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भारत में थैलेसीमिया के मरीजों की क्या स्थिति, किन कठिनाइयों से गुजरते हैं मरीज?

World Thalassemia Day 2023: अपना दर्द बताते थैलीसीमिया के मरीज

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World Thalassemia Day 2023: थैलेसीमिया भारत में स्वास्थ्य चिंता का विषय है. पुराने अकड़ों के अनुसार, हर साल भारत में लगभग 10,000 बच्चे थैलीसीमिया की समस्या के साथ पैदा होते हैं और 1.5 लाख लोग इस बीमारी के साथ जी रहे हैं. भारत दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी है. यह बीमारी देश के कुछ क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है, जैसे पंजाब, हरियाणा और गुजरात. एक्सपर्ट्स के अनुसार, देश में थैलीसीमिया मरीजों की संख्या दिन ब दिन बढ़ रही है पर, इसका सही आंकड़ा किसी एक जगह उपलब्ध नहीं है.

वर्ल्ड थैलीसीमिया डे पर फिट हिंदी ने देश में थैलेसीमिया के मरीजों से जुड़ी समस्याओं के बारे में गहराई से जानने की कोशिश की.

भारत में थैलेसीमिया के मरीजों की क्या स्थिति, किन कठिनाइयों से गुजरते हैं मरीज?

  1. 1. भारत में थैलेसीमिया और उसके मरीजों की स्थिति

    शारीरिक और मानसिक परेशानियों के साथ-साथ इस डिसऑर्डर का 95% खर्च थैलेसीमिया मरीज अपनी जेब से भरते हैं.

    फिट हिंदी ने TPAG की सदस्य सचिव, अनुभा तनेजा मुखर्जी से बात की. क्या देश में थैलीसीमिया के मरीजों की संख्या कम हुई है सवाल पर ये था उनका कहना,

    "देखिए रुकी तो बिल्कुल भी नहीं है और बात ये है कि इस चीज पर कोई डाटा नहीं है. डेटा जो है वह सारे पॉकेट्स में है, तभी मैंने एक रजिस्ट्री की बात की है. डेटा पॉकेट में एक्जिस्ट करता है अगर आप अपोलो हॉस्पिटल में जाएंगे या मैक्स हॉस्पिटल में जाएंगे तो वो आपको अपना डाटा दे सकते हैं, लेकिन अभी तक कोई ऐसा पोर्टल नहीं है.
    अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

    हालांकि NHA ने TPAG को आश्वासन दिया है कि एक पोर्टल बन रहा है, जिसमें सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया समस्या के साथ जन्में बच्चों को जन्म लेते ही रजिस्टर किया जाएगा.

    "थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों कि संख्या हिंदुस्तान में लगातार बढ़ रही है. हर साल 10,000 से भी ज्यादा नए मरीज जन्म ले रहे हैं. इसे रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने और शादी और जन्म से पहले थैलेसीमिया जांच कराने की आवश्यकता है."
    वीरेश, टीपीएजी TPAG सदस्य

    थैलीसीमिया के मरीजों की परेशानी पर वीरेश आगे कहते हैं,

    "थैलेसीमिया के मरीज कई कठिनाइयों से गुजरते हैं, जिनमें सबसे पहले है इलाज के स्तर में असमानता. कुछ संस्थान बहुत बेहतरीन तरीके से यह सेवाएं दे रही हैं, जबकि कुछ संस्थानों के पास प्राथमिक सुविधाओं का भी अभाव है."

    "सेहत मैनेजमेंट सबसे बड़ी कठिनाई है इसके साथ-साथ अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को आगे बढ़ाना भी एक कठिनाई होती है. हर थैलेसीमिया के मरीज को अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए और एक अच्छी नौकरी कर अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए.
    निष्ठा मदान, संस्थापक सदस्य TPAG और लेक्चरर
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  2. 2. क्या है सुरक्षित खून की अहमियत थैलेसीमिया मरीजों के लिए?

    सबसे बड़ी समस्या है सेफ ब्लड के उपलब्धता की.

