फेसबुक के 5 करोड़ यूजर्स के डेटा चोरी का मामला दुनियाभर में सुर्खियों में है. ब्रिटिश डेटा एनालिटिक्स फर्म ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ इस ताजा विवाद की जड़ है. फर्म पर 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स के डेटा को चुराने और उसका इस्तेमाल ‘चुनाव प्रचार’ में करने का आरोप है. इसी बीच एक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टंबलर ने चुनाव के दौरान ‘प्रोपेगैंडा फैलाने वाले’ 84 अकाउंट को सस्पेंड कर दिया है.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टंबलर का खुलासा क्या है?
पहली बार कंपनी ने माना है कि कुछ अकाउंट ऐसे मीम, gifs इस प्लेटफॉर्म पर सर्कुलेट कर रहे हैं, जिससे लोगों के बीच में चुनाव के दौरान नफरत और भेदभाव पैदा हो रहा है. आरोप एक बार फिर रशियन ट्रोलर्स पर लग रहे हैं. 84 ऐसे अकाउंट्स को टंबलर ने फौरन सस्पेंड कर दिया है. बता दें कि रूस पर 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए दखलंदाजी के आरोप लगते रहे हैं.
Q-जानकारी: ट्रोलर किसे कहते हैं?
ट्रोल इंटरनेट या सोशल मीडिया के ऐसे सदस्य होते हैं, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी खास शख्स, पार्टी, कंपनी या बात को लेकर भड़काऊ, विवादित या मजाकिया कंटेंट शेयर करते हैं. इस कंटेंट या मैसेज का सीधा मतलब उस शख्स, पार्टी, कंपनी या बात का मजाक उड़ाना या उसको अपमानित करना होता है. ऐसा तब भी होता है, जब सोशल मीडिया पर कोई बहस चल रही हो, तो कुछ सदस्य पूरी बात का रुख मोड़ देते हैं.
ये सोशल मीडिया पर लोगों को किस तरह बांटते हैं?
'टंबलर' के इस केस में सोशल मीडिया यूजर्स को कई तरीके से बांटा जा रहा था. अमेरिका में 'ब्लैक-व्हाइट' नस्ल के आधार पर भी मीम और gifs शेयर किए गए. कुछ फेक वीडियो के जरिए दिखाया गया कि एक खास नस्ल दूसरे नस्ल पर जुल्म करता है.
Wired की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे ही एक वीडियो में एक पुलिस ऑफिसर को अश्वेत लड़की का यौन उत्पीड़न करते दिखाया गया. कहा गया कि ये पुलिसकर्मी NYPD यानी न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट का है. इसे अमेरिकियों के बीच शेयर किया गया, इसके जरिए नफरत पैदा की गई, लेकिन असल में वो पुलिस अफसर साउथ अफ्रीका का था. इस फेक न्यूज का खुलासा तो बाद में हो गया, लेकिन उसने नफरत फैला दी थी.
इस केस से भारत को क्या और क्यों सीखना चाहिए?
साल 2018 और 2019 चुनाव के लिहाज भारत के लिए बेहद खास है. आम चुनाव के अलावा, कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. इस पुलिस अफसर के वीडियो जैसे ही तमाम वीडियो अपने देश में भी सोशल मीडिया पर हर रोज वायरल होते रहते हैं. कभी बांग्लादेश की कोई तस्वीर कोलकाता की बता दी जाती है, तो कभी किसी दूसरे देश में हुए नरसंहार की तस्वीर को जम्मू-कश्मीर को बताकर शेयर कर दिया जाता है. मामला साफ है कि चुनाव के दौरान ऐसी गतिविधियां और बढ़ सकती हैं, जिससे लोगों को आपस में ही बांट दिया जाए.
भारत के लिए चिंता की बात ये है कि हमारे चुनाव में दखल देने के लिए कोई रूस या कोई दूसरा देश नहीं आ रहा, बल्कि यहां पर सोशल मीडिया यूजर खुद ही अनजाने कई सारी तस्वीरें, वीडियो, मीम और GIF शेयर करते रहते हैं और नफरत बढ़ती रहती है.
ऐसा नहीं है कि ये प्लान करके नहीं किया जाता है. कुछ असामाजिक तत्व पूरी प्लानिंग के साथ ऐसे वीडियो, तस्वीरें या पोस्ट सोशल मीडिया पर डालते हैं, जिससे किसी एक पार्टी या शख्स को फायदा पहुंचे या किसी के लिए नफरत पैदा की जा सके.
चुनाव के दौरान हर एक यूजर पर हो सकती है नजर?
फेक न्यूज, पोस्ट, वीडियो के अलावा 'कैंब्रिज एनालिटिका' जैसी कंपनियों की निगाहें भी सोशल मीडिया यूजर पर होती हैं.
- आप किससे बात कर रहे हैं, मिल रहे हैं?
- क्या बात करे रहे हैं?
- आपकी विचारधारा क्या है?
- किस चीज से आपको नफरत है?
ये सारी जानकारियां आपके पोस्ट या ट्वीट के जरिए इन कंपनियों को मिलती हैं, जिसके आपका 'साइकोलॉजिकल प्रोफाइल' तैयार किया जाता है. एक बार जब प्रोफाइल तैयार हो गया, तो आपको कैसे किसी खास पार्टी, शख्स या कंपनी की तरफ आकर्षित करना है, उसकी रणनीति ये कंपनियां बना लेती हैं.
चुनावी नतीजों में दखलंदाजी की ये बड़ी वजह है. आपका ओपिनियन 'हाइजैक' करके कुछ पोस्ट, एडवरटाइजमेंट के जरिए कुछ और भर दिया जाता है. ऐसे में आपको पता भी नहीं चलता है और आप एक प्री-प्लांड प्रोपेगैंडा के शिकार बन जाते हैं.
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