अमेरिका (USA) ने टिकटॉक पर बैन लगाने की बात कही है. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 24 अप्रैल को एक बिल पर हस्ताक्षर किए, जिसमें ये स्पष्ट कहा गया है कि टिकटॉक की पैरेंट कंपनी बाइटडांस उसे किसी अमेरिकी को बेच दें नहीं तो अमेरिका टिक टॉक पर बैन लगा देगा. अमेरिका ने कंपनी को 9 महीने का समय दिया है.
लेकिन अमेरिका ने ऐसा क्यों किया और टिकटॉक ऐसा कौन सा डेटा इकट्ठा कर रहा है, जो सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, साथ ही क्या और दूसरी कंपनियों ने ऐसा डेटा कलेक्ट नहीं किया है? वो कौन से देश हैं, जहां टिकटॉक बैन है? यहां हम इन सब सवालों के जवाब दे रहे हैं.
TikTok सुरक्षा के लिए खतरा क्यों है? अमेरिका में इसे बैन करने वाला बिल पास, आगे क्या?
1. US क्यों लगा रहा है टिकटॉक पर बैन?
USA की सरकार ने 24 अप्रैल को एक बिल पास किया है, जिसमें कहा गया है कि टिकटॉक की पैरेंट कंपनी अगर चाइनीज कंपनी बाइटडांस ही बनी रहती है तो USA उसे बैन कर देगा. इस बिल में कहा गया है कि अगले 9 महीने में बाइटडांस टिकटॉक को किसी US ओनर के हाथ बेच दे. इसके अलावा, 3 महीने का अतिरिक्त समय भी मिलेगा और फिर यदि कंपनी बिल के हिसाब से काम नहीं करती है तो टिकटॉक को देश में बैन कर दिया जाएगा. इससे पहले भी ट्रंप सरकार ने ऐसी कोशिश की थी लेकिन वो सफल नहीं हो सकी.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, USA सरकार कोर्ट से आदेश लेकर अमेरिका स्थिति टेक कंपनियों से उनके यूजर्स का डेटा ले सकती है. इस रिर्पोट में ही ये बात भी सामने आई कि अमेरिका के लिए उसकी टेक कंपनियां ना केवल इकोनॉमिकल फायदा लाती हैं बल्कि दुनिया भर के यूजर्स का डेटा भी लाती हैं. ये भी एक बड़ी वजह है कि US टिकटॉक के लिए एक अमेरिकन ओनर चाहता है.
अब सवाल उठता है कि आखिर टिकटॉक के पास क्या विकल्प है? टिक टॉक के पास कानूनी विकल्प तलाशने के अलावा कुछ नहीं बचा है. बाइटडांस ने साफ कर दिया है कि वो USA की ऐसी शर्त नहीं मानने वाले हैं, बल्कि वो इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे. ऐसी कानूनी बहसें अमूमन सालों तक चलती हैं. टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने वाले सभी देशों की प्रमुख चिंता यही रही है कि टिकटॉक के यूजर्स का डेटा चीनी सरकार के पास होगा.
Expand2. किन देशों में बैन है टिकटॉक
टिकटॉक 2017 में आया और इसका इस्तेमाल रिकॉर्ड स्तर पर हुआ. भारत भी एक समय में टिक टॉक के लिए सबसे बड़ा बाजार था लेकिन भारत ने प्राइवेसी के खतरे का हवाला देकर 2020 में पूरे देश में टिक टॉक पर बैन लगा दिया.
भारत के अलावा नेपाल, यूरोपियन यूनियन, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, सोमालिया जैसे देश पहले ही किसी ना किसी स्तर पर टिक टॉक को बैन कर चुके हैं.
यूके ने 2023 में कर्मचारियों के वर्क डिवाइस से टिकटॉक पर बैन लगा दिया, जैसा कि यूरोपीय आयोग ने किया है.