    TPAG के सदस्यों ने कहा कि ब्लड में एचआईवी (HIV), एचसीवी और दूसरे परीक्षणों के लिए नैट (NAT) जांच स्वर्ण मानक माना जाता है, जिसका प्रयोग ब्लड की जांच के लिए किया जाना बेहद महत्वपूर्ण है. यह सुविधा अभी कुछ ही ब्लड बैंकों में उपलब्ध है. थैलेसीमिया के मरीजों को महीने में दो से तीन बार ब्लड दिया जाता है, जो कि ब्लड से होने वाले संक्रमणों के जोखिम बढ़ा देते हैं. उन्हें ब्लड से होने वाले संक्रमणों के जोखिम से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें केवल नैट (NAT) जांच किया गया ब्लड ही उपलब्ध कराएं.

    TPAG के मेंबर्स कहते हैं कि थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों को एचआईवी (HIV) और हेपेटाइटिस (HCV) से बचने के लिए नैट (NAT) जांच के बाद ही ब्लड दिया जाना चाहिए, पर यह सुविधा बहुत ही कम ब्लड बैंक में उपलब्ध है. जिसकी वजह से काफी सारे बच्चे इन बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं.

    वीरेश के अनुसार, सेफ ब्लड की उपलब्धता के लिए स्वैच्छिक रक्तदान (voluntary blood donation) बेहद जरुरी है और इस क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है.

    "थैलेसीमिया के मरीजों की जिंदगी में काफी कठिनाई आती है, कई बारी ऐसा हुआ है कि खून की कमी रही है, कई-कई दिन खून नहीं मिला है, जिसके कारण हीमोग्लोबिन गिर गया, कई बारी ऐसा होता है कि जो हमारे कि लेटर हैं वह इतने महंगे हैं कि उसे हम ऑफोर्ड ही नहीं कर पाते और कई-कई महीने इस वजह से आयरन कीलेशन नहीं ले पाए."
    निष्ठा मदान, संस्थापक सदस्य TPAG और लेक्चरर

    निष्ठा आगे कहती हैं, "आयरन कीलेटर जो है, उनका साइड इफेक्ट इतना ज्यादा होता है कि वह अचानक से हमारे सामने आता है और जिसके कारण काफी ऑर्गन डैमेज भी होते हैं और इम्यूनिटी फैलियर भी होते हैं और ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था जब मैं दसवीं की कक्षा में थी, एक आयरन कीलेटर मुझे रिएक्ट कर गया था जिसके कारण में 3 महीने स्कूल नहीं जा पाई. वह मेरा सबसे कठिन समय रहा और उसके बाद अभी दोबारा ऐसा हुआ जिसकी वजह से उसी समय का जो एक साइड इफेक्ट था वह रिपीट हुआ मेरे साथ और मेरे प्लेटलेट्स फिर से बहुत कम हुए जिससे मैंने धीरे धीरे रिकवर किया और अब आगे बढ़ी हूं".

    "आयरन कीलेटर और खून यह तो ऐसी चीजें हैं, जो हिंदुस्तान के हर थैलेसीमिया मरीज को और बच्चों को मुफ्त में मिलनी चाहिए चाहे वह इलाज सरकारी हॉस्पिटल से ले या वो ट्रीटमेंट प्राइवेट हॉस्पिटल से ले क्योंकि ये राइट टू लाइफ से जुड़ा है."
    वीरेश, टीपीएजी TPAG सदस्य
    Expand
  3. 3. जेनेटिक स्क्रीनिंग और काउंसलिंग है बेहद जरूरी

    "बीमारी की प्रकृति, जेनेटिक टेस्टिंग की उपयोगिता और संकेतों को समझने और परिवार में दूसरे बच्चों में इस बीमारी को होने से रोकने के लिए जेनेटिक काउंसलिंग जरूरी होती है. जेनेटिक काउंसलिंग यह समझने के लिए भी जरूरी है कि हर गर्भ में इस बीमारी के होने की आशंका 25% होती है. प्रिनैटल डायग्नोसिस और प्रिइंप्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस से बच्चों में इस बीमारी के संचरण को रोका जा सकता है.’’
    डॉ. वसुंधरा तम्हंकर, क्लिनिकल जेनेटिसिस्ट एवं पीडियाट्रिशियन, मेडजेनोम लैब्स एंड सीएमजी, मुंबई

    बीटा थैलेसीमिया एक जेनेटिक स्थिति है, जिसमें बीटा ग्लोबिन चेन के म्यूटेशन के कारण एनीमिया या खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है.

    चिकित्सा क्षेत्र में थैलेसीमिया मेजर एक गंभीर विकार है, जो बचपन में एनीमिया, लिवर की स्प्लीन बढ़ने के साथ शुरू होता है और इसके इलाज के लिए आजीवन हर माह खून का ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता है.

