जब हम भारत में पोषण के हालात के बारे में सोचते हैं, तो आम तौर पर गंभीर रूप से कुपोषित, भूखे रहने वाले, हड्डियां दिखती हुई भूखे बच्चों की छवि आंखों के सामने आती हैं. भले ही इसके पीछे कारण कुछ भी हो लेकिन हम कुपोषण-मोटापे के दूसरे पक्ष का पता लगाने और उस पर गंभीर रूप से ध्यान देने में विफल रहे हैं.
वर्तमान में, दुनिया भर 15 करोड़ मोटे बच्चे हैं. द गार्जियन की एक रिपोर्ट में वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन के हवाले से कहा गया है यह संख्या (मोटे बच्चों की) पहले ही काफी बढ़ चुकी है लेकिन साल 2030 तक इसके बढ़कर 25 करोड़ होने का अनुमान है.
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन (WOF) की रिपोर्ट ने WHO द्वारा निर्धारित साल 2025 तक मोटापा कम करने के लक्ष्य तक पहुंचने के भारत के अवसर को 0% माना है.
इस सिलसिले में फिट ने फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और मेटाबोलिक सर्जरी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और हेड डॉ अजय कृपलानी से बात की. डॉ कृपलानी से हमने पूछा कि भारत में बच्चों का मोटा होना एक बहुत बड़ी बात क्यों है.
गोलमटोल बच्चे प्यारे लगते हैं- ऐसे में खतरा क्या है?

गोलमटोल बच्चे सभी को क्यूट लगते हैं, तो ऐसे में एक्सपर्ट्स के मुताबिक खतरा क्या है?
मोटे बच्चों के साथ खतरा ये है कि वे बड़े होकर भी मोटे ही रहेंगे. ऐसा होने की आशंका लगभग 95% है. यह वास्तविक समस्या है क्योंकि इससे बहुत कम उम्र में ही दिल की बीमारियां और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.डॉ अजय कृपलानी
बचपन में मोटापा, छोटी और कम उम्र में होने वाली बीमारियों के पिटारे की तरह होता है. उदाहरण के लिए भारत में 20 साल की उम्र से पहले आपके बच्चों में दिल के दौरे और डायबिटीज के मामले चिंताजनक दर से बढ़ रहे हैं.
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की रिपोर्ट ने ग्लोबल एटलस ऑन चाइल्डहुड ओबेसिटी शीर्षक से हर देश में बचपन के मोटापे के जोखिम की दर और विस्तृत कारकों जैसे कि वर्तमान और अनुमानित बच्चों, किशोरों और टीनेजर्स के प्रतिशत को रेखांकित किया. इसे आगे जेंडर के आधार पर बांटा है.
इसमें अनुमान लगाया है कि भारत में 2030 में मोटापे से ग्रस्त 5-9 वर्ष के बच्चों का प्रतिशत 10.8% या लगभग 1.26 करोड़ होगा; जबकि 10-19 वर्ष के 6.2% या 1.47 करोड़ बच्चों को मोटापे से ग्रस्त होने का अनुमान लगाया गया है.
इसमें साल 2030 तक भारत में 5-19 आयु वर्ग के 2.74 करोड़ मोटे बच्चों की बात कही गई है.
मोटापा और मेंटल हेल्थ
मोटापा एक जटिल बीमारी है. ये बढ़ती है तो इसका पता ही नहीं लगता है. लेकिन डॉ कृपलानी बताते हैं कि शुरुआती स्तर पर दिल की बीमारियों का खतरा सबसे अधिक होगा. इसके साथ ही इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होगा.
उन्होंने कहा कि मोटापा छोटे बच्चों में मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं भी पैदा कर सकता है क्योंकि मोटापे से ग्रस्त बच्चों में बुलिंग और सामाजिक दबाव के कारण डिप्रेशन की आशंका अधिक होती है.
बच्चों में मोटापे को अभी भी बहुत हल्के में लिया जाता है, लोगों को लगता है कि यह प्यारा है और यह बड़े होने पर अपने आप खत्म हो जाएगा. मैंने एक 14 साल के बच्चे का ऑपरेशन किया है, जो 160 किलोग्राम का था और डायबिटिक भी हो गया था. मैंने कुछ और मोटे टीनेजर्स का भी ऑपरेशन किया है जिन्हें मदद की जरूरत थी.डॉ अजय कृपलानी
सरकार और माता-पिता को क्या करना चाहिए?

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, "मोटापा आज के समय में सबसे अधिक देखा जाता है - फिर भी यह सबसे उपेक्षित - सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है."
WOF की रिपोर्ट में बचपन के मोटापे के समाधान और इसे कम करने के लिए अगर कोई मौजूदा समय में पॉलिसीज हैं तो उस पर भी स्टडी की गई है.
हर देश का मूल्यांकन तीन प्रकार की पॉलिसी पर किया गया:
- बच्चों के लिए फूड प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग पर किसी पॉलिसी की मौजूदगी, 2017
- शारीरिक निष्क्रियता को कम करने के लिए मौजूद पॉलिसी, 2017
- NCDs से संबंधित अनहेल्दी डाइट कम करने की मौजूदा पॉलिसी, 2017
इसके लिए, भारत ने 2/3 का स्कोर बनाया क्योंकि हमारे पास शारीरिक निष्क्रियता को कम करने और अनहेल्दी डाइट को कम करने की पॉलिसी हैं. हालांकि, एक महत्वपूर्ण पॉलिसी गायब है- जो बच्चों को फूड प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग को मॉनिटर व कंट्रोल करती है.
ये पॉलिसी मुद्दे के सप्लाई साइड पर ध्यान केंद्रित करती है और उस बिजनेस को टारगेट करती है. बच्चों को आसानी से लुभाने वाले जंक फूड के लगातार एडवर्टाइजिंग पर अंकुश लगाती है.
डॉ कृपलानी कहते हैं, "अनहेल्दी फूड बेशक टेस्टी होता है और हमें आसानी से लुभा लिया जाता है. लेकिन रेगुलर इन्हें खाने को लेकर अधिक ध्यान देने की जरूरत है."
यह देखते हुए कि मोटापा ज्यादातर एक शहरी समस्या है, उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों, खासकर भारत के महानगरों में, जहां अधिकांश माता-पिता दोनों काम कर रहे हैं. इसका मतलब यह है कि ऐसे पेरेंट्स के लिए अपने बच्चों के फूड को रेगुलेट करना अक्सर (संभवतः) मुश्किल है.
स्कूलों को अपनी कैंटीन को रेगुलेट करने की आवश्यकता है क्योंकि यह वह जगह है, जहां बहुत सारे बच्चे अनहेल्दी, ऑयली ब्रेकफास्ट और फूड प्रोडक्ट लेते हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कार्बोहाड्रेट्स एडिक्टव होते हैं, इसलिए स्कूलों को ये सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे मुख्य रूप से हेल्दी ऑप्शन दे रहे हैं.डॉ अजय कृपलानी
हालांकि, स्कूलों और माता-पिता से परे, नीति-निर्माताओं को बच्चों में मोटापे को गंभीरता से दूर करने के लिए दुनिया-भर में कदम बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि बच्चों का गोलमटोल होना मनमोहक हो सकता है, लेकिन ये कोई हंसने वाली बात नहीं है.
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