केंद्र सरकार तीन तलाक बिल को पास कराने के लिए एक बार फिर कोशिश कर रही है. लोकसभा में बिल पर चर्चा के लिए विपक्ष भी तैयार है. इससे पहले ट्रिपल तलाक को गैर जमानती अपराध बनाने के लिए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण’ विधेयक पेश किया था, जिसमें संशोधन के लिए ऑल इंडिया मज्लिस ए इतेहादुल मुसलिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने संशोधन पेश किया था. लेकिन इसके समर्थन में सिर्फ दो वोट पड़े. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने इस पर सख्त कानून बनाने का फैसला किया था. जानिए तीन तलाक से जुड़ी सभी बातें.
बिल की खास बातें
- एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और अवैध होगा
- ऐसा करने वाले पति को होगी तीन साल के कारावास की सजा
- तीन तलाक देना गैरजमानती और संज्ञेय अपराध होगा
- पीड़िता को मिलेगा गुजारा भत्ता का अधिकार
- मजिस्ट्रेट करेंगे इस मुद्दे पर अंतिम फैसला
- जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर पूरे देश में लागू होना है
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बिल को कैसे मिली कैबिनेट की मंजूरी
कानून मंत्रालय ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर कानून बनाने के लिए तैयार ड्राफ्ट पर राज्य सरकारों से राय मांगी थी. 15 दिसंबर को तुरंत तीन बार तलाक बोल कर तलाक देने पर तीन साल की जेल के प्रावधान वाले बिल को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिली थी.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड समेत आठ राज्यों ने ड्राफ्ट बिल पर सरकार का समर्थन किया था.
कानून बनाने की योजना की शुरुआत
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार का मानना था कि ये परंपरा बंद हो जाएगी. लेकिन ये जारी रही. इस साल फैसले से पहले इस तरह के तलाक के 177 मामले थे, जबकि इस फैसले के बाद अबतक तकरीबन 100 मामले दर्ज हुए. उत्तर प्रदेश इस सूची में टॉप पर है. इसलिए सरकार ने कानून बनाने की योजना बनाई.
सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 22 अगस्त को एक साथ तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने की व्यवस्था यानी तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया था. आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक पर कानून बनाने को कहा था.
फैसले के दौरान कोर्ट की कार्यवाही की कुछ अहम बातें
- एक साथ तीन तलाक असंवैधानिक, 5 जजों की बेंच का 3-2 से फैसला
- जस्टिस नरीमन, कुरियन और ललित ने कहा असंवैधानिक
- चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस नजीर ने ठहराया संवैधानिक
- ट्रिपल तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा नहीं हो सकता: SC
- लॉ कमिशन सरकार को दे सुझाव
सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक चली थी सुनवाई
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक नियमित सुनवाई चली थी. इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए उत्तराखंड की शायरा बानो सहित 7 मुस्लिम महिलाओं की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी पेश की गई थी, जबकि पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे धार्मिक मसला बताते इस पर सुनवाई न करने की मांग की थी. केंद्र सरकार ने भी सुनवाई के दौरान तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ तीन तलाक को खत्म करने की पैरवी की थी.
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