भारत की खबरों की दुनिया में लाउडस्पीकर (Loudspeaker) और बुलडोजर (Bulldozer) का रुतबा अलग लेवल का है. दोनों पर जम कर राजनीति हो रही है. दक्षिणपंथी समूह जहां एक तरफ लाउडस्पीकर से आजान का विरोध कर रहे हैं वहीं साथ ही लाउडस्पीकर से ही पांचों वक्त हनुमान चालीसा के पाठ का बीड़ा भी उठा रहे हैं.
खैर धर्म आधारित राजनीति से दूर लाउडस्पीकर का एक अलग संसार है, जहां यह एक वैज्ञानिक खोज के रूप में मानवीय उपलब्धियों में से एक है. आज हम आपको बताते हैं लाउडस्पीकर के इतिहास की कहानी. इसके लिए आपको हमारे साथ चलना होगा आज से करीब 160 साल पीछे.
लाउडस्पीकर की खोज
सबसे पहले आपको आसान भाषा में लाउडस्पीकर की परिभाषा बताते हैं. लाउडस्पीकर एक ऐसा उपकरण जो एक इलेक्ट्रॉनिक ऑडियो सिग्नल को फिर से उसके ओरिजिनल साउंड में परिवर्तित करता है, जिसकी तीव्रता को आप कंट्रोल कर सके. यानी एक रिसीवर पहले हमारी आवाज को इलेक्ट्रॉनिक ऑडियो सिग्नल में बदलता है और फिर लाउडस्पीकर उसी ऑडियो सिग्नल को ओरिजिनल साउंड में बदलता है.
हां अब आते हैं इसकी खोज पर. आपको बताए कि पहले लाउडस्पीकर टेलीफोन में लगाए गए थे.
सबसे पहले Johann Philipp Reis ने 1861 में अपने टेलीफोन में एक इलेक्ट्रिक लाउडस्पीकर इनस्टॉल किया था. यह इलेक्ट्रिक सिग्नल को क्लियर साउंड में परिवर्तित करने में सक्षम तो था, लेकिन यह ऐसा लगातार नहीं कर सकता था. कुछ देर बाद ही इसमें से आवाज आना बंद या अस्पष्ट हो जाती थी.
अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 1876 में अपने टेलीफोन के हिस्से के रूप में अपने पहले इलेक्ट्रिक लाउडस्पीकर का पेटेंट कराया. यह लाउडस्पीकर समझने लायक साउंड को रिप्रोड्यूस करने में सक्षम था.
ग्राहम बेल के बाद अर्न्स्ट सीमेंस ने आगे इसमें सुधार किया. 1898 में होरेस शॉर्ट ने कंप्रेस्ड एयर से चलने वाले लाउडस्पीकर का पेटेंट अपने नाम किया.
इसी के आसपास कुछ कंपनियों ने कम्प्रेस्ड-एयर लाउडस्पीकरों का प्रयोग कर रिकॉर्ड प्लेयर तैयार किए, लेकिन इन डिजाइनों में साउंड क्वॉलिटी खराब थी और वे लो वॉल्यूम में साउंड नहीं दे सकते थे.
फिर आया डायनमिक स्पीकर का दौर
1898 में ओलिवर लॉज द्वारा मूविंग-कॉइल (जिसे डायनेमिक भी कहा जाता है) स्पीकर का आधुनिक डिजाइन लाया गया था. मूविंग-कॉइल लाउडस्पीकरों का पहला व्यावहारिक प्रयोग Peter L. Jensen और Edwin Pridham द्वारा अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया में किया गया था. हालांकि जेन्सेन को उसका पेटेंट नहीं दिया गया था.
मूविंग-कॉइल सिद्धांत का आज आमतौर पर डायरेक्ट रेडिएटर्स में इस्तेमाल किया जाता है और इसका पेटेंट 1924 में चेस्टर Chester W. Rice और Edward W. Kellogg द्वारा किया गया था.
1930 के दशक तक लाउडस्पीकर बनाने वाली कंपनियां फ्रीक्वेंसी रेस्पॉन्स और साउंड प्रेशर लेवल को बढ़ाने में सक्षम थी. 1937 में, मेट्रो-गोल्डविन-मेयर द्वारा पहली फिल्म इंडस्ट्री के स्टैंडर्ड का लाउडस्पीकर सिस्टम पेश किया गया था.
1954 में Edgar Villchur ने लाउडस्पीकर के डिजाइन को और आगे बढ़ाया. इस डिजाइन ने बेहतर बेस रेस्पॉन्स दी. इसके बाद Edgar Villchur और उनके पार्टनर Henry Kloss ने इसी मॉडल पर स्पीकर सिस्टम के मैन्युफैक्चरिंग और उसकी मार्केटिंग के लिए एकॉस्टिक रिसर्च कंपनी का गठन किया.
इसके बाद डिजाइन और बनाने वाले मैटेरियल में लगातार विकास के कारण लाउडस्पीकर के साउंड क्वॉलिटी बेहतर होती चली गयी.
आज के मॉडर्न स्पीकर में बेहतर कोर मैटेरियल है, उच्च तापमान सहने की क्षमता रखने वाले ग्लू लगे हैं,इसमें परमानेंट मैगनेट लगे होते हैं और अब कंप्यूटर की मदद से डिजाइन तैयार किये जाते हैं.
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