हाल ही में मेडिकल जर्नल एल्सेवियर (Elsevier) में एक स्टडी आई, जिसमें भारत में एक हेल्थ वर्कर की केस स्टडी का हवाला दिया गया है, जिसे एक बार इन्फेक्शन और पूरी तरह वैक्सीनेशन के बाद दोबारा COVID-19 हो गया था.
भारत में वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन हालांकि एक अकेला मामला है, फिर भी इस मायने में काफी महत्वपूर्ण है कि यह कोविड री-इन्फेक्शन, ब्रेकथ्रू (breakthroughs) यानी पूरे वैक्सीनेशन के बाद दोबारा इन्फेक्शन के बारे में कई सवाल उठाता है और जिसे हम उस कॉम्बिनेशन के तौर पर जानते हैं, जिससे सबसे मजबूत इम्यूनिटी हासिल होती है.
यह केस स्टडी हमें कोविड री-इन्फेक्शन के बारे में क्या बताती है? क्या इसका मतलब यह है कि कोविड वायरस और ज्यादा घातक (virulent) होता जा रहा है?
फिट ने इस मामले को ठीक से समझने के लिए केस स्टडी करने वाले डॉ. विनोद स्कारिया और जाने-माने वायरोलॉजिस्ट्स डॉ. गगनदीप कांग और डॉ. शाहिद जमील से बात की.
‘हाइब्रिड इम्यूनिटी’
पहले के एक लेख के लिए फिट से बातचीत में विशेषज्ञों ने बताया था कि ‘हाइब्रिड इम्यूनिटी’ (hybrid immunity’) किस तरह सबसे मजबूत इम्यूनिटी रिस्पॉन्स बनाती है.
मुंबई में इंटरनल मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. स्वप्नील पारिख का कहना है, “पिछले इन्फेक्शन से हासिल इम्यूनिटी और वैक्सीनेशन से हासिल इम्यूनिटी का मेल सबसे ताकतवर इम्यून रिस्पॉन्स बनाता है. एंटीबॉडी टाइटर (Antibodies titers), स्मृति प्रतिक्रियाएं (memory responses) और सेलुलर प्रतिक्रियाएं (cellular responses) ऐसे ‘हाइब्रिड इम्यूनिटी’ वाले लोगों में काफी ज्यादा होती हैं.”
लेकिन निश्चित रूप से हमेशा कुछ अपवाद भी होते हैं. और यहीं इस हेल्थकेयर वर्कर का मामला खास है.
इस केस स्टडी का क्या मतलब है?
अध्ययन के मुख्य बिंदु
मरीज भारत में एक 28 वर्षीय हेल्थकेयर वर्कर है.
सबसे पहले वह स्टैंडर्ड मध्यम स्तर का कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया जिसमें बुखार, सांस फूलना, गले में खराश के आम लक्षण थे, जो लगभग 7 दिन तक चले.
RT-PCR में निगेटिव टेस्टिंग के दो हफ्ते बाद एंटीबॉडी टाइटर्स से लेकर स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ मध्यम स्तर के एंटीबॉडी का पता चला.
बाद में उसने 4 हफ्ते के अंतराल के साथ कोविड वैक्सीन कोविशील्ड (Covishield) का पूरा कोर्स (दो डोज) लिया.
दूसरी डोज के एक महीने बाद उसमें फिर से कोविड के लक्षण दिखाई दिए और टेस्टिंग में वह पॉजिटिव पाया गया. इस बार भी पहली बार जैसे लक्षणों के साथ यह बीमारी करीब 12 दिन तक चली.
जीनोम सीक्वेंसिंग में पाया गया कि दोनों इन्फेक्शन की वजह B.1.617.2 डेल्टा (Delta) वेरिएंट था.
CSIR इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के प्रिंसिपल साइंटिस्ट और इस मामले की स्टडी में शामिल रहे डॉ. विनोद स्कारिया कहते हैं, "ये पेपर एक ऐसे व्यक्ति के दुर्लभ मामले का वर्णन करता है जिसे पिछले संक्रमण और वैक्सीन की दोनों डोज के बाद भी लक्षण के साथ फिर से संक्रमण हुआ."