सेंसर टावर की 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि ऐप डाउनलोड करने के मामले में टिक टॉक दूसरे नंबर पर था. रिपोर्ट ये भी बताती है कि 2019 में भारत में टिक टॉक को पहली बार डाउनलोड करने वालों की संख्या पूरी दुनिया के कुल डाउनलोड का 45% थी.
भारत में जब 2020 में टिक टॉक बैन किया गया था, तब पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा टिक टॉक यूजर भारत में थे.
जिन भी देशों ने टिक टॉक पर बैन लगाया है, उसमें ज्यादातर के सिक्योरिटी एडवाइजर यही कहते हैं कि टिकटॉक अपने ऐप पर विज्ञापन लाने के लिए कई कंपनियों को यूजर्स का डेटा बेच रहा है.
आलोचकों का कहना है कि ऐप अपने सिस्टम को अधिक मजबूत बनाने के लिए अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की तुलना में अधिक डेटा एकत्र करता है.
बीबीसी की रिपोर्ट में जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की एक रिपोर्ट का जिक्र मिलता है, जो ये बताती है कि, "अहम बात ये है कि अधिकतर सोशल मीडिया और मोबाइल ऐप भी यही करते हैं."
Expand3. टिकटॉक सुरक्षा के लिए खतरा कैसे बन गया? क्या है विवाद?
ऐसा नहीं है कि जो जानकारी टिकटॉक लोगों से जुटाता है, वैसी जानकारी कोई और सोशल मीडिया प्लेटफार्म नहीं इकट्ठा करते. लेकिन टिकटॉक के जानकारी इकट्ठा करने का तरीका सवालों के घेरे में है. गार्जियन की जुलाई 2022 में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे टिकटॉक डेटा को एग्रेसिव तरीके से कलेक्ट करता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर आप फेसबुक को कोई इन्फार्मेशन शेयर करने से मना करते हैं तो वे आपसे बार-बार नहीं पूछता है. जबकि टिकटॉक इस मामले में रिजिड है.
गार्जियन की रिपोर्ट में लिखा गया है कि टिकटॉक जरूरत से ज्यादा जानकारी इकट्ठी करता है. साथ ही वह उन जानकारियों के लिए बाय डिफॉल्ट (खुद-ब-खुद) परमिशन ले लेता है, जिसे शायद आप स्वयं शेयर ना करें.
कुल मिलाकर टिक टॉक पर आरोप ये हैं कि टिक टॉक जो भी जानकारी और डेटा हमसे जमा करता है, वो ना भी करे तो भी उसकी सर्विस बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होगी लेकिन इसके बाद भी वो ऐसा करता है.
टिक टॉक पर डेटा हार्वेस्टिंग का भी आरोप है.
डेटा हार्वेस्टिंग को अगर आसान शब्दों में समझें तो, 'हम जो बोयेंगे वो काटेंगे' यानी जितनी ज्यादा इनफॉर्मेशन हम अपने बारे में शेयर करेंगे वो हमें ही आगे चलकर भुगतनी पड़ेगी. इसके लिए गार्जियन 'डार्क फार्मर' शब्द का इस्तेमाल करता है यानी हमारा डेटा गलत हाथ में भी जा सकता है.
अब सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा डेटा टिक टॉक इकट्ठा कर रहा है जो खतरे की घंटी है? क्योंकि डेटा तो गूगल और फेसबुक जैसे ऐप भी करते हैं लेकिन वो खतरा नहीं बनते, क्यों?
कथित तौर पर टिक टॉक के ऑटो परमिशन में IP ऐड्रेस, लोकेशन, इस्तेमाल की जानकारी, आप किस फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, कौन-सा नेटवर्क है, ऑपरेटिंग सिस्टम कौन सा है, उसमें कौन-कौन से ऐप हैं, और आपकी वॉइस प्रिंट और बायोमेट्रिक डेटा भी कलेक्ट कर सकता है वो भी आपकी जानकारी के बिना.
