दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस के खिलाफ एक और अमेरिकी लॉ फर्म ने क्लास एक्शन सूट फाइल किया है. लॉ फर्म ने कंपनी के शेयर होल्डरों की ओर से यह कार्रवाई की है.इस कंपनी ने एक व्हिस्लब्लोअर की उस शिकायत के बाद यह कार्रवाई की है, जिसमें कहा गया था कि इन्फोसिस ने फौरी तौर पर अपना रेवेन्यू और प्रॉफिट बढ़ाने के लिए गैरकानूनी तरीका अपनाया. आखिर क्लास एक्शन सूट क्या है और भारत में किस स्थिति में क्लास एक्शन सूट लाया जा सकता है? आइए जानते हैं.
भारत में क्लास एक्शन सूट
भारत के कंपनी एक्ट, 2013 के सेक्शन 245 में कंपनी के मिस-मैनेजमेंट की स्थिति में क्लास एक्शन सूट का प्रावधान है. दरअसल क्लास एक्शन सूट पहली बार 2009 में चर्चा में तब आया जब सत्यम कंप्यूटर्स घोटाले में भारत में इसके छोटे निवेशक मैनेजमेंट के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सके. लेकिन विदेश में रहने वाले इसके निवेशकों ने क्लास एक्शन सूट फाइल कर अपने नुकसान की भरपाई की मांग की थी. सत्यम घोटाले की वजह से सरकार ने नए कंपनी कानून में क्लास ऐक्शन सूट को शामिल किया.
क्लास एक्शन सूट के तहत क्या कर सकते हैं?
अगर किसी कंपनी के 100 शेयर होल्डर या इसमें 10 फीसदी हितधारक या डिपोजिटर्स पाते हैं कि कंपनी का प्रबंधन इसके हित में नहीं चल रहा है तो वो नोटिस देने के बाद सामूहिक तौर पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी NCLT में समस्या के समाधान के लिए पहुंच सकते हैं.
इसमें एक जैसे कानूनी मसलों का सामना कर रहे निवेशकों को एक साथ आने और मुकदमे में शामिल होने का मौका मिलता है. यह कानूनी तरीके से मामले को सुलझाने का तरीका है. हालांकि कंपनी एक्ट 2013 के तहत क्लास एक्शन सूट न लाने का भी प्रावधान है. क्लास एक्शन सूट के लिए 100 शेयरहोल्डर्स का साथ आना जरूरी है.
फिर क्लास एक्शन सूट का प्रावधान क्यों हैं?
दरअसल नए प्रावधान में एक बड़ा बदलाव है.इसमें कंपनी के फर्जीवाड़े के लिए मुआवजे का प्रावधान है. कंपनी के डायरेक्टर, ऑडिटर्स और एडवाइजर्स के किसी भी तरह फर्जीवाड़े के लिए निवेशकों को क्षतिपूर्ति मिल सकती है. कंपनी कानून के सेक्शन 241 से 244 तक में कंपनी और प्रबंधन के गलत कदमों के खिलाफ निवेशकों को राहत का प्रावधान है.
सेक्शन 242 के तहत NCLT कंपनी के शेयरों अधिग्रहण का आदेश सकता है. यह इन शेयरों को ट्रांसफर करने और अलॉट करने का खिलाफ भी ऑर्डर दे सकता है. मैनेजिंग डायरेक्टर और दूसरे डायरेक्टरों को हटाने का आदेश दे सकता है. ये पाबंदियां लगाने वाले आदेश हैं. इनकी वजह से कंपनी को वह काम करने से रोका जा सकता है जो कंपनी के मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) या आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में नहीं है. क्लास एक्शन सूट के प्रावधानों का एक अतिरिक्त फायदा है यह डिपोजिटर्स को भी कवर करता है. पहले के कानून में ऐसा नहीं था.
सत्यम घोटाले की वजह से आया भारत में क्लास एक्शन सूट
2009 में सत्यम घोटाले के सामने आने तक क्लास एक्शन सूट की कोई पहचान नहीं थी. उस दौरान सेबी एक प्रावधान लेकर आया जिसमें यह व्यवस्था है कि वह इनवेस्टर एसोसिशन को फंड देगा ताकि लिस्टेड और लिस्ट होने की कतार में खड़ी कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो सके.
सेबी का प्रावधान कैसे काम करता है?
सेबी से मान्यता प्राप्त निवेशकों के संगठन कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए फाइनेंशियल मदद हासिल कर सकते हैं. हालांकि इन संगठनों को यह साबित करना होगा कि कम से 1000 शेयरहोल्डरों को कंपनी के फर्जीवाड़े से नुकसान हुआ है.
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