ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘ये बस यूं ही है’: जब महिलाओं के दर्द पर डॉक्टर भी नहीं देते ध्यान

दर्द का इलाज करने में भी यह लिंग-भेद कहां से आ गया?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

क्या आप हाल ही में किसी भी तरह के शारीरिक दर्द से जूझे हैं? भले ही यह दर्द किसी अंग में, किसी जोड़ में, या मांसपेशी में हुआ हो. अगर आप महिला हैं, तो शायद पहली बार में तो इसका इलाज भी ना किया गया हो. अगर आपको डॉक्टर द्वारा बताया गया है कि यह आपका दिमागी फितूर है और आपको मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक को दिखाने की जरूरत है, तो ऐसा सुनने वाली आप अकेली नहीं हैं.

सदियों से महिलाओं की बीमारी को उनके स्वभावगत व्यवहार, जो उन्हें “हिस्टीरियाई” बना देता है, से उपजी कह कर खारिज कर दिया जाता है. यह धारणा बहुत लंबे समय तक औपचारिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा कायम रखी गई.

लेकिन यह सब पुराने जमाने की बात थी, है ना? गलत. हम अब भी सुधरे नहीं हैं क्योंकि आज भी महिलाएं शरीर में दर्द की शिकायत करती हैं, तो उन्हें खारिज कर दिया जाता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पीरियड्स की दर्दनाक ऐंठन? यह बस ऐसे ही है, इसे भूल जाओ

जब डेविड रॉबर्ट्स ने न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय पेज पर गंभीर दर्द की आपबीती बताई, तो इसे कई अन्य लोगों के लिए आशा की एक किरण के रूप में व्यापक रूप से साझा किया गया, जो दर्द से जूझ रहे हैं. हालांकि, इसके उलट दूसरी तरफ वे महिलाएं हैं, जिन्होंने उस अंतर को इंगित किया, जिस तरह उनके दर्द को अनदेखा कर दिया जाता है.

एक रिपोर्ट बताती है कि जब तेज पेट दर्द की बात आती है, तो अमेरिकी अस्पताल में पुरुषों के लिए औसतन 49 मिनट की वेटिंग की तुलना में महिलाओं को 65 मिनट का इंतजार करना पड़ता है

इस असमानता का एक और उदाहरण पीरियड क्रैंप (मासिक-धर्म के दौरान ऐंठन) है. पीरियड्स वाली सभी महिलाओं में से आधी को ही ऐंठन होती है, जबकि सात में से एक महिला को तेज दर्द और कमजोरी होती है. हालांकि, महिला-समुदाय से बाहर के लोगों को इसकी गंभीरता को स्वीकार करने में बहुत लंबा अरसा लग गया. 2016 में अंततः एक अध्ययन में पुष्टि हुई कि पीरियड क्रैंप भी हार्ट अटैक जैसा दर्द देने वाला हो सकता है.

विडंबना यह है कि यह निष्कर्ष एक पुरुष द्वारा पेश किया गया. शायद हम अभी भी पीरियड क्रैंप के बारे में बात नहीं कर रहे होते, अगर यही निष्कर्ष एक महिला की तरफ से आया होता.

जी हां, यह मुद्दा पहले ही उठाया जा चुका है. लाखों महिलाओं द्वारा. दुनिया भर में. बारंबार.

“सिर्फ तुम्हें लगता है”

59 वर्षीय रिटायर्ड प्रोफेशनल हरकिरन कौर, अपने फाइब्रोमाएल्जिया (मसल्स और टिश्यू पर असर डालने वाली एक बीमारी, जिसमें तेज दर्द होता है) की अपनी आपबीती को याद करती हैं.

करीब 15-18 साल तक, मैं एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के चक्कर काटती रही और मैं एक तरह से गिनी पिग बन गई थी. चूंकि फाइब्रोमाल्जिया उनकी समझ से परे था, इसलिए वह दूसरी चीजों पर दोष मढ़ते रहे. मेरी निजी समस्याओं का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि मेरा दर्द लोगों का ध्यान खींचने का एक तरीका है. उन्होंने कहा कि मुझे मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए क्योंकि मैं इस दर्द की कल्पना कर रही हूं. ऐसे भी उदाहरण थे, जब मुझे आलसी कहा गया.
हरकिरन कौर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वह जोड़ती हैं, उम्र एक और कारक है, जिसे डॉक्टर दर्द का कारण बताते हैं.