साफ शब्दों में कहें तो आम तौर पर लगभग सब ऐप अपनी सर्विस दुरुस्त करने के नाम पर हमसे काफी इनफार्मेशन लेते रहते हैं. लेकिन हर ऐप एक अलग ऐल्गोरिदम पर काम करता है. ऐल्गोरिदम का मतलब है की जैसे किसी ऐप ने हमसे एक जानकारी ली, उसके बाद उस जानकारी के आधार पर वो हमारी जरूरतों को समझता है और एक इनपुट के आधार पर कई आउटपुट हमें देता है. माना कि आपको एक फ्रिज खरीदना है आपने इस बारे में फोन पर सर्च किया अब आप गौर करेंगे कि आपके फोन पर हर एक ऐप के विज्ञापन में फ्रिज ही फ्रिज दिखेंगे. यह एल्गोरिदम का ही कमाल है.
Expand4. कब, कहां, कैसे बना टिक टाॅक?
मार्च 2012 में बाइटडांस नाम की एक कंपनी को चीन में झांग यिमिंग द्वारा खोली गई. इस कंपनी का पहला सफल प्रोजेक्ट एक पर्सनालाइज न्यूज ऐप था, जो चाइनीज यूजर्स के लिए डेवलप किया गया था. इसके बाद 2014 में Musical.ly नाम का एक नया ऐप डेवलप हुआ, जो एक लिपसिंक करने वाला ऐप था. 2015 तक ये ऐप काफी हिट हो गया.
इसके बाद बाइटडांस ने एक और Douyin नाम का ऐप लॉन्च किया, जिसका काम शॉर्ट वीडियो शेयर करना था. ये फेमस हुआ तो कंपनी ने इसे देश के बाहर भी लॉन्च करने का फैसला किया और इसे टिक टॉक का नाम दिया.
2017 में बाइटडांस ने Musical.ly का अधिग्रहण किया. इसके 9 महीने बाद बाइटडांस ने Musical.ly का टिक टॉक के साथ विलय कर दिया.
2019 में USA ने अपने सैन्य अधिकारियों से टिक टॉक को डिलीट करने के लिए कहा था. इसके बाद 2020 के मार्च में कुछ प्राइवेट ग्रुप्स ने भी US चाइल्ड प्रोटेक्शन लॉ के उल्लंघन के मामले में टिकटॉक पर आरोप लगाये थे. इसके बाद से ही टिक टॉक लगातार निशाने पर है.
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US क्यों लगा रहा है टिकटॉक पर बैन?
USA की सरकार ने 24 अप्रैल को एक बिल पास किया है, जिसमें कहा गया है कि टिकटॉक की पैरेंट कंपनी अगर चाइनीज कंपनी बाइटडांस ही बनी रहती है तो USA उसे बैन कर देगा. इस बिल में कहा गया है कि अगले 9 महीने में बाइटडांस टिकटॉक को किसी US ओनर के हाथ बेच दे. इसके अलावा, 3 महीने का अतिरिक्त समय भी मिलेगा और फिर यदि कंपनी बिल के हिसाब से काम नहीं करती है तो टिकटॉक को देश में बैन कर दिया जाएगा. इससे पहले भी ट्रंप सरकार ने ऐसी कोशिश की थी लेकिन वो सफल नहीं हो सकी.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, USA सरकार कोर्ट से आदेश लेकर अमेरिका स्थिति टेक कंपनियों से उनके यूजर्स का डेटा ले सकती है. इस रिर्पोट में ही ये बात भी सामने आई कि अमेरिका के लिए उसकी टेक कंपनियां ना केवल इकोनॉमिकल फायदा लाती हैं बल्कि दुनिया भर के यूजर्स का डेटा भी लाती हैं. ये भी एक बड़ी वजह है कि US टिकटॉक के लिए एक अमेरिकन ओनर चाहता है.
