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Anaemia Deficiency: आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया से बचने के लिए क्या करें?

Anaemia Risks: भारत में एनीमिया अभी एक बड़ी समस्या बना हुआ है, खास कर महिलाओं और बच्चों में.

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Anaemia Risk Factors And Prevention: भारत में एनीमिया खास कर महिलाओं और बच्चों में अभी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. इस बात की पुष्टि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 5 की रिपोर्ट भी करती है कि NFHS 4 की तुलना में एनीमिया से ग्रसित महिलाओं और बच्चों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई है. आजकल महिलाओं में आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया के मामले अधिक देखने को मिल रहे हैं.

आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया किसे कहते हैं? क्या हैं इसके लक्षण, रिस्क फैक्टर्स, बचाव और इलाज के उपाय? फिट हिंदी ने गुरुग्राम, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रिंसीपल डायरेक्टर एंड चीफ बीएमटी, डॉ. राहुल भार्गव से आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के बारे में जानते हैं.

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आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया किसे कहते हैं?

आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया उस कंडीशन को कहते हैं, जिसमें शरीर में आयरन की इतनी कमी हो जाती है कि रेड ब्लड सेल्स में मौजूद एक प्रकार का प्रोटीन, हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता. जैसा कि हम जानते हैं हीमोग्लोबिन ही हमारे पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. अक्सर महिलाओं में ये समस्या अधिक देखने को मिलती है.

देश में आधी से अधिक महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं और बच्चे एनीमिक हैं यानी उनमें खून की कमी है.

इसके लक्षण क्या हैं?

शरीर में आयरन की कमी होने पर रेड ब्लड सेल्स भी कम बनते हैं या इनका आकार काफी छोटा होता है, जिनमें हिमोग्लोबिन की मात्रा भी कम होती है. इसकी वजह से आपके शरीर के दूसरे भागों तक ऑक्सीजन भी कम पहुंचता है, जिसके कारण यहां बताए गए लक्षण दिखायी देते हैं:

  • थकान और कमजोरीः यह सबसे आम लक्षण होता है क्योंकि आपके शरीर को एनर्जी प्रोडक्शन के लिए ऑक्सीजन हासिल करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है. 

  • सांस फूलना: शरीर में ऑक्सीजन की सीमित डिलीवरी होने की वजह से, जरा सी मेहनत करते ही आपको सांस लेने में परेशानी हो सकती है. 

  • त्वचा का डल दिखना या पीलापन बढ़ना: ऑक्सीजन की कमी की वजह से आपकी त्वचा की रंगत कम होने लगती है और कई बार उसमें हल्का पीलापन भी दिखायी देता है. 

  • चक्कर आना: ऐसा ऑक्सीजन की कमी के कारण ब्लड प्रेशर घटने की वजह से होता है. 

  • सिरदर्द: ब्रेन को कम ऑक्सीजन पहुंचने का एक और लक्षण सिरदर्द भी हो सकता है. 

  • हाथों और पैरों का ठंडा होना: एनीमिया की वजह से खून का दौरा हल्का पड़ जाता है, जिसके कारण आपकी हथेलियां और पैरों के पंजे ठंडे रहते हैं. 

  • नाखून और बाल का अधिक टूटना: आयरन डेफिशिएंसी के कारण आपके नाखून कच्चे हो जाते हैं और बाल भी झड़ने लगते हैं.

"आयरन की प्रचुरता वाली खुराक का सेवन करने से आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया से बचाव हो सकता है."
डॉ. राहुल भार्गव, प्रिंसिपल डायरेक्टर एवं चीफ बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के रिस्क फैक्टर्स क्या हैं?

आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के कुछ रिस्क फैक्टर्स इस प्रकार हैं: 

  • डाइट: आपके भोजन में आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ की पर्याप्त मात्रा नहीं होना आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का सबसे आम कारण होता है. आयरन की प्रचुर मात्रा वाले भोजन में रेड मीट, पोल्ट्री, मछली, बीन्स, दालें, टोफू, हरी पत्तेदार सब्जियां और फोर्टिफाइड अनाज शामिल हैं. 

  • पीरियड्स में ब्लीडिंग: जिन महिलाओं को हर महीने पीरियड्स से गुजरना पड़ता है, उन्हें आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का खतरा ज्यादा होता है. 

  • प्रेगनेंसी: प्रेगनेंट महिलाओं को अपने गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिए अधिक आयरन की आवश्यकता होती है, यही कारण है कि उन्हें आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का खतरा भी ज्यादा होता है. 

  • रोगों के कारण ब्लीडिंग: अल्सर, क्रॉनिक रोग या कैंसर जैसे रोगों के मरीजों को ब्लड लॉस की वजह से आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का जोखिम रहता है.

  • कुछ खास मेडिकल कंडीशंसः कुछ मेडिकल कंडीशंस जैसे कि सिलिएक रोग और किडनी रोग ऐसे होते हैं कि उनकी वजह से आपके शरीर की आयरन अब्सॉर्प्शन की क्षमता कमजोर पड़ जाती है. 

  • सर्जरी: जिन लोगों ने हाल में सर्जरी करवायी होती है, उन्हें भी आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का जोखिम हो सकता है. 

  • शराब की लत: शराब आपके शरीर में आयरन के अब्सॉर्प्शन को प्रभावित कर सकती है.

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किन लोगों में इसका रिस्क ज्यादा है?