अगर आप एक युवा लड़की हैं, तो डॉक्टर दर्द को पीरियड से जोड़ देंगे. अगर आप उम्रदराज महिला हैं, तो वे हार्मोनल समस्याओं या यहां तक कि फिजिकल ट्रॉमा और आपके पार्टनर द्वारा एब्यूज की संभावना पर विचार करेंगे.
हरकिरन कौर

हालांकि, जब पुरुषों में दर्द होने की बात आती है, तो ऐसा कोई तयशुदा कारण पेश नहीं किया जाता.

दर्द का इलाज करने में यह लिंग-भेद कहां से गया?

अध्ययनों से पता चलता है कि महिला का गलत इलाज होने की आशंका, पुरुषों की तुलना में सात गुना अधिक है और हार्ट अटैक के बीच में ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे जाती है. गलत डाइग्नोसिस भी बहुत ज्यादा खतरनाक है क्योंकि अक्सर इसके कारण लंबे समय तक महिलाओं को चुपचाप सहन करना होता है, बिना जाने कि उनके शरीर को क्या प्रभावित कर रहा है. कई मामलों में, यह ऐसी शारीरिक समस्या होती है, जिसका इलाज मानसिक बीमारी के तौर में किया जाता है. वास्तव में, लगातार दर्द से पीड़ित महिला के मामले में पुरुषों की तुलना में गलत तरीके से उसका मानसिक इलाज किए जाने की संभावना अधिक होती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस भेदभाव का एक कारण यह है कि जब स्वास्थ्य समस्या की बात आती है, तो स्त्री शरीर के अध्ययन की कमी सामने आती है. हार्वर्ड के एक अध्ययन में इस संदर्भ में निम्नलिखित तथ्य पेशकश किए गए थे:

लगातार दर्द से प्रभावित 70 फीसद मरीज महिलाएं हैं और फिर भी, दर्द के 80 फीसद अध्ययन पुरुषों या मेल चूहों पर किए जाते हैं. दर्द के अनुभव में लैंगिक भेदों का पता लगाने के लिए किए गए कुछ अध्ययनों में से एक में पाया गया कि यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा बार होता है और ज्यादा तीव्रता से होता है. हालांकि इस विसंगति के सटीक कारणों को अभी तक निश्चित रूप से नहीं पहचाना जा सका है, फिर भी अपुष्ट रूप से इसमें शारीरिक संरचना और हार्मोन को भूमिका होती है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपनी कहानी साझा करें

महिलाओं में लगातार दर्द अक्सर भावनात्मक या मानसिक समस्याओं के परिणामस्वरूप देखा जाता है. जबकि स्त्री शरीर पर शोध की कमी बनी हुई है. यह निष्कर्ष निकाला गया कि माइग्रेन, फाइब्रोमाल्जिया, ऑटोइम्यून समस्या, डिप्रेशन, अल्जाइमर और रूमेटोइड ऑर्थ्राइटिस जैसी समस्याएं, पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करती हैं. फिर भी, इलाज में भेदभाव जारी है.

एक रिपोर्ट बताती है कि संभावना है कि मेडिकल टेस्ट के रूप में अन्यथा सबूत होने के बाद भी डॉक्टर ऐसा सोचें कि महिलाओं के दर्द के पीछे कारण शारीरिक से ज्यादा भावनात्मक है. जबकि लिंग-भेद हकीकत है और यह महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से प्रभाव डाल रहा है, मेडिकल साइंस में भेदभाव, स्त्री जाति के प्रति पूर्वाग्रह और स्त्री जाति के प्रति नफरत के खिलाफ लड़ाई शुरू करने की जरूरत है.

जबकि हम लैंगिक रूढ़िवाद से लड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, हमें बताएं कि क्या आपके पास भी साझा करने को अपनी कहानी है. क्या आप भी दर्द से अपनी व्यक्तिगत लड़ाई छेड़ना चाहती हैं? अपने अनुभव के बारे में हमें fithindi@thequint.com पर लिखें.

(FIT अब वाट्स एप पर भी उपलब्ध है. अपने पसंदीदा विषयों पर चुनिंदा स्टोरी पढ़ने के लिए हमारी वाट्स एप सर्विस सब्सक्राइब कीजिए. यहां क्लिक कीजिए और सेंड बटन दबा दीजिए.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×