    थैलेसीमिया इंटरमीडिया से पीड़ित बच्चों को कम बार ट्रांसफ्यूज़न कराना पड़ता है. थैलेसीमिया मेजर या इंटरमीडिया से पीड़ित बच्चों में एचबीबी जीन की दोनों प्रतियों में म्यूटेशन हो जाता है, जो बीटा ग्लोबिन प्रोटीन का संश्लेषण (synthesis) करते हैं. थैलेसीमिया माईनर या कैरियर्स में एचबीबी जीन की एक प्रति में म्यूटेशन होता है और उन्हें आम तौर से ट्रांसफ्यूज़न की जरूरत नहीं हुआ करती है.

    थैलेसीमिया का कोई इलाज नहीं है लेकिन जल्द डायग्नोस और इलाज मरीज की जिंदगी को बेहतर बना सकती है

    थैलेसीमिया माईनर के मरीजों का निदान एचपीएलसी स्क्रीनिंग में बढ़े हुए एचबीए2 से हो सकता है. थैलेसीमिया इंटरमीडिया/मेजर के मरीजों में एचबीएफ बढ़ा हुआ होता है. इन मरीजों में म्यूटेशन की जांच करने के लिए डीएनए डायग्नोस्टिक तकनीकों जैसे आर्म्स पीसीआर, सैंगर सीक्वेंसिंग, नैक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग, एमएलपीए का उपयोग किया जा सकता है.

    इस बीमारी की अवेयरनेस भी ज्यादा नहीं है, जिसकी वजह से भेदभाव किया जाता है इसके मरीजों के साथ.
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  4. 4. 2022 से 2023 के थैलीसीमिया दिवस तक क्या कुछ बदला?

    बीते साल यानी 2022 से 2023 के थैलीसीमिया डे तक कुछ बदलाव आए हैं, जिनके बारे में फिट हिंदी को TPAG की संस्थापक सदस्य और लेक्चरर निष्ठा मदान ने बताया.

    "बुरी बात यह है कि इस साल के बजट में सिकल सेल को जितनी तवज्जो दी गई, उतनी एहमियत थैलेसीमिया को नहीं दी गई है. एक थैलेसीमिया मुक्त भारत के लिए हम कब से आवाज उठा रहे हैं. हमारे कई सारे थैलीसीमिया मुक्त इवेंट में सरकारी अधिकारी आए और सपोर्ट किया लेकिन बजट के एलोकेशन में हमें थैलेसीमिया कहीं नजर नहीं आया."
    निष्ठा मदान

    निष्ठा मदान आगे कहती हैं, "पिछले साल के थैलेसीमिया दिवस से लेकर अब तक कुछ अच्छे बदलाव हुए हैं और कुछ बुरे. अच्छे में यह है कि आरडीएनए ने थैलेसीमिया के मरीजों के लिए एक इंश्योरेंस स्कीम लागू कर रही है, यह राइट्स ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटी (Rights Of Person With Disability) एक्ट का एक अहम क्लोज (clause) भी है, जिसको इंप्लीमेंट किया गया है".

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  5. 5. सरकार से थैलीसीमिया के मरीजों की 5 मांगें

    देश की सरकार से थैलीसीमिया के मरीजों को क्या उम्मीदें हैं और वो क्या मांगें हैं, जो वो सरकार से लगातार कर रहे हैं, के सवाल पर अनुभा तनेजा मुखर्जी ने NAT ब्लड टेस्टिंग के अलावा 4 मांगों पर जोर देते हुए ये बताया,

    1. थैलेसीमिया के मरीज और दूसरे मरीज जो रेगुलर ट्रांसफ्यूजन करवाते हैं उनके लिए "नैट" (NAT) ब्लड टेस्टिंग को अनिवार्य (mandatory) किया जाए.

    2. देश में अभी 100% वॉलंटरी ब्लड डोनेशन (voluntary blood donation) मुमकिन नहीं है और इसको अभी काफी समय लगेगा. ऐसे में थैलीसीमिया मरीजों के लिये एक रजिस्ट्री की जरूरत है.

