ADVERTISEMENTREMOVE AD

Krishna Janmabhoomi शाही ईदगाह विवाद क्या है, पढ़िए पूरी कहानी

Mathura Krishna Janmabhoomi Dispute- क्या हैं हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलें?

Published
कुंजी
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

अयोध्या रामलला मंदिर विवाद के बाद इन दिनों काशी की ज्ञानवापी मस्जिद सुर्खियों में है. (Gyanvapi Masjid Survey Report) की बातों को कर कोई जानना चाहता है. लेकिन इन सबके बीच थुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद (Mathura Krishna Janmabhoomi-Shahi Eidgah dispute) भी उछल गया है. मथुरा कोर्ट ने इस मामले की याचिका को स्वीकार कर लिया है. दरअसल कई हिंदू पक्षों ने दावा किया है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी. ऐसे में एक नारा अपने आप ही चारों ओर गूंजने लगता है. अयोध्या-काशी तो झांकी है मथुरा अभी बाकी है. यूपी चुनाव हो या हिंदुत्ववादी संगठनों की सभा हर जगह यह नारा जमकर गूंजा. पिछले साल अखिल भारत हिंदू महासभा ने ईदगाह मस्जिद के अंदर बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित कर उसका जलाभिषेक करने का ऐलान किया था. लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए थे, इसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 'मथुरा की बारी है...' जैसे नारे खूब चले.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अभी चर्चा में क्यों है Krishna Janmabhoomi

जहां एक ओर वाराणसी जिला अदालत काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सुनवाई कर रही थी, वहीं दूसरी ओर मथुरा जिला अदालत में कृष्ण जन्मभूमि ईदगाह मस्जिद विवाद की भी सुनवाई चल रही थी.

मथुरा कोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मस्थली के पास स्थित प्रसिद्ध शाही ईदगाह मस्जिद को सील करने की याचिका सिविल कोर्ट ने स्वीकार कर ली गई है. ऐसी एक नहीं कई याचिकाएं हैं. याचिका में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद की सुरक्षा बढ़ाए जाने के साथ ही वहां आने जाने पर रोक और सुरक्षा अधिकारी को नियुक्त करने की भी मांग की गई है. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 1 जुलाई की तारीख तय की है. रंजना अग्निहोत्री, हरिशंकर जैन व विष्णु जैन इस याचिका के याचिकाकर्ता हैं. याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि श्री कृष्ण विराजमान को केस फाइल करने का हक है. अब इस मामले की सुनवाई सिविल जज की अदालत में होगी.

 इससे पहले की हालिया याचिकाओं में क्या कहा गया?

17 मई, 2022 को मथुरा की एक स्थानीय अदालत में एक अर्जी देकर विवादित ईदगाह मस्जिद परिसर को सील करने की प्रार्थना की गई थी. यह आवेदन एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह और राजेंद्र माहेश्वरी द्वारा दायर किया गया था. आवेदन में दावा किया गया कि अगर विवादित परिसर को सील नहीं किया गया, तो संपत्ति का धार्मिक चरित्र बदल जाएगा. आवेदन में यह भी मांग की गई कि शाही ईदगाह मस्जिद परिसर की सुरक्षा बढ़ाई जाए, किसी भी तरह की आवाजाही पर रोक लगाई जाए और सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति की जाए.

इससे पहले 13 मई को मनीष यादव नाम के एक व्यक्ति ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), मथुरा की अदालत में शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करने के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था. उनके आवेदन में एक सीनियर एडवोकेट, एक एडवोकेट कमिश्नर को नियुक्त करने और मस्जिद के अंदर हिंदू धार्मिक प्रतीकों के मौजूद होने के तथ्य को देखते हुए तुरंत शाही ईदगाह का वीडियो सर्वेक्षण कराने की प्रार्थना की गई थी.

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की एक स्थानीय अदालत को श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद के संबंध में उनके समक्ष लंबित दो आवेदनों पर 4 महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया था.

