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COVID-19: क्या है पूल टेस्टिंग, भारत में ये टेक्नीक कितनी कारगर?

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Health News
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COVID-19: क्या है पूल टेस्टिंग, भारत में ये टेक्नीक कितनी कारगर?

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इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने 13 अप्रैल को जारी एक एडवाइजरी में उन इलाकों में COVID-19 स्क्रीनिंग के लिए 'पूल सैंपल' की सलाह दी है, जहां पॉजिटिव मामलों का रेट कम हो.

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इस टेक्नीक को सबसे पहले अंडमान एंड निकोबार में टेस्टिंग बढ़ाने और वक्त बचाने के लिए इस्तेमाल किया गया. यहां के चीफ सेक्रेटरी चेतन सांघी ने ट्वीट किया कि यहां सैंपल पूलिंग के जरिए सिर्फ एक-चौथाई टेस्ट का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ रही है.

दिल्ली में भी एक प्राइवेट हॉस्पिटल अपने सभी कर्मियों के लिए पूल टेस्टिंग कन्डक्ट करने वाला है.

पूल टेस्टिंग का क्या मतलब है और इसके क्या फायदे हैं, ये समझते हैं.

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क्या है पूल टेस्टिंग?

इसमें नाक और गले के स्वैब सैंपल लिए जाते हैं, लेकिन एक-एक सैंपल को टेस्ट करने की बजाए सभी सैंपल को मिलाकर सैंपल की जांच होती है. अगर पूल टेस्ट निगेटिव आता, तो सभी निगेटिव मान लिए जाते हैं.

इस तरह से जांच के लिए टेस्ट किट की जरूरत घटती है.

हालांकि अगर पूल टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो फिर अलग-अलग जांच करनी होती है.

ये कोई नया तरीका नहीं है. ये 1940 के दशक में आया था और तब से एचआईवी, सिफलिस जैसे संक्रमणों की निगरानी और जांच के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

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कहां पर होगी पूल टेस्टिंग?

भारत में पूल टेस्टिंग उन्हीं इलाकों में इस्तेमाल की जाएगी, जहां COVID-19 का कम प्रसार (5% से कम) हुआ है. ऐसे इलाकों के लिए खास गाइडलाइन है:

  • इस तरीके का उन्हीं क्षेत्रों में इस्तेमाल करें, जहां पॉजिटिव मामलों का रेट 2% से कम हो.

  • जिन क्षेत्रों में पॉजिटिव मामलों का रेट 2%-5% के बीच हो, वहां पीसीआर स्क्रीनिंग के लिए सैंपल पूलिंग उन्हीं लोगों के लिए करें, जिनमें COVID-19 के कोई लक्षण न हों, लेकिन इसमें उन लोगों के सैंपल न शामिल करें, जो किसी कन्फर्म केस के संपर्क में आने की आशंका हों जैसे हेल्थ केयर वर्कर्स. ऐसे लोगों का अलग से सैंपल टेस्ट करें.

  • सैंपल पूलिंग उन क्षेत्रों के लिए नहीं है, जहां पॉजिटिव मामलों की रेट 5% से ज्यादा हो.

  • दो से ज्यादा सैंपल पूल किए जा सकते हैं और ICMR ज्यादा से ज्यादा 5 सैंपल की पूल करने की सलाह देता है.

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पूल टेस्टिंग के फायदे

इस फायदा ये है कि एक साथ कई सैंपल टेस्ट किए जा सकते हैं, जिससे खर्च कम होगा, टेस्ट की जरूरत भी कम होगी. हालांकि पूल टेस्ट पॉजिटिव आने पर अलग-अलग जांच जरूरी होगी, लेकिन लो इन्फेक्शन रेट वाली जगहों पर ऐसी आशंका कम होगी.

क्या ये तरीका भारत के लिए सही रहेगा?

फिट ने वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील से बात की. उन्होंने बताया कि जहां इन्फेक्शन रेट कम है, वहां ये तरीका कारगर हो सकता है.

इस तरीके से टेस्ट की एक कमी वायरस को डिटेक्ट करने की इसकी 'सेंसिटिविटी' पर असर हो सकती है.

सैंपल पूलिंग के साथ ये एक चुनौती है कि कभी-कभी वायरस के प्रति सेंसेटिविटी में कमी हो सकती है क्योंकि सभी सैंपल डायल्यूट किए जाते हैं. इसलिए अगर आप 10 सैंपल यूज कर रहे हैं, तो आप हरेक का 1/10वां हिस्सा डाल रहे हैं. अगर वायरल लोड अच्छा है, तो इसमें कोई समस्या नहीं हैं, लेकिन अगर वायरस लोड लो है, तो इससे सेंसिटिविटी प्रभावित हो सकती है.
डॉ शाहिद जमील

वो कहते हैं कि चूंकि ICMR ने इसकी सिफारिश सिर्फ लो इन्फेक्शन रेट वाले इलाकों के लिए की है, इसलिए ये स्ट्रैटजी भारत के लिए अच्छी साबित हो सकती है.

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