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वाइल्डलाइफ सफारी पर नियम बनाना क्यों जरूरी हो गया है?

Wildlife सफारी पर जाते समय पर्यटकों को अपने व्यवहार के संदर्भ में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

Published
कुंजी
5 min read
वाइल्डलाइफ सफारी पर नियम बनाना क्यों जरूरी हो गया है?
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फरवरी में पहले वायरल हुए एक वीडियो में देखा गया था कि कैसे पश्चिम बंगाल के जलदापारा नेशनल पार्क (Jaldapara National Park) में पर्यटकों के एक समूह को ले जा रही एक एसयूवी एक गैंडे द्वारा हमला किए जाने के बाद पलट गई थी.

यह घटना एक वाइल्डलाइफ सफारी के दौरान हुई, जब दो जीपों में सवार पर्यटक गैंडे की तस्वीरें क्लिक कर रहे थे. इस घटना में सात पर्यटक घायल हो गए थे.

भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी आकाश दीप बधावन ने वीडियो को माइक्रोब्लॉगिंग साइट, ट्विटर पर शेयर कर - वन्यजीव सफारी को संचालित करने के लिए दिशानिर्देशों की मांग की थी. हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि इसकी जरूरत आखिर क्यों आन पड़ी है?

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नेशनल पार्क क्या कर सकते हैं? सफारी पर जाते समय पर्यटकों को अपने व्यवहार के संदर्भ में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

बेहतर समझने के लिए द क्विंट ने वन्यजीव संरक्षण (Wildlife Conservation) और जलवायु परिवर्तन से निपटने में निवेश करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष अनीश अंधेरिया से संपर्क किया.

पश्चिम बंगाल में आखिरकार हुआ क्या था ?

जलदापारा नेशनल पार्क में, एक डरा हुआ गैंडा, जो अपने बछड़े के साथ एक सड़क पार करने की कोशिश कर रहा था, एक टूरिस्ट जीप के बहुत करीब आने के बाद उस पर चढ़ गया, जिससे गाड़ी पलट गई. घटना के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने जलदापारा नेशनल पार्क के अंदर पर्यटकों को ले जाने वाले वाहनों के चालकों और गाइडों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी है.

पिछले महीने की घटना इसी तरह की एक और घटना जैसी है, जहां एक सींग वाले गैंडे को असम के मानस नेशनल पार्क में पर्यटकों के एक ग्रुप का पीछा करते देखा गया था.

पिछले साल नवंबर में भी, भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के अधिकारी सुरेंद्र मेहरा द्वारा ट्वीट किए गए एक वीडियो में जंगल सफारी के दौरान खुली जीप में सवार लोगों के एक समूह पर एक बाघ को हमला करते हुए दिखाया गया था.

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क्या भारत में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म बढ़ रहा है?

भारतीय वन्यजीव संस्थान का राष्ट्रीय वन्यजीव डेटाबेस (National Wildlife Database) भारत के 981 प्रोटेक्टेड एरिया के नेटवर्क को दिखाता है जिसमें 566 वाइल्डलाइफ सेंचुरी, 106 नेशनल पार्क, 214 कम्युनिटी स्टोर और 97 प्रोटेक्टेड एरिया शामिल हैं. ये कुल 1,71,921 किमी या देश के लगभग 5.03 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करते हैं.

अनीश अंधेरिया ने द क्विंट को बताया कि ज्यादातर नेशनल पार्क सफारी के लिए अपनी जमीन का करीब 20 फीसदी हिस्सा ही खोलते हैं.

अंधेरिया का मानना है कि वन्यजीव पर्यटन (वाइल्डलाइफ टूरिज्म) को सिर्फ एक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.

"जब भी कोई घटना होती है (जैसे जलदापारा में) तो वन्यजीव पर्यटन पर प्रतिबंध लगाने के लिए हल्ला-गुल्ला मच जाता है. लेकिन यह समझना चाहिए कि यह एक बहुत ही सूक्ष्म दृश्य है. वन्यजीव पर्यटन ही एकमात्र उद्योग है, जो संरक्षण के साथ-साथ चलता है."
अनीश अंधेरिया

उन्होंने आगे कहा कि, "ज्यादातर अन्य उद्योग प्रॉफिट कमाने वाले हैं, जो पर्यटन की तुलना में प्रकृति को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. जंगलों में दुर्घटनाओं/घटनाओं की तुलना में कहीं ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, लेकिन यह हमें गाड़ी चलाने से नहीं रोकती है?"

'वाइल्ड लाइफ टूरिज्म स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में मदद करता है'

उन्होंने बताया कि कैसे वाइल्ड लाइफ टूरिज्म स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में मददगार साबित होता है. उन्होंने कहा,

"उदाहरण के लिए, रणथंभौर नेशनल पार्क, जो सवाई माधोपुर शहर में है, हर साल प्रवेश शुल्क (गेट मनी) के रूप में करीब 23 करोड़ रुपये कमाता है, जो सरकार के पास जाता है. उस पैसे के बारे में सोचें जो पार्क में गाइड, ड्राइवर, होटल और इन वाहनों के मालिक कमाते हैं. बाघ पर्यटन के कारण, रणथंभौर हर साल करीब 500-600 करोड़ रुपये कमा रहा होगा."
अनीश अंधेरिया

इसी तरह, उन्होंने बताया कि ताडोबा नेशनल पार्क में 22 सफारी गेट हैं, जिनमें से चार कोर जोन में हैं और शेष 18 बफर जोन में हैं और वे सभी ग्रामीणों द्वारा कंट्रोल किए जाते हैं. यह लगभग 27-28 गांवों को उनकी कृषि आय के अलावा आजीविका प्रदान कर रहा है.