“ये मामले दुर्लभ हैं क्योंकि हाइब्रिड इम्यूनिटी (संक्रमण + वैक्सीनेशन) को बेहतर इम्यून रिस्पॉन्स देने वाला माना जाता है.”डॉ. विनोद स्कारिया, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, CSIR इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (CSIR-IGIB)
यह भी जानना दिलचस्प होगा कि स्टडी के लेखकों के अनुसार इस व्यक्ति में इम्यूनो-डेफिशिएंसी नहीं थी— जो कि ब्रेकथ्रू और री-इन्फेक्शन का बुनियादी कारण होता है.
इस बारे में वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग बताती हैं कि समय बीतने के साथ इन्फेक्शन से बचाव की क्षमता में कुछ गिरावट अपेक्षित होती है.”
“एक म्यूकोसल इन्फेक्शन (mucosal infection) के मामले में हमेशा के लिए इन्फेक्शन से बचाव नामुमकिन है और यह इस बात की निशानी है कि SARS-CoV2 की वैक्सीन कितनी अच्छी है क्योंकि वो कुछ महीनों के लिए इन्फेक्शन से बहुत अच्छी तरह हिफाजत करती है.”डॉ. गगनदीप कांग, वायरोलॉजिस्ट
निश्चित रूप से वैक्सीन और प्राकृतिक संक्रमण से सुरक्षा, दोनों आखिरकार कभी न कभी खत्म होने ही हैं. आमतौर पर माना जाता है कि वैक्सीन सिर्फ कुछ महीनों तक सुरक्षा देती है, इसलिए बूस्टर शॉट्स (booster shots) की बात चल रही है.
इसके अलावा डेल्टा वेरिएंट (delta variant) और इसके लिनिअज इम्यूनिटी को मात देने के लिए जानी जाती है.
निष्कर्ष
क्या यह फिक्र करने की बात है?
यह जरूरी नहीं है. डॉ. स्कारिया का यह भी मानना है कि ऐसे मामले बेहद दुर्लभ हैं.
वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील सहमति जताते हैं.
वह कहते हैं, “केस स्टडी दिलचस्प है लेकिन यह अकेला मामला है. यह साबित करता है कि री-इन्फेक्शन मुमकिन है, जो कि हम पहले से जानते थे.”
डॉ. जमील का यह भी कहना है कि अकेले मामलों को देखने से ज्यादा, पूरी आबादी में प्रतिक्रिया को देखना जरूरी है.
“कोई भी वैक्सीन इन्फेक्शन से नहीं बचाती है बल्कि गंभीर बीमारी और मौत से बचाती है. और वे बहुत अच्छा काम कर रही हैं.”डॉ. शाहिद जमील, वायरोलॉजिस्ट
इसलिए हालांकि वैक्सीन मौत से बचाने में बहुत कामयाब है, लेकिन जैसा कि हमने देखा है इन्फेक्शन के खिलाफ इनका इम्यून रिस्पॉन्स बहुत खराब है, जिससे री-इन्फेक्शन और ब्रेकथ्रू की आशंका बाकी रहती है.
लेकिन इससे स्टडी का महत्व कम नहीं हो जाता है, क्योंकि भले ही यह इकलौता और दुर्लभ मामला है, यह हमें वायरस को समझने और जानने कि यह कैसे बर्ताव करता है, के एक कदम और करीब लाता है.
SARS-CoV-2 वायरस लगातार रूप बदल रहा है और इससे एक कदम आगे रहने का इकलौता तरीका यह है कि इसके रूप बदलने के तरीके पर नजर रखी जाए, खासकर जब हमारी अग्रिम रक्षा पंक्ति यानी वैक्सीन की बात आती है.
“चूंकि एक बड़ी आबादी संक्रमित (सीरो सर्वे के आकलन के अनुसार) हो चुकी है और चूंकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा वैक्सीन लगवा चुका है, ऐसे में ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन को जानना फायदेमंद होगा, क्योंकि वे एंटीबॉडी से बचने के लिए वायरस के अनोखे गुणों की जानकारी देते हैं और इसीलिए वायरस के विकास को देखना दिलचस्प है.”डॉ. विनोद स्कारिया, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, CSIR इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (CSIR-IGIB)
वह कहते हैं, “वायरस का नया वेरिएंट जो बड़ी संख्या में ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन का कारण बन सकता है, आखिरकार वायरस के विकास को समझने के साथ-साथ इसका सामना करने के लिए तैयार रहने और ऐसे वायरस के वेरिएंट के फैलाव पर नजर रखना जरूरी है.”
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