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‘मैं अपने बच्चों से चुनाव पर चर्चा करती हूं, आपको भी करनी चाहिए’

अपने बच्चे को चुनाव प्रक्रिया के बारे में समझाना क्यों जरूरी है?

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‘आप दोनों किसे वोट देंगे? ', मेरी बड़ी बेटी ने अपने पिता की तरफ घूरते हुए मुझसे पूछा. ‘क्या आप दोनों एक ही पार्टी को वोट देंगे?’, उसने इस बात पर जोर दिया.

मैं इसे टाल सकती था या कम से कम ऐसी उम्मीद कर सकती थी. लेकिन हठ और बच्चों के बीच एक अनचाहा संबंध होता है. कुछ सवालों को शायद टाला नहीं जा सकता है और वैसे भी इन सवालों से निपटने का समय आ गया था. यही सोचकर मेरे पति ने आगे आते हुए कहा, ‘नहीं, जरूरी नहीं है कि एक परिवार में सभी लोग एक ही पार्टी का समर्थन करें. हर व्यक्ति की अपनी पसंद होती है.’

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बच्ची ने एक से दूसरे को घूरते हुए खुद को इस बात से अधिक आश्वस्त किया कि उनकी बात का कोई दूसरा मतलब नहीं था. माता-पिता के बीच मतभेद बच्चों के लिए ऐसा कुछ नहीं है और 10 साल की बच्ची के लिए यह बहुत मायने नहीं रखता कि इलेक्शन रैली को लेकर उनके मम्मी-पापा आपस में क्या बात कर रहे हैं.

वहां कोई नहीं था. चौथी पीढ़ी के पत्रकार के तौर पर काम करते हुए मुझे किसी भी समय ऐसा नहीं लगा जब राजनीति डिनर मेन्यू का हिस्सा नहीं थी. फिर भी, आज कुछ अलग है.

जो हवाएं चल रही हैं वे हमारे बालों को प्यार से उलझाती नहीं रही हैं, इसके बजाए एक पस्त सी पगडंडी है, जिसे आप तभी देख सकते हैं, अगर आप चाहते हैं. इसलिए, एक बच्चे को चुनाव प्रक्रिया के बारे में समझाना बिल्कुल विषय की ऊपरी तौर पर जानकारी देने जैसा है.

आज एक अच्छा नागरिक होने के कई पहलू हैं. जैसे आधी लड़ाई केवल तभी जीती जाती है, जब आप स्वीकार करते हैं कि सब कुछ वैसा नहीं है, जैसा वादा किया गया था. यह वैसा ही है जैसे कभी-कभी गिलास आधा खाली होता है.
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वोट का बोझ

इस बार 1.5 करोड़ से अधिक नए मतदाता हैं, उम्मीद है कि वे वोट डालने के अपने अधिकार का प्रयोग करेंगे. वे नए हैं और हमारी तरह सिर्फ दोष देखने वाले नहीं हैं. भोलेपन में वे अपने चुने हुए सांसद से अपेक्षा करेंगे कि वे हर बार उनसे मिलने आए और बारिश में सुरंग बन जाने वाली सड़कों की मरम्मत कराए और नए रोजगार दिलाए. शायद हम भी ऐसे ही थे.

सही या गलत, हमारे बच्चों को ऐसा क्या क्लिक करे, जो उन्हें ये बताए कि कैसे अपने वोट का उपयोग करना है. यह थोड़ा अंधविश्वास जैसा है, दुर्भाग्य से कई बार बिल्कुल ऐसा ही होता है.

लेकिन धारणा उस विश्वास को चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता के बिना कुछ भी नहीं है. बच्चे संवेदनशील होते हैं और उनका धारा के साथ बह जाना आसान होता है, कभी-कभी हमें उनके लिए इसे बताने की जरूरत होती है. मेरी बेटी अब जानती है कि वह एकमात्र ऐसी व्यक्ति है, जो अपना कम्फर्ट जोन तय कर सकती है.