यहां तक कि जो लोग कृषि में शामिल नहीं हैं, उनके लिए भी वे या तो जंगल में गाइड के रूप में काम कर रहे हैं, या कार चला रहे हैं, या पर लोन पर कार लेकर चला रहे हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में पैसा लगाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि देश के ज्यादातर टाइगर रिजर्व की यही कहानी है.

उन्होंने कहा, "इन क्षेत्रों से करीब 15-20 किमी दूर रहने वाले कस्बों/शहरों की तुलना में इन रिजर्व के आसपास के कस्बों/शहरों का विकास बेहतर है."

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मोबाइल फोन के इस्तेमाल के नियमन की आवश्यकता

अंधेरिया ने कहा कि हालांकि आजकल जो पर्यटन हो रहा है वह जोखिम मुक्त नहीं है.

"इस तरह के हमलों के लिए जिम्मेदार एक प्रमुख कारक मोबाइल फोन है. क्या होता है कि ज्यादातर मोबाइल फोन में वाइड एंगल कैमरे होते हैं जहां जूम शॉट्स हासिल करना थोड़ा मुश्किल होता है, इसलिए लोग जानवरों के बहुत करीब चले जाते हैं. उदाहरण के लिए, अगर कोई पर्यटक चाहता है तो वह जानवर की एक तस्वीर लेने के लिए, ड्राइवर को जानवर के करीब जाने के लिए कह सकता है. ड्राइवर पर्यटक की बात सुन सकता है क्योंकि उसे ज्यादा टिप्स मिल सकती हैं. ड्राइवरों को इस तरह के व्यवहार को बढ़ावा नहीं देना चाहिए."

अंधेरिया ने कहा कि राष्ट्रीय उद्यान/भंडार (National Park/reserve) महाराष्ट्र के ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान के नक्शेकदम पर चल सकते हैं, जहां मोबाइल फोन की अनुमति नहीं है.

उन्होंने कहा, "ताडोबा के प्रवेश द्वार पर एक मेटल बॉक्स है, जहां विजिटर्स के सेल फोन इकठ्ठा किए जाते हैं, उन्हें बंद रखा जाता है और सफारी वाहन के अंदर रखा जाता है. हालांकि, बॉक्स की चाबियां वन विभाग के पास रहती हैं."

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पर्यटकों को संवेदनशील बनाया जाए

अंधेरिया ने कहा कि इन मुद्दों को हल करने के लिए ड्राइवरों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए संवेदीकरण कार्यक्रमों की जरुरत है.

"पर्यटकों को यह समझने की जरुरत है कि कुछ नियमों का पालन करने की आवश्यकता क्यों है. उदाहरण के लिए, काजीरंगा जाने वालों को यह समझने की जरुरत है कि वहां की स्थलाकृति (topography) अलग है क्योंकि घास इतनी ऊंची है कि जानवरों को देखना असंभव हो जाता है (जिससे जानवरों को छुपना पड़ता है), इसलिए पर्यटकों को ड्राइवर को घास के बहुत करीब जाने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए क्योंकि वहां कोई जानवर छिपा हो सकता है और हमले का खतरा बढ़ सकता है."

उन्होंने कहा कि पर्यटकों को सभी नेशनल पार्कों और रिजर्वों के लिए नियमों का पालन करने के लिए इसे एक बिंदु बनाना होगा जैसे - जानवरों को खाना नहीं देना, किसी भी जगह नीचे नहीं उतरना और कचरा नहीं फेंकना.

"लेकिन कुछ राज्यों में नियम सख्त हैं, कुछ में वे नहीं हैं. उदाहरण के लिए, उन जगहों पर जहां इस तरह के पर्यटन से राजस्व अधिक है, (अधिकारी) आमतौर पर दिशानिर्देशों के बारे में सख्त हैं."

वाहनों का नियमन भी होना चाहिए

"कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में, एक अभ्यास किया जा रहा है, जहां सफारी वाहनों पर एक गति सीमा लगाई जा रही है. वाहनों की गति को रिकॉर्ड करने और उनकी गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए वाहनों में जीपीएस लगाया जाता है ताकि वन नियंत्रण कक्ष को पता चल सके जब कोई वाहन ट्रैक से उतर रहा हो, तो वह किन जगहों पर गया होगा, आदि. इसके कारण वाहन चालक अधिक सतर्क हो गए हैं."

अंधेरिया ने कहा, "ड्राइवरों की ओर से किसी भी उल्लंघन के परिणामस्वरूप एक निश्चित अवधि के लिए उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. यह प्रयोग पेंच नेशनल पार्क में भी किया जा रहा है. पार्क और रिजर्व इस नीति को अपना सकते हैं."

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