आखिर मुख्य विवाद और मांग क्या है? ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. हिंदुओं का दावा है कि पहले यहां मंदिर था, जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी. हिंदुओं का मानना है कि जिस जगह पर ईदगाह मस्जिद को बनाया गया है, ये वही जगह है जहां कंस का कारागार हुआ करता था. इसी कारागार में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था. हिंदू पक्ष ने पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक देने की मांग की है.
0

2020 में खारिज हुआ था मामला

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण मामले में मुख्य भूमिका निभाने वाले वकील हरिशंकर जैन और उनके बेटे विष्णु जैन ने ही मथुरा की सिविल जज की अदालत में पहला वाद दायर किया था. हालांकि उनकी उस याचिका को न्यायालय ने 30 सितंबर 2020 को खारिज कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ताओ ने जिला जज की अदालत में बतौर रिवीजन पिटीशन दायर किया. जिस पर 2020 से अब तक लंबी बहस चली. अब इसी याचिका पर जिला जज की अदालत ने फैसला सुनाया है.

मथुरा कोर्ट में श्री कृष्ण विराजमान वाद 25 सितंबर 2020 को दाखिल हुआ था. यह विवाद कुल मिलाकर 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक है, जिसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 भूमि शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. वाद में कोर्ट ने 4 संस्थाओं को नोटिस दिया था. इनमें श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान, श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड को दी गई नोटिस शामिल थी. सुनवाई के बाद 30 सितंबर को वाद खारिज हो गया था.

कितना पुराना है Krishna Janmabhoomi विवाद?

मथुरा के कटरा केशव देव को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है. मंदिर परिसर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद है. ये 17वीं शताब्दी में बनी थी. कई हिंदुओं का दावा है कि मस्जिद मंदिर तोड़कर बनाई गई थी. वहीं कई मुसलमान संगठन इस दावे को ख़ारिज करते हैं.

हिंदुओं का दावा है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी. उनका दावा है कि औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था और 1670 में मथुरा में केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था. इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई.

श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में बताया है कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच पहला मुकदमा 1832 में शुरू हुआ था. तब से लेकर विभिन्न मसलों में कई बार मुकदमेबाजी हुई, लेकिन जीत हर बार श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की हुई. अताउल्ला खान ने 15 मार्च 1832 में कलेक्टर के यहां प्रार्थना पत्र दिया. जिसमें कहा कि 1815 में जो नीलामी हुई है उसको निरस्त किया जाए. ईदगाह की मरम्मत की अनुमति दी जाए. 29 अक्टूबर 1832 को कलेक्टर डब्ल्यूएच टेलर ने आदेश दिया जिसमें नीलामी को उचित बताया गया और कहा कि मालिकाना हक पटनीमल राज परिवार का है. इस नीलामी की जमीन में ईदगाह भी शामिल थी.

दावा है कि श्री कृष्ण जन्म भूमि और शाही मस्जिद को लेकर 1897, 1921, 1923, 1929, 1932, 1935, 1955, 1956, 1958, 1959, 1960, 1961, 1964, 1965-66 में भी मुकदमे चल चुके हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान का क्या कहना है?

हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी जिसमें श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने कहा था कि ब्रिटिश सरकार से नीलामी में राजा पटनीमल ने 15.70 एकड़ जमीन खरीदी थी.

संस्थान के अनुसार 16 मार्च 1815 को ईस्ट इंडिया कम्पनी की ओर से कटरा केशवदेव परिसर को नजूल भूमि के रूप में खुली नीलामी कर राजा पटनीमल को दे दिया था. जिसे भगवान श्रीकृष्ण के भव्य मंदिर निर्माण के उद्देश्य से सर्वाधिक ऊंची बोली लगाकर खरीदा गया था

क्या था 1968 का समझौता?