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आपका बच्चा आपके राजनीतिक झुकाव को जानता है

अपने बच्चे को चुनाव प्रक्रिया के बारे में समझाना क्यों जरूरी है?
अगर हम बच्चों पर अपना पक्षपात वाला नजरिया थोपेंगे तो वे कैसे बड़े होंगे?
(फोटो: फिट)

बच्चों के साथ घरों में सभी दीवारों के कान होते हैं, अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को आपके राजनीतिक झुकाव का पता नहीं है, तो ऐसा नहीं है. विशेष रूप से आज के गहन समय में जहां माता-पिता और नागरिक दोनों के रूप में, हम बहुत भावनात्मक समय में रह रहे हैं.

हमारी डाइनिंग टेबल की बातचीत कभी भी एक जैसी नहीं रही है क्योंकि राजनीतिक बातचीत कर्कश रूप से मुखर हो कर बीच से ही अलग हो गई है. इससे यह केवल पक्ष और विपक्ष वाला मामला हो गया है. या तो आप राष्ट्र के साथ हैं या इसके खिलाफ हैं. पुरानी दोस्ती सिर्फ इसलिए टूट गई है क्योंकि हर कोई एक जैसा नहीं सोचता. उन्होंने पहले कभी ऐसा नहीं किया, लेकिन यह अब इस तरह से हो गया है. हल्के-फुल्के अंदाज में बातचीत की जगह आक्रामक तर्कों ने ले ली है.

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कुछ लोग कहेंगे कि हम अपने बच्चों को कठोर वास्तविकता से बचा रहे हैं, लेकिन अगर हम उन पर अपना पक्षपात वाला नजरिया थोपेंगे तो वे कैसे बड़े होंगे?

बातचीत उनके आसपास के माहौल को लेकर होनी चाहिए, जो उन्हें सीधे रूप से प्रभावित करती है. उन्हें यह जानने का अधिकार है.

पहली बार वोट डालने वालों के लिए फैसला करना आसान नहीं होगा. यह हमारे जैसे अनुभवी लोगों के लिए भी मुश्किल है. एक तरफ, ऐसी पार्टी है जो राष्ट्रीयता के प्रमाण के रूप में अंधराष्ट्रवाद भर रही है, जबकि दूसरी तरफ एक ऐसी पार्टी है जहां कई चीजें बदलती हैं, फिर भी वे वैसी ही रहती हैं.

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क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हमारे स्कूली बच्चे अपनी किताबों में लगातार बदलावों से कितने भ्रमित हैं? एकमात्र सबक जो हम उन्हें सिखा सकते हैं, वह यह है कि जैसा काम करोगो वैसा ही फल मिलेगा, भले ही इसमें 5 साल लगें. इसलिए अगर आपका बच्चा एक आदर्श दुनिया का सपना देखता है, तो उस सपने को न तोड़ें, इसकी बजाए उसे इसकी मांग करने दें.

उन्हें पूछने दें कि क्यों हमारी हवा स्वच्छ नहीं है. उन्हें सवाल करने दें कि देश की राजधानी में एक लड़की पड़ोसी के घर तक भी अकेले क्यों नहीं निकल सकती है. उन्हें इस बात पर आश्चर्य करने दें कि क्यों उनकी मां की मुस्लिम दोस्त जिसका जन्म इस देश में हुआ और यहीं पली बढ़ी, अब उन्हें एयरपोर्ट के इमिग्रेशन पर एक बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस कराया जाता है. उन्हें यह सोचने दें कि क्यों ऐसी छवि है कि भारतीय जिंदगियों का कोई मोल नहीं है. उन्हें दिवाली और क्रिसमस पर भी उतनी ही मिठाइयां खाने दें और ईद पर समान रूप से कबाब भी.

और अंत में, उन्हें बताएं कि सब कुछ चाचा नेहरू के बारे में नहीं है.

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(ज्योत्सना मोहन इंडिया और पाकिस्तान के कई पब्लिकेशन में लिखती हैं. ज्योत्सना सीनियर न्यूज एंकर और एनडीटीवी में सीनियर न्यूज एडिटर रह चुकी हैं.वह @editorji.com के लिए मॉर्निंग न्यूज बैंड की हेड भी हैं)

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