स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने आईसीयू (ICU) में कब और किसे भर्ती किया जाना चाहिए, इस पर अस्पतालों और इंटेंसिव केयर एक्सपर्ट्स के लिए नए गाइडलाइन्स जारी किए हैं.
गुरुग्राम, मेदांता में इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलॉजी के अध्यक्ष डॉ. यतिन मेहता ने फिट को बताया, "गाइडलाइन प्राइवेट और सरकारी दोनों क्षेत्रों के इंटेंसिव एक्सपर्ट्स के एक ग्रुप ने बनाया है."
क्या कहती हैं नई गाइडलाइंस? इसके आपके लिये क्या मायने हैं? यहां जानें एक्सपर्ट्स इस पर क्या कह रहे हैं.
नई गाइडलाइंस में क्या है?
गाइडलाइंस अनिवार्य रूप से उन पैरामीटर्स पर डायरेक्शंस देता है, जो एक मरीज को आईसीयू (ICU) में भर्ती करने के लिए जरुरी हैं. यह ये भी बताता है कि वह कॉल कौन ले सकता है. कुछ प्रमुख बिंदुओं में शामिल हैं:
गंभीर रूप से बीमार मरीज को मरीज की सहमति या परिवार की सहमति (अगर मरीज सहमति देने की स्थिति में नहीं है) के बिना आईसीयू में भर्ती नहीं किया जा सकता.
जिन लोगों को सीमित उपचार योजना (limited treatment plan) वाली बीमारी है, या जिनके लिविंग विल (living will) में आईसीयू में न भर्ती होने के इंस्ट्रक्शंस हैं, उन्हें आईसीयू में भर्ती नहीं किया जाना चाहिए.
किसी मरीज को तब छुट्टी दे दी जानी चाहिए जब उसकी गंभीर बीमारी में उचित स्थिरता आ जाए जिसके लिए आईसीयू देखभाल की आवश्यकता हो, या जब मरीज या उसका परिवार आईसीयू से छुट्टी के लिए सहमत हो.
एक एक्सपर्ट को इन कॉलों को लेने के लिए आईसीयू का प्रभारी होना चाहिए. एक्सपर्ट यानी इंटेंसिविस्ट (intensivist) के पास एमबीबीएस डिग्री वाला यानी उसे डॉक्टर होना चाहिए और साथ उसके पास आईसीयू में काम करने का कम से कम तीन साल का अनुभव भी होना चाहिए.
ये क्यों जरुरी है?
फिट ने जिन विशेषज्ञों से बात की, उनके अनुसार, नए गाइडलाइन्स मूल रूप से मरीजों और उनके परिवारों को यह जानने के लिए सशक्त बनाते हैं कि उनके रिश्तेदारों को आईसीयू में भर्ती क्यों किया जा रहा है या क्यों नहीं किया जा रहा है.
दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल में क्रिटिकल केयर के प्रमुख और इंडियन कॉलेज ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सचिव डॉ. सुमित रे कहते हैं, "अब यह स्पष्ट हो सकता है कि उन्हें इसकी आवश्यकता क्यों है और यह अस्पताल द्वारा सिर्फ पैसे बनाने का प्रयास नहीं है".
डॉ. यतिन मेहता ने कहा, "इससे एक नॉन-इंटेंसिविस्ट के लिए यह कॉल करना आसान हो जाता है कि किसे आईसीयू में रखा जाना चाहिए और किसे नहीं और आईसीयू के बाहर भी इलाज किया जा सकता है, खासकर पेरिफेरल मेडिकल सुविधाओं में जहां एक्सपर्ट उपलब्ध नहीं हैं".
नए गाइडलाइन्स खास कर 'लिविंग विल' चुनने वालों के लिए गाइडलाइन्स को एकीकृत (integrate) करते हैं.
लेकिन क्या ये पहले से ही मालूम नहीं हैं?
जैसा कि कहा गया है, गाइडलाइन्स नए नहीं हैं.
डॉ. रे का कहना है कि इण्डियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर में गाइडलाइन्स का एक समान (similar) ढांचा है, जिसका वे वर्षों से पालन कर रहे हैं.
"लेकिन जब यह आधिकारिक तौर पर हेल्थ मिनिस्ट्री से आता है, तो थोड़ा अधिक बाइंडिंग हो जाता है."डॉ. सुमित रे
ये गाइडलाइन्स रूल्स (rules) नहीं हैं. डॉ. रे कहते हैं, "यह एक गलत धारणा है कि गाइडलाइन्स का हर हाल में पालन करना जरुरी है."
वह आगे कहते हैं, "गाइडलाइन्स केवल मार्गदर्शन के लिए हैं, लेकिन मरीज को देखने के लिए मौजूद डॉक्टर के क्लिनिकल जजमेंट को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए और यह सभी गाइडलाइन्स के लिए है".
यहीं पर डॉक्टर का अनुभव और क्लिनिकल नॉलेज आता है. "कभी-कभी, हम देख सकते हैं कि एक मरीज प्रवेश के लिए हर मानदंड में फिट नहीं हो सकता है लेकिन हमारा क्लिनिकल जजमेंट हमें बताता है कि रोगी को इसकी आवश्यकता हो सकती है".
ये फैसला लेने के लिए कौन क्वालिफाइड है?
डॉ. सुमित रे के अनुसार, जो चीज संभावित रूप से प्रॉब्लम वाली हो सकती है वह ये कि एक इंटेंसिविस्ट (intensivist) के रूप में कौन योग्य है.
"अंतिम पॉइंट कहता है कि अगर आपके पास कोई स्पेशलाइज्ड इंटेंसिविस्ट नहीं है, तो एमबीबीएस और आईसीयू में तीन साल का अनुभव वाला व्यक्ति भी योग्य होगा".
डॉ. रे के मुताबिक, "हां, अगर कोई और उपलब्ध न हो तो वे आईसीयू में मरीजों की देखभाल कर सकते हैं, लेकिन एक इंटेंसिविस्ट को इस तरह डिफाइन (define) नहीं किया जा सकता है".
हालांकि, डॉ. मेहता के अनुसार:
"भारत जैसे देश में जहां इतनी बड़ी आबादी है और न केवल इंटेंसिविस्ट, बल्कि सामान्य तौर पर डॉक्टरों की भी कमी है, मुझे लगता है कि हमें इंटेंसिविस्ट कौन है, इसके बारे में कुछ फ्लेक्सिबिलिटी की जरूरत है."
कुछ भी हो, वह कहते हैं, "यह सिफारिश मेट्रोपोलिटन शहरों में टेरिटियर केयर (tertiary care) अस्पतालों के लिए आदर्श नहीं हो सकती है, लेकिन यह छोटे, टियर-2 और टियर-3 अस्पतालों में हो जाती है, जहां योग्य कर्मचारियों की कमी के कारण, पूरी तरह से अप्रशिक्षित और अयोग्य लोग को चार्ज दे दिया जाता है".
उनका कहना है कि इस पॉइंट की वजह से आईसीयू का प्रभारी किसे बनाया जा सकता है, इसके लिए न्यूनतम सीमा (minimum bar) बनाने में मदद करेगी.
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