अब सवाल उठता है कि आखिर टिकटॉक के पास क्या विकल्प है? टिक टॉक के पास कानूनी विकल्प तलाशने के अलावा कुछ नहीं बचा है. बाइटडांस ने साफ कर दिया है कि वो USA की ऐसी शर्त नहीं मानने वाले हैं, बल्कि वो इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे. ऐसी कानूनी बहसें अमूमन सालों तक चलती हैं. टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाने वाले सभी देशों की प्रमुख चिंता यही रही है कि टिकटॉक के यूजर्स का डेटा चीनी सरकार के पास होगा.
किन देशों में बैन है टिकटॉक
टिकटॉक 2017 में आया और इसका इस्तेमाल रिकॉर्ड स्तर पर हुआ. भारत भी एक समय में टिक टॉक के लिए सबसे बड़ा बाजार था लेकिन भारत ने प्राइवेसी के खतरे का हवाला देकर 2020 में पूरे देश में टिक टॉक पर बैन लगा दिया.
भारत के अलावा नेपाल, यूरोपियन यूनियन, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, सोमालिया जैसे देश पहले ही किसी ना किसी स्तर पर टिक टॉक को बैन कर चुके हैं.
यूके ने 2023 में कर्मचारियों के वर्क डिवाइस से टिकटॉक पर बैन लगा दिया, जैसा कि यूरोपीय आयोग ने किया है.
सेंसर टावर की 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि ऐप डाउनलोड करने के मामले में टिक टॉक दूसरे नंबर पर था. रिपोर्ट ये भी बताती है कि 2019 में भारत में टिक टॉक को पहली बार डाउनलोड करने वालों की संख्या पूरी दुनिया के कुल डाउनलोड का 45% थी.
भारत में जब 2020 में टिक टॉक बैन किया गया था, तब पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा टिक टॉक यूजर भारत में थे.
जिन भी देशों ने टिक टॉक पर बैन लगाया है, उसमें ज्यादातर के सिक्योरिटी एडवाइजर यही कहते हैं कि टिकटॉक अपने ऐप पर विज्ञापन लाने के लिए कई कंपनियों को यूजर्स का डेटा बेच रहा है.
आलोचकों का कहना है कि ऐप अपने सिस्टम को अधिक मजबूत बनाने के लिए अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की तुलना में अधिक डेटा एकत्र करता है.
बीबीसी की रिपोर्ट में जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की एक रिपोर्ट का जिक्र मिलता है, जो ये बताती है कि, "अहम बात ये है कि अधिकतर सोशल मीडिया और मोबाइल ऐप भी यही करते हैं."
टिकटॉक सुरक्षा के लिए खतरा कैसे बन गया? क्या है विवाद?
ऐसा नहीं है कि जो जानकारी टिकटॉक लोगों से जुटाता है, वैसी जानकारी कोई और सोशल मीडिया प्लेटफार्म नहीं इकट्ठा करते. लेकिन टिकटॉक के जानकारी इकट्ठा करने का तरीका सवालों के घेरे में है. गार्जियन की जुलाई 2022 में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि कैसे टिकटॉक डेटा को एग्रेसिव तरीके से कलेक्ट करता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर आप फेसबुक को कोई इन्फार्मेशन शेयर करने से मना करते हैं तो वे आपसे बार-बार नहीं पूछता है. जबकि टिकटॉक इस मामले में रिजिड है.
गार्जियन की रिपोर्ट में लिखा गया है कि टिकटॉक जरूरत से ज्यादा जानकारी इकट्ठी करता है. साथ ही वह उन जानकारियों के लिए बाय डिफॉल्ट (खुद-ब-खुद) परमिशन ले लेता है, जिसे शायद आप स्वयं शेयर ना करें.
कुल मिलाकर टिक टॉक पर आरोप ये हैं कि टिक टॉक जो भी जानकारी और डेटा हमसे जमा करता है, वो ना भी करे तो भी उसकी सर्विस बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं होगी लेकिन इसके बाद भी वो ऐसा करता है.