    "हमारी एक इन्वेंटरी तक नहीं है, तो सरकार हमारे लिए पॉलिसी कैसे बनाने वाली है? जब उनको पता ही नहीं है कि हमारे देश में आज की तारीख में कितने थैलेसीमिया मरीज हैं? रजिस्ट्री हमारी अर्जेंट डिमांड है."
    अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

    3. भारत सरकार को थैलीसीमिया के मरीजों के लिए एक नेशनल लेवल कंट्रोल प्रोग्राम लाना चाहिए जैसे पोलियो के लिए लाया गया है.

    "मुझे नहीं लगता कि हम 2047 की डेडलाइन की लग्जरी एक्सेस कर सकते हैं जब हमारा देश थैलेसीमिया कैपिटल के नाम से जाना जाता है."
    अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

    अनुभा तनेजा मुखर्जी आगे कहती हैं, "जिस तरह हम पोलियो के कैंपेन चलाते हैं उसी तरह थैलीसीमिया को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सरकार को कॉरपोरेट सेक्टर के साथ मिलकर यह अभियान चलाना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा स्क्रीनिंग करनी चाहिए, ज्यादा से ज्यादा अवेयरनेस प्रोग्राम करने चाहिए, सिलेब्रिटीज को भी इसमें मदद के लिए सामने आना चाहिए. साथ ही TPAG अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करेगा सरकार के साथ इस अभियान को सफल बनाने में".

    "मेरी सरकार से यह उम्मीद है कि वह एक स्टैंडर्डाइजेशन आफ ट्रीटमेंट (standardisation of treatment) लेकर आए और उस ट्रीटमेंट का एक्सटेंडेड पास भी लेकर आए जो कि हर थैलेसीमिया मरीज के लिए पॉकेट फ्रेंडली(pocket friendly) हो."
    वीरेश, टीपीएजी TPAG सदस्य

    4. थैलीसीमिया की रोकथाम और प्रतिबंधित (manage) करने के लिए दुनिया के कई हिस्सों में नई टेक्नोलॉजी और थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. भारत के अस्पतालों में भी इन्हें एक पायलट प्रोग्राम की तरह शुरू करके देखना चाहिए. साथ ही मरीज के मेंटल और इमोशनल हेल्थ की ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.

    5. नई पॉलिसी बनाते समय बेहतर पॉलिसी मेकिंग के लिए उस समस्या से जूझते मरीजों को उसमें शामिल करना चाहिए. अधिकतर थैलीसीमिया मरीज अपनी परेशानियों से लड़ते हुए भी देश के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं.

    "हमारे केस में मरीज न केवल पॉलिसी मेकिंग का हिस्सा बनने के हालत में है बल्कि वह अपने फील्ड में काफी आगे पहुंच चुके हैं जैसे डॉक्टर, वकील, इंजीनियर. हम मरीज अपनी फील्ड में एक्सपोर्ट्स है, टैक्स पेयर हैं, तो यह हमारा फंडामेंटल राइट(fundamental right) बन जाता है कि सरकार थैलीसीमिया पॉलिसी मेकिंग प्रक्रिया में हमें शामिल करें."
    अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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भारत में थैलेसीमिया और उसके मरीजों की स्थिति

शारीरिक और मानसिक परेशानियों के साथ-साथ इस डिसऑर्डर का 95% खर्च थैलेसीमिया मरीज अपनी जेब से भरते हैं.

फिट हिंदी ने TPAG की सदस्य सचिव, अनुभा तनेजा मुखर्जी से बात की. क्या देश में थैलीसीमिया के मरीजों की संख्या कम हुई है सवाल पर ये था उनका कहना,

"देखिए रुकी तो बिल्कुल भी नहीं है और बात ये है कि इस चीज पर कोई डाटा नहीं है. डेटा जो है वह सारे पॉकेट्स में है, तभी मैंने एक रजिस्ट्री की बात की है. डेटा पॉकेट में एक्जिस्ट करता है अगर आप अपोलो हॉस्पिटल में जाएंगे या मैक्स हॉस्पिटल में जाएंगे तो वो आपको अपना डाटा दे सकते हैं, लेकिन अभी तक कोई ऐसा पोर्टल नहीं है.
अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

हालांकि NHA ने TPAG को आश्वासन दिया है कि एक पोर्टल बन रहा है, जिसमें सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया समस्या के साथ जन्में बच्चों को जन्म लेते ही रजिस्टर किया जाएगा.

"थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों कि संख्या हिंदुस्तान में लगातार बढ़ रही है. हर साल 10,000 से भी ज्यादा नए मरीज जन्म ले रहे हैं. इसे रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने और शादी और जन्म से पहले थैलेसीमिया जांच कराने की आवश्यकता है."
वीरेश, टीपीएजी TPAG सदस्य

थैलीसीमिया के मरीजों की परेशानी पर वीरेश आगे कहते हैं,

"थैलेसीमिया के मरीज कई कठिनाइयों से गुजरते हैं, जिनमें सबसे पहले है इलाज के स्तर में असमानता. कुछ संस्थान बहुत बेहतरीन तरीके से यह सेवाएं दे रही हैं, जबकि कुछ संस्थानों के पास प्राथमिक सुविधाओं का भी अभाव है."

"सेहत मैनेजमेंट सबसे बड़ी कठिनाई है इसके साथ-साथ अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को आगे बढ़ाना भी एक कठिनाई होती है. हर थैलेसीमिया के मरीज को अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए और एक अच्छी नौकरी कर अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए.
निष्ठा मदान, संस्थापक सदस्य TPAG और लेक्चरर
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क्या है सुरक्षित खून की अहमियत थैलेसीमिया मरीजों के लिए?

सबसे बड़ी समस्या है सेफ ब्लड के उपलब्धता की.

TPAG के सदस्यों ने कहा कि ब्लड में एचआईवी (HIV), एचसीवी और दूसरे परीक्षणों के लिए नैट (NAT) जांच स्वर्ण मानक माना जाता है, जिसका प्रयोग ब्लड की जांच के लिए किया जाना बेहद महत्वपूर्ण है. यह सुविधा अभी कुछ ही ब्लड बैंकों में उपलब्ध है. थैलेसीमिया के मरीजों को महीने में दो से तीन बार ब्लड दिया जाता है, जो कि ब्लड से होने वाले संक्रमणों के जोखिम बढ़ा देते हैं. उन्हें ब्लड से होने वाले संक्रमणों के जोखिम से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें केवल नैट (NAT) जांच किया गया ब्लड ही उपलब्ध कराएं.

TPAG के मेंबर्स कहते हैं कि थैलेसीमिया पीड़ित मरीजों को एचआईवी (HIV) और हेपेटाइटिस (HCV) से बचने के लिए नैट (NAT) जांच के बाद ही ब्लड दिया जाना चाहिए, पर यह सुविधा बहुत ही कम ब्लड बैंक में उपलब्ध है. जिसकी वजह से काफी सारे बच्चे इन बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं.

वीरेश के अनुसार, सेफ ब्लड की उपलब्धता के लिए स्वैच्छिक रक्तदान (voluntary blood donation) बेहद जरुरी है और इस क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है.

"थैलेसीमिया के मरीजों की जिंदगी में काफी कठिनाई आती है, कई बारी ऐसा हुआ है कि खून की कमी रही है, कई-कई दिन खून नहीं मिला है, जिसके कारण हीमोग्लोबिन गिर गया, कई बारी ऐसा होता है कि जो हमारे कि लेटर हैं वह इतने महंगे हैं कि उसे हम ऑफोर्ड ही नहीं कर पाते और कई-कई महीने इस वजह से आयरन कीलेशन नहीं ले पाए."
निष्ठा मदान, संस्थापक सदस्य TPAG और लेक्चरर

निष्ठा आगे कहती हैं, "आयरन कीलेटर जो है, उनका साइड इफेक्ट इतना ज्यादा होता है कि वह अचानक से हमारे सामने आता है और जिसके कारण काफी ऑर्गन डैमेज भी होते हैं और इम्यूनिटी फैलियर भी होते हैं और ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था जब मैं दसवीं की कक्षा में थी, एक आयरन कीलेटर मुझे रिएक्ट कर गया था जिसके कारण में 3 महीने स्कूल नहीं जा पाई. वह मेरा सबसे कठिन समय रहा और उसके बाद अभी दोबारा ऐसा हुआ जिसकी वजह से उसी समय का जो एक साइड इफेक्ट था वह रिपीट हुआ मेरे साथ और मेरे प्लेटलेट्स फिर से बहुत कम हुए जिससे मैंने धीरे धीरे रिकवर किया और अब आगे बढ़ी हूं".

