इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), पुणे की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) और भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की ओर से की जा रही है एक स्टडी में ऐसा पाया गया है.
स्टडी में ये भी पाया गया है कि वैक्सीन से इन दो वेरिएंट्स के खिलाफ मूल स्ट्रेन के मुकाबले कम एंटीबॉडी प्रोड्यूस हुई.
ये स्टडी प्रीप्रिंट स्टेज में है और इसकी समीक्षा प्रक्रिया भी अभी बाकी है.
डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) की पहचान सबसे पहले भारत में हुई थी. देश में कोरोना की दूसरी लहर की पीछे इस वेरिएंट को माना जा रहा है. जबकि, बीटा वेरिएंट (B.1.351) पहली बार दक्षिण अफ्रीका में मिला था.
स्टडी के बारे में
इस स्टडी में कोरोना से रिकवर होने वाले 20 लोगों के ब्लड सैंपल की तुलना Covaxin से वैक्सीनेटेड 17 लोगों के ब्लड सैंपल से की गई.
इसमें कोरोना के डेल्टा और बीटा वेरिएंट के प्रति उनकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (immune response) की जांच की गई.
स्टडी के नतीजे में पाया गया कि कोवैक्सीन लेने वालों में बीटा और डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ न्यूट्रलाइजेशन टाइटर्स (एंटीबॉडी प्रोडक्शन) में 3.0 और 2.7 गुना की कमी थी, जबकि कोरोना से ठीक हुए लोगों में न्यूट्रलाइजेशन टाइटर्स में 3.3 गुना और 4.6 गुना कमी थी.
इसका मतलब यह है कि हालांकि वैक्सीन से मूल स्ट्रेन की तुलना में वेरिएंट के खिलाफ कम एंटीबॉडी का उत्पादन हुआ, फिर भी यह COVID से ठीक हुए लोगों में प्रोड्यूस हुए एंटीबॉडी की तुलना में अधिक है.
अध्ययन में कहा गया है, "हालांकि, न्यूट्रलाइजेशन टाइटर में कमी आई है, लेकिन पूरी तरह से निष्क्रिय SARS-CoV-2 वैक्सीन (BBV152) 'वेरिएंट्स ऑफ कंसर्न' (VOC) B.1.351 और B.1.617.2 के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया प्रदर्शित करती है."
कोरोना वेरिएंट्स के खिलाफ दूसरी कोविड वैक्सीन से भी न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी में मूल स्ट्रेन के मुकाबले गिरावट देखी गई है.
लैंसेट में 3 जून 2021 को छपी एक स्टडी में फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTech) की COVID-19 वैक्सीन की दो डोज के साथ पूरी तरह से टीकाकरण करा चुके लोगों में मूल स्ट्रेन की तुलना में डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2) के खिलाफ एंटीबॉडी का स्तर पांच गुना कम होने की संभावना जताई गई थी.
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