टिक टॉक पर डेटा हार्वेस्टिंग का भी आरोप है.
डेटा हार्वेस्टिंग को अगर आसान शब्दों में समझें तो, 'हम जो बोयेंगे वो काटेंगे' यानी जितनी ज्यादा इनफॉर्मेशन हम अपने बारे में शेयर करेंगे वो हमें ही आगे चलकर भुगतनी पड़ेगी. इसके लिए गार्जियन 'डार्क फार्मर' शब्द का इस्तेमाल करता है यानी हमारा डेटा गलत हाथ में भी जा सकता है.
अब सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा डेटा टिक टॉक इकट्ठा कर रहा है जो खतरे की घंटी है? क्योंकि डेटा तो गूगल और फेसबुक जैसे ऐप भी करते हैं लेकिन वो खतरा नहीं बनते, क्यों?
कथित तौर पर टिक टॉक के ऑटो परमिशन में IP ऐड्रेस, लोकेशन, इस्तेमाल की जानकारी, आप किस फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, कौन-सा नेटवर्क है, ऑपरेटिंग सिस्टम कौन सा है, उसमें कौन-कौन से ऐप हैं, और आपकी वॉइस प्रिंट और बायोमेट्रिक डेटा भी कलेक्ट कर सकता है वो भी आपकी जानकारी के बिना.
साफ शब्दों में कहें तो आम तौर पर लगभग सब ऐप अपनी सर्विस दुरुस्त करने के नाम पर हमसे काफी इनफार्मेशन लेते रहते हैं. लेकिन हर ऐप एक अलग ऐल्गोरिदम पर काम करता है. ऐल्गोरिदम का मतलब है की जैसे किसी ऐप ने हमसे एक जानकारी ली, उसके बाद उस जानकारी के आधार पर वो हमारी जरूरतों को समझता है और एक इनपुट के आधार पर कई आउटपुट हमें देता है. माना कि आपको एक फ्रिज खरीदना है आपने इस बारे में फोन पर सर्च किया अब आप गौर करेंगे कि आपके फोन पर हर एक ऐप के विज्ञापन में फ्रिज ही फ्रिज दिखेंगे. यह एल्गोरिदम का ही कमाल है.
कब, कहां, कैसे बना टिक टाॅक?
मार्च 2012 में बाइटडांस नाम की एक कंपनी को चीन में झांग यिमिंग द्वारा खोली गई. इस कंपनी का पहला सफल प्रोजेक्ट एक पर्सनालाइज न्यूज ऐप था, जो चाइनीज यूजर्स के लिए डेवलप किया गया था. इसके बाद 2014 में Musical.ly नाम का एक नया ऐप डेवलप हुआ, जो एक लिपसिंक करने वाला ऐप था. 2015 तक ये ऐप काफी हिट हो गया.
इसके बाद बाइटडांस ने एक और Douyin नाम का ऐप लॉन्च किया, जिसका काम शॉर्ट वीडियो शेयर करना था. ये फेमस हुआ तो कंपनी ने इसे देश के बाहर भी लॉन्च करने का फैसला किया और इसे टिक टॉक का नाम दिया.
2017 में बाइटडांस ने Musical.ly का अधिग्रहण किया. इसके 9 महीने बाद बाइटडांस ने Musical.ly का टिक टॉक के साथ विलय कर दिया.
2019 में USA ने अपने सैन्य अधिकारियों से टिक टॉक को डिलीट करने के लिए कहा था. इसके बाद 2020 के मार्च में कुछ प्राइवेट ग्रुप्स ने भी US चाइल्ड प्रोटेक्शन लॉ के उल्लंघन के मामले में टिकटॉक पर आरोप लगाये थे. इसके बाद से ही टिक टॉक लगातार निशाने पर है.
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