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कड़ाके की ठंड में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्‍यादा, रहिए अलर्ट

कड़ाके की ठंड में होने वाली मौतों की प्रमुख वजह ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक होता है

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दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में तापमान छह डिग्री सेल्सियस से भी नीचे पहुंच जाने की वजह से कंपकंपी और ठिठुरन से ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं. बढ़ती ठंड के मद्देनजर न्यूरो विशेषज्ञों ने लोगों से ठंड से बचकर रहने की सलाह दी है.

नोएडा के फोर्टिस अस्पताल के न्यूरो सर्जन और ब्रेन स्ट्रोक विशेषज्ञ डॉ. राहुल गुप्ता ने बताया कि पिछले कुछ दिनों के दौरान उनके पास ब्रेन स्ट्रोक के तीन गुना ज्यादा मरीज आए हैं. ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में बढ़ोतरी के लिए ठंड जिम्मेदार है.

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ऐसे है ठंड का ब्रेन स्ट्रोक से संबंध

डॉ. राहुल गुप्ता ने बताया कि कड़ाके की ठंड में होने वाली मौतों की प्रमुख वजह ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक होता है. उनके मुताबिक, सर्दियों में शरीर का ब्लड प्रेशर बढ़ता है, जिसकी वजह से खून की धमनियों में क्लॉटिंग होने से स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए ब्रेन स्ट्रोक की एक बड़ी वजह ब्लड प्रेशर है. ब्लड प्रेशर ज्यादा होने पर दिमाग की धमनी या तो फट सकती है या उसमें रुकावट पैदा हो सकती है.

ठंड के मौसम में हमारे शरीर में खून गाढ़ा हो जाता है और उसमें लसीलापन बढ़ जाता है. खून की पतली नलिकाएं संकरी हो जाती हैं, जिससे खून का दबाव बढ़ जाता है. ज्यादा ठंड पड़ने या ठंडे मौसम के ज्यादा समय तक रहने पर हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों में स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है. इसके अलावा सर्दियों में लोग कम पानी पीते हैं, जिसकी वजह से खून गाढ़ा हो जाता है और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.   

ये हैं बचाव के तरीके

डॉक्टर सर्दियों के मौसम में ज्यादा मात्रा में पानी और तरल पदार्थ पीने की सलाह देते हैं. इसलिए भले ही प्यास न लगी हो, लेकिन दिन भर में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पानी पीते रहें. पानी के अलावा आप नारियल पानी या फलों के जूस का सेवन भी कर सकते हैं. इसके अलावा स्ट्रोक से बचने के लिए लोगों को ठंढ से बचने के अलावा शराब और धूम्रपान का सेवन कम करना चाहिए.

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बच्चों को ठंड से बचाएं

ज्यादा ठंड का मौसम शुरू होते ही, बच्चों में सिर दर्द होने का खतरा 15-20 फीसदी तक बढ़ जाता है. ऐसा विशेष रूप से उन बच्चों में ज्यादा होता है, जो माइग्रेन की समस्या से ग्रस्त होते हैं. छोटे बच्चे सिर दर्द या अन्य समस्याओं के बारे में ठीक से नहीं बता पाते हैं, बल्कि वे इसे दूसरे तरीकों से जाहिर करते हैं. जैसे, वे चिड़चिड़े और जिद्दी हो जाते हैं और उन्हें सोने और खाने में समस्या हो सकती है.

(इनपुट: IANS से)

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