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डॉलर के मुकाबले रुपया अब 71 के भी पार, खर्चें बढ़ेंगे जेब संभालिए

रुपये में गिरावट का मतलब क्या है, डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के न्यूनतम स्तर पर 

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रुपया तमाम बैरियर तोड़ते हुए अब डॉलर के मुकाबले 71 को भी पार कर गया है. जानकार कहते हैं कि 73 या 75 के स्तर तक भी रुपया पहुंच सकता है. रुपए की कमजोरी उसी ट्रेंड का हिस्सा है जिसमें डॉलर के मुकाबले तमाम उभरती हुई इकनॉमी की करेंसी फिसल रही हैं. टर्की की करेंसी लीरा से उभरती हुई करेंसी में गिरावट का सिलसिला जो शुरू हुआ था वो बरकरार है.

रुपया इस साल करीब 10 परसेंट कमजोर हो चुका है. रुपए की गिरावट पेट्रोल-डीजल के दाम और बढ़ाएगी जिसका नतीजा महंगाई बढ़ने का खतरा क्योंकि इंपोर्ट महंगा हो जाएगा.

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रुपये में गिरावट मतलब क्या ?

डॉलर या किसी भी और विदेशी मुद्रा के मुकाबले जब रुपये का एक्सचेंज प्राइस घट जाती है तो उसे रुपये में गिरावट कहते हैं. यानी एक डॉलर के बदले ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं. जैसे एक दिन पहले 70 रुपये में मिल रहा डॉलर, अगर अगले ही दिन 71 रुपये में बिकने लगे तो इसका मतलब ये हुआ कि डॉलर के मुकाबले रुपये की एक्सचेंज प्राइस कम हो गयी, यानी रुपये में गिरावट.

क्यों गिर रहा है रुपया?

  • भारत का व्यापार संतुलन काफी खराब हालत में है यानी हम जितना इंपोर्ट करते हैं, उसके मुकाबले एक्सपोर्ट बहुत कम कर रहे हैं. इससे डॉलर की डिमांड बढ़ गई है, मतलब डिमांड ज्यादा, सप्लाई कम नतीजा व्यापार घाटे में बढ़ोतरी.
  • FDI यानी सीधे विदेशी निवेश में भी गिरावट आ रही है. इन दोनों ही वजहों से डॉलर की मांग बढ़ रही है. इसलिए डॉलर महंगा हो रहा है.
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अमेरिकी बाजार में बढ़ता रिटर्न

अमेरिकी बॉन्ड मार्केट में यील्ड यानी निवेश पर रिटर्न का बढ़ना, इसकी एक बड़ी वजह है. रिटर्न बढ़ने पर बड़े निवेशक भारत जैसे देशों से पूंजी निकालकर अमेरिका में लगा रहे हैं. इन हालात में डॉलर की मांग और कीमत बढ़ जाती है, जबकि रुपये की मांग और कीमत घटने लगती है. कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण भी भारत में डॉलर की मांग बढ़ रही है,जिसने रुपये को और कमजोर किया है.

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कच्चे तेल का महंगा होना

अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु करार तोड़ने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की सप्लाई को लेकर आशंकाएं बढ़ गईं. इससे कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ते बढ़े 80 डॉलर प्रति बैरल के पास पहुंच गए हैं. भारत के लिए ये एक बुरी खबर है, क्योंकि हमें अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल बाहर से इंपोर्ट करना पड़ता है. कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ेगा,जिससे डॉलर की जरूरत और मांग भी बढ़ जाएगी और रुपए के मुकाबले वो और महंगा हो जाएगा

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रुपये में गिरावट से सभी इंपोर्ट महंगे

रुपया कमजोर होने से उन चीजों की लागत बढ़ जाती है, जिन्हें हम डॉलर जैसी विदेशी मुद्रा देकर विदेश से खरीदते हैं. रुपये में 10 फीसदी गिरावट का मतलब ये है कि जो सामान हम पहले 100 रुपये में इंपोर्ट करते थे, उसी सामान के लिए अब हमें 110 रुपये देने पड़ेंगे. ऐसे में इंपोर्ट पर निर्भर उद्योगों पर लागत बढ़ जाती है. इसलिए दाम बढ़ने का खतरा रहता है.

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पेट्रोल-डीजल के दाम और बढ़ेंगे

मुंबई में पेट्रोल 86 रुपए लीटर के पार हो चुका है. डीजल भी 70 रुपए से ऊपर है. ऐसे में रुपया की गिरती वैल्यू पेट्रोल-डीजल के दामों को और बढ़ाएगी. डीजल महंगा होने से सामानों की ढुलाई का खर्च बढ़ता है. जिससे अनाज समेत तमाम चीजों के दामों में तेजी आने का खतरा रहता है. मतलब महंगाई का बढ़ना.

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विदेशी कर्ज और ब्याज का बोझ भी बढ़ेगा

इसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि भारत के तमाम विदेशी कर्जों और उन पर दिए जाने वाले ब्याज का बोझ अचानक बढ़ता जाएगा. जैसे रुपये में 10 फीसदी गिरावट का मतलब है,विदेशी मुद्रा में लिए गए जिस कर्ज के लिए 1 लाख रुपये का प्रावधान करना था, अब उसके लिए 1 लाख 10 हजार रुपये अलग रखने पड़ेंगे. इससे सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों, दोनों पर देनदारी का बोझ बढ़ जाएगा.

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रुपये में गिरावट से क्या कोई फायदा भी है?

रुपये में गिरावट से सिर्फ नुकसान नहीं होता कम से कम सैद्धांतिक तौर पर तो इसका एक फायदा भी है. जैसे एक्सपोर्ट की जाने वाली चीजें, विदेशों में सस्ती हो जाती हैं. जिससे उनकी मांग बढ़ सकती है और एक्सपोर्ट में उछाल आ सकता है. लिहाजा, रुपये में गिरावट आना एक्सपोर्ट करने वाले उद्योगों के लिए फायदेमंद हो सकता है. लेकिन करेंसी की एक्सचेंज प्राइस में गिरावट से किसी इकॉनमी को कुल मिलाकर फायदा तभी हो सकता है, जब उसका एक्सपोर्ट, इंपोर्ट से ज्यादा हो. भारत जैसे देश के लिए, जो इंपोर्ट ज्यादा करता है और एक्सपोर्ट कम, रुपये का गिरना आम तौर पर घाटे का सौदा ही है.

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