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HIV: ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण एचआईवी के प्रसार से कैसे निपटें, भारत में क्या है स्थिति?

भारत में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण एचआईवी (HIV) का संकट बढ़ा है.

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Blood Transfusion: हाल के वर्षों में भारत में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण एचआईवी (HIV) का संकट बढ़ा है. बेशक, ब्लड स्क्रीनिंग टैक्नोलॉजी बेहतर हुई है और ब्लड ट्रांसफ्यूजन संबंधी सुरक्षा मानक पहले से ज्यादा कड़े बनाए गए हैं, तब भी एचआईवी का प्रसार एक बड़ी समस्या बना हुआ है. भारत में ब्लड ट्रांसफ्यूजन से एचआईवी (HIV) के बढ़ते मामलों का मुख्य कारण ब्लड स्क्रीनिंग में ढिलाई है. इस आर्टिकल में इसी चुनौती के बढ़ते रुझान, ब्लड सप्लाई चेन और मरीजों की सुरक्षा पर चर्चा की जाएगी.

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ब्लड स्क्रीनिंग की चुनौतियां

भारत में ब्लड ट्रांसफ्यूजन से एचआईवी के बढ़ते मामलों का मुख्य कारण ब्लड स्क्रीनिंग में ढिलाई है. हालांकि न्युक्लिक एसिड टेस्टिंग (NAT) और दूसरे एडवांस स्क्रीनिंग तकनीकों को एडवांस्ड बनाया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. रिर्सोसेज की कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियां और हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के लेवल पर जागरूकता का अभाव भी समस्या का कारण है.

देश के कई दूरदराज के क्षेत्रों और कम सुविधा/सेवा प्राप्त इलाकों में, सीमित रिसोर्स एक बड़ी चुनौती है और यही कारण है कि आधुनिक स्क्रीनिंग टेक्नोलॉजी का लाभ यहां नहीं पहुंच पा रहा.

स्क्रीनिंग के लिए आवश्यक ट्रेनी टेक्निशियन और इक्विपमेंट का अभाव भी मुश्किलों को बढ़ाता है. नतीजतन, एचआईवी और दूसरे इंफेक्शंस के फैलने का खतरा बना रहता है.

किसी भी ब्लड सेफ्टी प्रोग्राम की कामयाबी के लिए ब्लड डोनेशन और ट्रांसफ्यूजन प्रक्रियाओं से जुड़े हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का जागरूक होना जरूरी होता है. उनके लिए समय-समय पर ट्रेनिंग प्रोग्राम करवाने चाहिए ताकि वे ब्लड सेफ्टी के मानकों का पालन सुनिश्चित करें.

ये हो सकते हैं समाधान

भारत में ब्लड ट्रांसफ्यूजन से एचआईवी ट्रांसमिशन की चुनौती अब भी जारी है और इससे निपटने के लिए रणनीति तैयार करने की जरूरत है.

  • एडवांस स्क्रीनिंग टैक्नोलॉजी की खरीद के लिए संसाधनों का आवंटन (allocate resources), खासतौर से दूरदराज के और कम सेवा-प्राप्त क्षेत्रों के लिए, जरूरी है.

  • सेंट्रलाइज्ड टेस्टिंग होनी चाहिए ताकि देशभर में स्क्रीनिंग की एक जैसी मानक प्रक्रियाओं को लागू किया जा सके.

ट्रेनिंग और जागरूकता कार्यक्रम को बढ़ावा देना चाहिए.

  • कड़े स्क्रीनिंग मानकों के बारे में हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को जागरूक बनाने के लिए नियमित रूप से ट्रेनिंग प्रोग्राम्स का आयोजन किया जाए.

  • वॉलंटरी ब्लड डोनेशन, एचआईवी टेस्टिंग और सुरक्षा उपायों के बारे में आम जनता को जानकारी दी जाए.

कम्युनिटी की भागीदारी महत्वपूर्ण रोल निभाती है.

  • एचआईवी से जुड़ी सामाजिक शर्मिन्दगी (social embarrassment) को कम करने के लिए कम्युनिटी के स्तर पर जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि आम जनता बिना किसी भेदभाव के डर के खुद से टेस्ट करवाने के लिए आगे आएं.

  • कम्युनिटी लेवल पर जिम्मेदारी की भावना के साथ रक्तदान को प्रोत्साहन दें.

इंटीग्रेटेड रेगुलेशन नेटवर्क को मजबूत बनाया जाना चाहिए.

  • केंद्र और राज्यों के स्तर पर रेगुलेटरी सिस्टम को मजबूत बनाया जाए ताकि इस संबंध में सुरक्षा के मानकों का एक समान और कड़ाई से पालन किया जा सके.

  • नियमित रूप से मॉनिटरिंग, ऑडिट और ब्लड सप्लाई चेन में किसी भी प्रकार की बाधाओं को पहचानने की व्यवस्था होनी चाहिए.

(यह आर्टिकल गुरुग्राम, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में इंफेक्शियस डिजीज- कंसलटेंट, डॉ. नेहा रस्तोगी पांडा ने फिट हिंदी के लिए लिखा है.)

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