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कुकिंग में कैसे करें आयुर्वेद के सिद्धांतों का इस्तेमाल

आयुर्वेद में ताजा, स्थानीय और मौसमी चीजें खाने की सलाह दी गई है. 

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5000 साल पुराने प्राचीन ग्रंथ आयुर्वेद का व्यावहारिक ज्ञान आज भी लागू होता है और यह फायदमेंद भी है. आयुर्वेद शब्द का अर्थ है- ‘ जीवन का ज्ञान’. ये स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं को लेकर है.

हम में से बहुत से लोग मानते हैं कि आज के दौर में आयुर्वेदिक जीवन शैली का पालन करना मुश्किल है. कुछ साल पहले तक जीवन का ढर्रा रही आयुर्वेदिक कुकिंग की जगह अब क्विक, इंस्टेंट और फास्ट फूड ने ले ली है.

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लोगों, विचारों और संस्कृतियों की अदला-बदली के साथ, आज का खाना पुराने और नए जायकों का एक संयोजन है. जब फूड का फ्यूजन मुख्य रूप से जायके के लिए होता है और अगर इसमें हेल्थ फैक्टर की उपेक्षा की जाती है, तो ये बीमारी की वजह बन जाता है.

रोजाना ताजा आटा पीसना छोड़कर पैकेट बंद आटा खरीदने से लेकर रेडी टू ईट फूड तक हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं. क्या हमें अपनी जड़ों की ओर लौट जाना चाहिए?

आयुर्वेदिक भोजन क्यों?

आयुर्वेद हमें ताजा, स्थानीय और मौसमी चीजें खाना सिखाता है. एक सस्टेनेबल जीवन शैली के लिए ठीक यही बात पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा भी कही जाती है.

जब हम सीजन के फूड खाते हैं, तो हम कीटनाशक युक्त फूड से बचे रहते हैं. पोषक तत्वों से भरपूर खाना शरीर की प्रणालियों को मेंटेन और रिस्टोर कर हमें सेहतमंद रखता है. ऐसा खाना औषधीय है.

उषा लाड और डॉ वसंत लाड अपनी किताब ‘आयुर्वेदिक कुकिंग फॉर सेल्फ हीलिंग ’ में बताते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार किसी भी व्यक्ति का पूरा स्वास्थ्य जीवन के हर पहलू पर निर्भर करता है और उसके अच्छा महसूस करने का एहसास उसकी सेहत की आंतरिक स्थिति का प्रतिबिंब है.

क्या आयुर्वेद के अनुसार खाना मुश्किल है?

व्यक्तिगत और अन्य कारकों के आधार पर अपनी जरूरतों के अनुरूप आयुर्वेदिक कुकिंग सरल, व्यावहारिक और पूरी तरह लागू किए जाने लायक है.

आयुर्वेद खाने को तीन वर्गों- सात्विक, राजसिक और तामसिक में बांटता है और छह ऋतुओं व स्वाद के अनुसार खाने की सिफारिश करता है.

सात्विक भोजन

सात्विक भोजन संतुलित करने वाले फूड्स हैं. इनमें ताजे ऑर्गेनिक फल और सब्जियां, अधिकांश साबुत अनाज, फलियां और नट्स, दूध और घी, बींस और मसूर, प्लांट-बेस्ड ऑयल, शहद, गुड़ और मसाले जैसे सरसों, जीरा, दालचीनी, धनिया, अदरक और हल्दी शामिल हैं.

राजसिक भोजन

ऐसे फूड जो ताजे होते हैं, लेकिन पचने में भारी होते हैं, उन्हें राजसिक कहते हैं. जो लोग बहुत ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी करते हैं, वे ऐसे फूड को खा सकते हैं. ये फूड प्रोत्साहित करते हैं और अगर इन्हें ज्यादा खाया जाता है, तो शारीरिक और मानसिक तनाव पैदा कर सकते हैं. इनमें मसाले वाली जड़ी-बूटियां, कॉफी, चाय और नमक शामिल है.

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तामसिक भोजन

तामसिक भोजन अशुद्ध, भारी और मृत होते हैं. तामसिक फूड खाने से आप सुस्त हो जाते हैं. इनमें प्याज और लहसुन शामिल है.