"आयरन कीलेटर और खून यह तो ऐसी चीजें हैं, जो हिंदुस्तान के हर थैलेसीमिया मरीज को और बच्चों को मुफ्त में मिलनी चाहिए चाहे वह इलाज सरकारी हॉस्पिटल से ले या वो ट्रीटमेंट प्राइवेट हॉस्पिटल से ले क्योंकि ये राइट टू लाइफ से जुड़ा है."
वीरेश, टीपीएजी TPAG सदस्य

जेनेटिक स्क्रीनिंग और काउंसलिंग है बेहद जरूरी

"बीमारी की प्रकृति, जेनेटिक टेस्टिंग की उपयोगिता और संकेतों को समझने और परिवार में दूसरे बच्चों में इस बीमारी को होने से रोकने के लिए जेनेटिक काउंसलिंग जरूरी होती है. जेनेटिक काउंसलिंग यह समझने के लिए भी जरूरी है कि हर गर्भ में इस बीमारी के होने की आशंका 25% होती है. प्रिनैटल डायग्नोसिस और प्रिइंप्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस से बच्चों में इस बीमारी के संचरण को रोका जा सकता है.’’
डॉ. वसुंधरा तम्हंकर, क्लिनिकल जेनेटिसिस्ट एवं पीडियाट्रिशियन, मेडजेनोम लैब्स एंड सीएमजी, मुंबई

बीटा थैलेसीमिया एक जेनेटिक स्थिति है, जिसमें बीटा ग्लोबिन चेन के म्यूटेशन के कारण एनीमिया या खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है.

चिकित्सा क्षेत्र में थैलेसीमिया मेजर एक गंभीर विकार है, जो बचपन में एनीमिया, लिवर की स्प्लीन बढ़ने के साथ शुरू होता है और इसके इलाज के लिए आजीवन हर माह खून का ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता है.

थैलेसीमिया इंटरमीडिया से पीड़ित बच्चों को कम बार ट्रांसफ्यूज़न कराना पड़ता है. थैलेसीमिया मेजर या इंटरमीडिया से पीड़ित बच्चों में एचबीबी जीन की दोनों प्रतियों में म्यूटेशन हो जाता है, जो बीटा ग्लोबिन प्रोटीन का संश्लेषण (synthesis) करते हैं. थैलेसीमिया माईनर या कैरियर्स में एचबीबी जीन की एक प्रति में म्यूटेशन होता है और उन्हें आम तौर से ट्रांसफ्यूज़न की जरूरत नहीं हुआ करती है.

थैलेसीमिया का कोई इलाज नहीं है लेकिन जल्द डायग्नोस और इलाज मरीज की जिंदगी को बेहतर बना सकती है

थैलेसीमिया माईनर के मरीजों का निदान एचपीएलसी स्क्रीनिंग में बढ़े हुए एचबीए2 से हो सकता है. थैलेसीमिया इंटरमीडिया/मेजर के मरीजों में एचबीएफ बढ़ा हुआ होता है. इन मरीजों में म्यूटेशन की जांच करने के लिए डीएनए डायग्नोस्टिक तकनीकों जैसे आर्म्स पीसीआर, सैंगर सीक्वेंसिंग, नैक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग, एमएलपीए का उपयोग किया जा सकता है.

इस बीमारी की अवेयरनेस भी ज्यादा नहीं है, जिसकी वजह से भेदभाव किया जाता है इसके मरीजों के साथ.
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2022 से 2023 के थैलीसीमिया दिवस तक क्या कुछ बदला?

बीते साल यानी 2022 से 2023 के थैलीसीमिया डे तक कुछ बदलाव आए हैं, जिनके बारे में फिट हिंदी को TPAG की संस्थापक सदस्य और लेक्चरर निष्ठा मदान ने बताया.

"बुरी बात यह है कि इस साल के बजट में सिकल सेल को जितनी तवज्जो दी गई, उतनी एहमियत थैलेसीमिया को नहीं दी गई है. एक थैलेसीमिया मुक्त भारत के लिए हम कब से आवाज उठा रहे हैं. हमारे कई सारे थैलीसीमिया मुक्त इवेंट में सरकारी अधिकारी आए और सपोर्ट किया लेकिन बजट के एलोकेशन में हमें थैलेसीमिया कहीं नजर नहीं आया."
निष्ठा मदान

निष्ठा मदान आगे कहती हैं, "पिछले साल के थैलेसीमिया दिवस से लेकर अब तक कुछ अच्छे बदलाव हुए हैं और कुछ बुरे. अच्छे में यह है कि आरडीएनए ने थैलेसीमिया के मरीजों के लिए एक इंश्योरेंस स्कीम लागू कर रही है, यह राइट्स ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटी (Rights Of Person With Disability) एक्ट का एक अहम क्लोज (clause) भी है, जिसको इंप्लीमेंट किया गया है".