"आबादी के कुछ समूहों की शारीरिक मांग, पोषण संबंधी सीमाओं और सेहत से जुड़ी जटिलताओं की वजह से स्थिति और गंभीर हो जाती है."
डॉ. राहुल भार्गव, प्रिंसिपल डायरेक्टर एवं चीफ बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

आबादी के कुछ समूहों में आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का खतरा दूसरों की तुलना में अधिक होता है. इस मामले में कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

  • महिलाएं: जिन महिलाओं को अनियमित पीरियड्स के दौरान भारी ब्लीडिंग होती है, वे ब्लड लॉस की वजह से अधिक रिस्क में होती हैं. स्तनपान कराने वाली और गर्भवती महिलाओं के शरीर में पल रहे भ्रूण या नवजात की पोषण जरूरत को पूरा करने के लिए, सामान्य से अधिक आयरन की मांग होती है. 

  • बच्चे: आमतौर पर नवजात और शिशुओं में कई बार तेजी से विकास होने, प्रीमैच्योर जन्में बच्चों में आयरन की जरूरत सामान्य से ज्यादा हो सकती है और इसकी पूर्ति केवल खानपान से नहीं हो पाती. 

  • वयस्क: बुजुर्गों, खासतौर से 65 साल से अधिक उम्र वाले वयस्कों के पाचन तंत्र में उम्र संबंधी बदलावों के चलते कई बार आयरन अब्सॉर्प्शन घट जाता है.

प्रसव पूर्व देखभाल, पोषण कार्यक्रमों में सुधार और पब्लिक हेल्थ इंटरवेंशन से आबादी के इस समूह में आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के प्रसार को कम किया जा सकता है.

इससे बचने के लिए क्या करें?

अगर आपको इस बात की आशंका है कि आप आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के शिकार हो गए हैं, तो इसकी पुष्टि करने और इलाज के लिए डॉक्टर से मिलना बेहद जरूरी है. वह आमतौर से आपका ब्लड टेस्ट करते हैं और आपके शरीर में हीमोग्लोबिन लेवल और ब्लड संबंधी दूसरी बातों की जांच करते हैं.

  • आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के इलाज में आमतौर से इन पहलुओं को शामिल किया जाता है:

  • आयरन सप्लीमेंट: ओरल या इंट्रावेनस आयरन सप्लीमेंट्स लेने से शरीर में आयरन भंडार को भरने में मदद मिलती है. 

  • खानपान में बदलाव: आयरन से भरपूर पोषण आपके शरीर को लंबी अवधि के लिए आयरन प्रदान करता है. 

  • दूसरे मेडिकल कंडीशन का इलाज: सफल इलाज के लिए ऐसी किसी भी मेडिकल कंडीशन का इलाज करना जरूरी होता है, जिसकी वजह से ब्लीडिंग हो रही हो या आयरन अब्सॉर्प्शन प्रभावित होता हो. 

सही डायग्नोसिस और इलाज से आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया का काफी हद तक इलाज करना मुमकिन है.

शुरुआती चरण में ही डायग्नोसिस और इंटरवेंशन से हार्ट संबंधी समस्याओं से बचा जा सकता है और दूसरे कॉग्निटिव फंक्शन को भी प्रभावित होने से बचाया जा सकता है.
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इसका इलाज क्या है?

आयरन डेफिशिएंसी एनीमिया के इलाज में मुख्य रूप से शरीर में आयरन के भंडार को दोबारा भरने और इस कमी के कारण को दूर करने पर जोर दिया जाता है. इसके लिए इन बातों में रखें ध्यान:

  • आयरन सप्लीमेंटेशन लें: यह इलाज का सबसे सामान्य तरीका होता है, इसके लिए फेरस सल्फेट का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है क्योंकि इसकी अब्सॉर्प्शन दर अधिक है. हर दिन 150-200 मिग्रा आयरन की खुराक का सेवन करने की सलाह दी जाती है, हालांकि यह एनीमिया की गंभीरता और व्यक्तिगत जरूरतों पर भी काफी हद तक निर्भर करता है.

  • डाइट में बदलाव करें: हेम आयरन से भरपूर फूड्स आइटम बढ़ाएं, इनमें रेड मीट, पोल्ट्री, सीफूड और लीवर शामिल हैं. सब्जी के सोर्स वाले गैर-हम आयरन जैसे कि बीन्स, दालें, पत्तेदार सब्जियां और मेवे शामिल हो सकते हैं, लेकिन इनसे अब्सॉर्प्शन कम होता है, हालांकि इन्हें विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थों के साथ लेने से असॉर्प्शन बेहतर हो सकता है. आयरन फोर्टिफाइड अनाज, ब्रैड और अनाज आधारित उत्पादों को अपनी दैनिक खुराक में शामिल करें.

  • ब्लड लॉस: शरीर से होने वाले ब्लड लॉस के कारणों का पता लगाना जरूरी है, जैसे कि क्या यह मासिक धर्म के दौरान अधिक ब्लीडिंग की वजह से है या अल्सर, हेमोरॉयड्स इसकी वजह है. ऐसा कर शरीर से आयरन का स्राव कम किया जा सकता है.

  • अवशोषण संबंधी समस्याएं: शरीर में सीलिएक रोग या क्रोन्स रोग का उपचार करने से आयरन अब्सॉर्प्शन में सुधार लाकर आयरन की और कमी होने से बचा जा सकता है.

  • मेडिकल कंडीशन: कुछ मेडिकल कंडीशन की वजह से भी एनीमिया होता है, इनमें क्रोनिक किडनी रोग या कुछ खास तरह के इंफेक्शंस शामिल हैं, इसलिए इनका इलाज करना जरूरी होता है.

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