अपने खाने की योजना बनाएं

आयुर्वेद में माना गया है कि सार्वभौमिक जीवन शक्ति तीन अलग-अलग ऊर्जाओं के रूप में प्रकट होती है, जिन्हें, वात, पित्त और कफ दोष के रूप में जाना जाता है. सभी व्यक्ति इन दोषों का एक अनूठा संयोजन हैं, जिसका निर्धारण गर्भधारण के समय होता है.

किसी भी व्यक्ति के लिए डाइट उसके दोष पर निर्भर करती है. ज्यादातर लोगों में एक या दो दोष की बहुतायत होती है जो उम्र, डाइट, पर्यावरण, जलवायु और मौसम के अनुसार घटते-बढ़ते हैं. अच्छे स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवन के लिए इन दोषों में संतुलन कायम रखना जरूरी है.

आयुर्वेद छह प्रमुख स्वादों- मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वा और कसैला की चर्चा करता है, जिन्हें रोजाना लिया जाना चाहिए. हर स्वाद में खास स्वास्थ्य देने वाले प्रभाव होते हैं और यह संपूर्ण पोषण और तृप्ति के लिए जरूरी है.

हालांकि, सही डाइट प्लान के लिए एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए.

लेकिन मोटे तौर पर जान लीजिए कि मीठा, खट्टा व नमकीन फूड वात को शांत करता है. मीठा, तीखा व कड़वा फूड पित्त को शांत करता है और तीखा, कड़वा, कसैला, खट्टा फूड कफ को शांत करता है.

आयुर्वेदिक कुकिंग में बड़े पैमाने पर स्वाद और हीलिंग के लिए जड़ी बूटियों और मसालों का इस्तेमाल किया जाता है.

जीरा, हल्दी, हींग, मेथी, अदरक (ताजा), धनिया, सरसों का बीज रोजाना इस्तेमाल किया जाना चाहिए और यह हर दोष को ठीक करने के लिए अच्छा है.
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अपने खाने में मसाले शामिल करें

आयुर्वेद में ताजा, स्थानीय और मौसमी चीजें खाने की सलाह दी गई है.

वात के लिए मसाले में ताजा अदरक, जीरा, काली मिर्च, सौंफ और केसर शामिल हैं. दालचीनी, पुदीना, धनिया, हल्दी, सौंफ और इलायची पित्त के लिए अच्छे हैं. लौंग, काली मिर्च, सरसों के बीज, हल्दी, भिगोए हुए औरअंकुरित मेथी के बीज कफ के लिए फायदेमंद हैं.

जीरा, लौंग और दालचीनी के साथ घी से छौंक लगाई खिचड़ी या पुलाव और कोई भी मौसमी सब्जी, दाल, खासकर मूंग दाल, चटनी, छाछ एक आयुर्वेदिक मेन्यू है.

जी हां, हमारा रोज का फूड आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित है!

हालांकि, आज हम इनकी जगह प्रोसेस्ड फूड लेते हैं क्योंकि हमें यह फूड चमकीला लगता है और इन्हें खाने की ख्वाहिश जगाता है. विशेषज्ञों के अनुसार पोषक तत्वों की कमी क्रेविंग (खाने की ख्वाहिश) और ओवरईटिंग का मुख्य कारण है.

खाना और आत्मसात होना दो महत्वपूर्ण कार्य हैं, जो खाने के समय और तरीके पर निर्भर करते हैं. शरीर की जरूरतों पर विचार किए बिना जल्दी या देर से खाने का नतीजा असंतुलन होता है, जो लाइफस्टाइल बीमारियों का मूल कारण है.

अपनी मां के पकाए खाने के जायके को याद करें. आप उसे क्यों पसंद करते हैं और आपके जेहन में इतना ताजा कैसे है? यह इसलिए है क्योंकि आप खाने के अनुभव में पूरी तरह डूब गए थे.

भोजन के लिए आशीर्वाद, सम्मान और खुशी महसूस करिए. सराहना करते हुए आराम से खाएं और खाते वक्त ध्यान कहीं और न लगाएं. अपनी जड़ों की ओर वापस लौटने और आयुर्वेद के तरीके को अपनाने का वक्त आ गया है.

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(नूपुर रूपा एक फ्रीलांस राइटर और मदर्स के लिए लाइफ कोच हैं. वे पर्यावरण, फूड, इतिहास, पेरेंटिंग और ट्रैवेल पर लेख लिखती हैं.)

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