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सरकार से थैलीसीमिया के मरीजों की 5 मांगें

देश की सरकार से थैलीसीमिया के मरीजों को क्या उम्मीदें हैं और वो क्या मांगें हैं, जो वो सरकार से लगातार कर रहे हैं, के सवाल पर अनुभा तनेजा मुखर्जी ने NAT ब्लड टेस्टिंग के अलावा 4 मांगों पर जोर देते हुए ये बताया,

1. थैलेसीमिया के मरीज और दूसरे मरीज जो रेगुलर ट्रांसफ्यूजन करवाते हैं उनके लिए "नैट" (NAT) ब्लड टेस्टिंग को अनिवार्य (mandatory) किया जाए.

2. देश में अभी 100% वॉलंटरी ब्लड डोनेशन (voluntary blood donation) मुमकिन नहीं है और इसको अभी काफी समय लगेगा. ऐसे में थैलीसीमिया मरीजों के लिये एक रजिस्ट्री की जरूरत है.

"हमारी एक इन्वेंटरी तक नहीं है, तो सरकार हमारे लिए पॉलिसी कैसे बनाने वाली है? जब उनको पता ही नहीं है कि हमारे देश में आज की तारीख में कितने थैलेसीमिया मरीज हैं? रजिस्ट्री हमारी अर्जेंट डिमांड है."
अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

3. भारत सरकार को थैलीसीमिया के मरीजों के लिए एक नेशनल लेवल कंट्रोल प्रोग्राम लाना चाहिए जैसे पोलियो के लिए लाया गया है.

"मुझे नहीं लगता कि हम 2047 की डेडलाइन की लग्जरी एक्सेस कर सकते हैं जब हमारा देश थैलेसीमिया कैपिटल के नाम से जाना जाता है."
अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

अनुभा तनेजा मुखर्जी आगे कहती हैं, "जिस तरह हम पोलियो के कैंपेन चलाते हैं उसी तरह थैलीसीमिया को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सरकार को कॉरपोरेट सेक्टर के साथ मिलकर यह अभियान चलाना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा स्क्रीनिंग करनी चाहिए, ज्यादा से ज्यादा अवेयरनेस प्रोग्राम करने चाहिए, सिलेब्रिटीज को भी इसमें मदद के लिए सामने आना चाहिए. साथ ही TPAG अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करेगा सरकार के साथ इस अभियान को सफल बनाने में".

"मेरी सरकार से यह उम्मीद है कि वह एक स्टैंडर्डाइजेशन आफ ट्रीटमेंट (standardisation of treatment) लेकर आए और उस ट्रीटमेंट का एक्सटेंडेड पास भी लेकर आए जो कि हर थैलेसीमिया मरीज के लिए पॉकेट फ्रेंडली(pocket friendly) हो."
वीरेश, टीपीएजी TPAG सदस्य

4. थैलीसीमिया की रोकथाम और प्रतिबंधित (manage) करने के लिए दुनिया के कई हिस्सों में नई टेक्नोलॉजी और थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. भारत के अस्पतालों में भी इन्हें एक पायलट प्रोग्राम की तरह शुरू करके देखना चाहिए. साथ ही मरीज के मेंटल और इमोशनल हेल्थ की ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.

5. नई पॉलिसी बनाते समय बेहतर पॉलिसी मेकिंग के लिए उस समस्या से जूझते मरीजों को उसमें शामिल करना चाहिए. अधिकतर थैलीसीमिया मरीज अपनी परेशानियों से लड़ते हुए भी देश के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं.

"हमारे केस में मरीज न केवल पॉलिसी मेकिंग का हिस्सा बनने के हालत में है बल्कि वह अपने फील्ड में काफी आगे पहुंच चुके हैं जैसे डॉक्टर, वकील, इंजीनियर. हम मरीज अपनी फील्ड में एक्सपोर्ट्स है, टैक्स पेयर हैं, तो यह हमारा फंडामेंटल राइट(fundamental right) बन जाता है कि सरकार थैलीसीमिया पॉलिसी मेकिंग प्रक्रिया में हमें शामिल करें."
अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG

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