1968 को शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के बीच एक समझौता हो चुका है. इस समझौते के बाद मस्जिद की कुछ जमीनें मंदिर के लिए खाली की गई थीं और ये मान लिया गया था कि यह विवाद अब हमेशा के लिए सुलझा लिया गया है. लेकिन श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा और न्यास के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी इस समझौते को ही गलत बताते हैं.

1968 में तत्कालीन डीएम व एसपी के सुझाव पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने कुछ बिदुओं पर समझौता किया था. इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी. 12 अक्टूबर, 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही मस्जिद ईदगाह के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता किया गया कि 13.37 एकड़ जमीन पर कृष्ण मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे. 17 अक्टूबर, 1968 को यह समझौता पेश किया गया और 22 नवंबर,1968 को सब रजिस्ट्रार मथुरा के यहां इसे पंजीकृत किया गया था.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

Krishna Janmabhoomi विवाद पर मंदिर पक्ष

  • श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का पहली बार निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने अपने कुल देवता की स्मृति में कराया था.

  • इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में 400 ईसवीं में मंदिर का निर्माण कराया गया था.

  • 1150 ईसवीं में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नए मंदिर का निर्माण हुआ. कहा जाता है कि इस मंदिर को सिकंदर लोदी के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया.

  • इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने इसी स्थान पर मंदिर बनवाया.

  • 1670 ई. में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त कराकर इसके एक हिस्से पर ईदगाह का निर्माण कराया था जो आज भी मौजूद है.

  • 1770 की गोवर्धन की जंग में मुगलों से जीत के बाद मराठाओं ने कृष्ण जन्मस्थान पर पुन: मंदिर का निर्माण करवाया.

  • 1803 में अंग्रेज मथुरा आए. अंग्रेजों ने 1815 में कटरा केशव देव मंदिर की 13.37 एकड़ जमीन नीलाम की, जिसे बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा.

  • पंडित मदनमोहन मालवीय की पहल पर 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने कटरा केशव देव की जमीन को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधि‍कारियों से खरीद लिया.

  • बिड़ला ने 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की.

  • मस्जि‍द से जुड़े लोगों ने जमीन की खरीद को इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती थी. कोर्ट ने 1953 में जमीन की खरीद को सही ठहराया.

  • श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने 1 मई, 1958 को श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ का गठन किया. 1977 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ का नाम बदलकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान कर दिया गया.

  • 1962 में मंदिर बनना शुरू हुआ था, जो 20 साल बाद 1982 में बनकर तैयार हुआ.

मुस्लिम पक्ष क्या कहता है?

शाही ईदगाह कमेटी की ओर से कहा गया है कि ये विवाद जबरन पैदा किया जा रहा है. दोनों ही धार्मिक स्थलों के रास्ते अलग-अलग हैं. कृष्ण की नगरी में सभी भाईचारे के साथ रहते हैं. पूर्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट में सौहार्दपूर्ण ढंग से रजिस्टर्ड समझौता हुआ था. अब कुछ लोग बिना वजह इस मामले तूल देने में लगे हैं.

ईदगाह मस्जिद के सचिव और पेशे से वकील तनवीर अहमद के मुताबिक जो लोग मस्जिद को मंदिर का हिस्सा बता रहे हैं वह तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं. क्योंकि इतिहास में कोई भी ऐसा तथ्य नहीं है जो यह बताता है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया था या श्री कृष्ण का जन्म उस जगह पर हुआ था जहां पर मौजूदा ईदगाह मस्जिद बनी हुई है.

मुस्लिम पक्ष की तरफ से अदालत में एक और दलील जो प्रमुखता से पेश की जा रही है वह है 1991 का पूजा स्थल एक्ट. मुस्लिम पक्ष के मुताबिक इस एक्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि देश में 1947 से पहले धार्मिक स्थलों को लेकर जो स्थिति थी वह उसी तरह बरकरार रखी जाएगी और उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×