस्पोर्ट लागत में 24,000 प्रति ट्रक की बढ़ोतरी हुई है.

एएनआई रिपोर्ट के मुताबिक एक अन्य थोक व्यापारी ने कहा कि नींबू के दामों में बढ़ोतरी मुख्य रूप से आपूर्ति में कमी और गर्मी के मौसम में अधिक मांग की वजह से हुई है.

इस बार नींबू की फसल का उत्पादन कम हुआ है और रमजान आने व तापमान बढ़ने की वजह से इसकी मांग में बढ़ोतरी हुई है.

गर्मी में भारत में कहां और कितना नींबू उगाया जाता है?

प्यास बुझाने के काम आने वाले नींबू को हिंदीभाषी क्षेत्रों में निम्बू भी बोला जाता है, जो मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है- नींबू और चूना. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नींबू पूरे भारत में लगभग 3.17 लाख हेक्टेयर में फैले बगीचों में उगाया जाता है.

नींबू पेड़ों में एक साल के अंतर्गत तीन बार फूल आते हैं और फल लगते हैं. नींबू की खेती में आंध्र प्रदेश सबसे आगे हैं, जहां पर 45 हजार हेक्टेयर में नींबू का उत्पादन होता है. इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे राज्य नींबू उत्पादन के प्रमुख राज्यों में शामिल हैं.

रिपोर्ट के मुताबकि भारत में एक साल के अंतर्गत 37.17 लाख टन से अधिक नींबू का उत्पादन किया जाता है, जिसकी खपत घरेलू स्तर पर होती है. यह न तो निर्यात किया जाता है और न ही आयात.

किसान आमतौर पर एक एकड़ में 210-250 नींबू के पेड़ लगाते हैं, और बागों में रोपण के तीन साल बाद पहली फसल आती है. औसतन एक पेड़ से लगभग 1000-1500 नींबू के फल लगते हैं.

कब तक है नींबू के कीमतों में कमी आने की उम्मीद?

नींबू के दामों में आई बढ़ोतरी में तत्काल सुधार की उम्मीद बहुत की कम है. इसकी अगली अक्टूबर महीने के बाद ही तैयार होगी और उसके बाद ही कीमतों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है. इस वक्त अंबे बहार के बाद उन इलाकों से फसल आने की उम्मीद है जहां पर फूल आते वक्त ज्यादा असर नहीं पड़ा है. हालांकि, इसके बाद भी मांग पूरी हो पाने की उम्मीद बहुत ही कम है.

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नींबू के अलावा और कौन की सब्जियों में लगी आग?

सब्जियों के मार्केट में सिर्फ नींबू ही नहीं है, जिसकी कीमतें आसमान छू रही हैं. इसके अलावा रसोई का बेहद जरूरी हिस्सा हरी मिर्च और करेले के दामों में भी बढ़ोतरी आई है. पूरे देश में हरी मिर्च, टमाटर और शिमला मिर्च जैसी अन्य सब्जियों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक मौजूदा वक्त में टमाटर 40 रूपए प्रति किलो के दाम पर बिक रहा है, इससे पहले इसकी कीमत 25 से 30 रूपए प्रति किलो थी. उत्तराखंड में लगभग सभी सब्जियों के दामों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसके अलावा बिहार में मूली, कद्दू और लौकी के दामों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक एक ग्राहक सोनू शर्मा कहा कि पेट्रोल, डीजल और सीएनजी की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी की वजह से कीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन हमारी आय घट रही है.

कई सब्जी विक्रेता सब्जी बेचते वक्त ग्राहकों को फ्री में हरी मिर्च दे दिया करते थे लेकिन उनका कहना है कि जब से इसके दाम बढ़े हैं हम ऐसा करना बंद कर दिए हैं.

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17 महीनों में सबसे ज्यादा मंहगाई

ईंधन और सब्जियों में ही नहीं बल्कि कपड़े व बर्तनों में मंहगाई दर्ज की गई है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च महीने में फुटकर मंहगाई बढ़कर 6.95 प्रतिशत हो गई, जो 17 महीनों में सबसे ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में और भी स्थिति खराब है.

Crisil के मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा कि

हमारे एनालिसिस से पता चला है कि बढ़ रही मंहगाई का बोझ सबसे ज्यादा गरीब उठा रहे हैं क्योंकि गरीबों की टोकरी का सबसे बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थ हैं, जिसमें सबसे अधिक मंहगाई आई है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में कमाने वाले निचले स्तर के 20 प्रतिशत लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.

QuantEco की रिसर्च नोट के मुताबिक खानी-पीने की चीजों में लगातार छठवें महीने मंहगाई बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो चुकी है, जो नवंबर 2020 के बाद सबसे अधिक है.

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