भारत में कई अस्पतालों ने COVID-19 रोगियों के इलाज में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल (Antibody Cocktail) का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जिसे कोरोना के खिलाफ कारगर बताया जा रहा है और इससे मरीजों की जल्द रिकवरी की भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं.
हालांकि एक्सपर्ट्स चेताते हैं कि हमें इसे कोरोना की काट के तौर पर प्रमोट करने से बचना चाहिए और न ही इसके संभावित फायदे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना चाहिए.
क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे बताते हैं कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल का जो पॉजिटिव रिजल्ट आ रहा है, वो सभी कोविड रोगियों लिए नहीं है, ये थेरेपी उन सबग्रुप में मददगार हो सकती है, जिनमें एंटीबॉडी डेवलप नहीं हो या जिनमें पर्याप्त एंटीबॉडी न बने.
महत्वपूर्ण ये है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल किन मरीजों के लिए मददगार हो सकती है और किस सबसेट में इसका इस्तेमाल हो सकता है.डॉ. सुमित रे, क्रिटिकल केयर मेडिसिन, होली फैमिली हॉस्पिटल, दिल्ली
वो कहते हैं कि मेडिसिन में कभी भी कोई मैजिक बुलेट या जादू नहीं होता, ये हमारा क्रिटिकल केयर का एक्सपीरियंस है.
कोविड में एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी पर हुए ट्रायल से क्या पता चला है
मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज casirivimab और imdevimab को लेकर अस्पताल में भर्ती न होने वाले मरीजों पर हुई स्टडी में देखा गया कि इस ट्रीटमेंट से वायरल लोड घटा, कोविड के लक्षणों की अवधि घटी और हॉस्पिटल में एडमिशन या मौत का जोखिम घटा.
23 मार्च 2021 को Regeneron Pharmaceuticals ने CASIRIVIMAB के साथ IMDEVIMAB एंटीबॉडी कॉकटेल पर अपने फेज 3 ग्लोबल ट्रायल (4,567 पार्टिसिपेंट्स, जो अस्पताल में भर्ती नहीं थे) के नतीजों में बताया था कि इससे अस्पताल में भर्ती होने या मौत का रिस्क 70% घट सकता है और लक्षणों की अवधि भी चार दिनों तक घटी. इस आधार पर कंपनी का कहना है कि इससे हाई रिस्क वाले मरीजों की हालत खराब होने से बचाया जा सकता है.
इस फेज 3 ट्रायल के नतीजों की घोषणा में कंपनी की ओर से कहा गया था ये एंटीबॉडी कॉकटेल उन लोगों के लिए है, जो कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती हैं या जिन्हें COVID-19 के कारण ऑक्सीजन थेरेपी की जरूरत है. ये उन लोगों के लिए भी नहीं जो नॉन-कोविड कोमॉर्बिडिटी के कारण क्रोनिक ऑक्सीजन थेरेपी पर हैं.
वहीं अस्पताल में भर्ती मरीजों पर हुए यूके की रिकवरी ट्रायल के शुरुआती नतीजों में देखा गया है कि इससे उन मरीजों की मौत का जोखिम घट सकता है, जिनमें नैचुरल एंटीबॉडी रिस्पॉन्स न हो.
यूके की मेडिकल रिसर्च काउंसिल की एग्जिक्यूटिव अध्यक्ष फिओना वाट कहती हैं, "यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है. इसका मतलब है कि COVID-19 के साथ अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को इस आधार पर दो ग्रुप में बांटा जा सकता है कि उनमें वायरस के प्रति एंटीबॉडी बनी है या नहीं."
अगर एंटीबॉडी नहीं बनी हैं तो स्पाइक प्रोटीन के लिए एंटीबॉडी-आधारित दवाओं के साथ इलाज से उनकी मौत के जोखिम को कम किया जा सकता है और अस्पताल में एडमिट रहने की अवधि भी घट सकती है.फिओना वाट, एग्जिक्यूटिव अध्यक्ष, मेडिकल रिसर्च काउंसिल, यूके
वो कहती हैं कि जिन रोगियों ने वायरस के प्रति अपनी एंटीबॉडी बना ली है, उन्हें इससे कोई फायदा नहीं है, जो कि इन दवाइओं की कीमत को देखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी है.
डॉ. सुमित रे कहते हैं,
हमें ये समझना भी जरूरी है कि जो स्टडीज आती हैं, वो बताती हैं कि कोई दवा मृत्यु दर घटा सकती है, बीमारी को गंभीर होने से रोकने में मदद कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि जिसको भी वो दवा दी जाएगी, ठीक हो ही जाएगा.
जैसा कि एंटीबॉडी कॉकटेल पर रिकवरी ट्रायल में पाया गया है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉम्बिनेशन वाले ग्रुप में 24% मरीजों की मौत हुई जबकि सामान्य देखभाल वाले ग्रुप में 30% मरीजों की मौत हुई.
इससे ये पता चला कि एंटीबॉडी कॉकटेल वाले ग्रुप में बिना एंटीबॉडी कॉकटेल वाले ग्रुप की तुलना में कम मरीजों की मौत हुई.
कोरोना के खिलाफ मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल कैसे काम करती है?
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लैब में तैयार किए गए प्रोटीन होते हैं, जो वायरस जैसे हानिकारक रोगजनकों से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता की नकल करते हैं.
जैसे रोश की एंटीबॉडी कॉकटेल में Casirivimab और imdevimab मोनोक्लोनल एंटीबॉडी हैं.
ये विशेष रूप से SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ निर्देशित होते हैं, जिसे वायरस के अटैचमेंट और मानव कोशिकाओं में प्रवेश को ब्लॉक करने के लिए डिजाइन किया गया है.
इस तरह के न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी के कॉकटेल वायरस स्पाइक के अलग-अलग हिस्से से जुड़ते हैं.
“ये एंटीबॉडी कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन से जुड़ते हैं और इसे मानव कोशिकाओं से जुड़ने से रोकते हैं.”डॉ भारत गोपाल, सीनियर कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी, फोर्टिस अस्पताल, दिल्ली
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल सुर्खियों में तब आया, जब रोश (Roche) द्वारा रेजेनरॉन (Regeneron) के साथ साझेदारी में विकसित किया गया कॉकटेल ट्रीटमेंट पिछले साल पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को कोविड-19 में दिया गया था.
COVID-19: भारत में Antibody Cocktail के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO-Central Drugs Standards Control Organisation) ने मई 2021 में रोश इंडिया (Roche India) को उसकी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल Casirivimab और Imdevimab के इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (EUA) की मंजूरी दी थी.
अमेरिकी कंपनी एली लिली एंड कंपनी (Eli Lilly and Company) को भी उसकी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाओं (Antibody Drugs) के आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है.
भारत में सर गंगाराम अस्पताल में 1 जून से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी का इस्तेमाल शुरू किया गया. अब देश के कई अस्पतालों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के जिन अस्पतालों में एंटीबॉडी कॉकटेल का इस्तेमाल किया गया, उन्हें इसके अच्छे नतीजे मिले हैं.
लेकिन अच्छे नतीजों का मतलब है ये बिल्कुल नहीं है कि हर कोरोना पॉजिटिव पेशेंट को यह दी जा सकती है.
एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी: किन कोरोना रोगियों के लिए मददगार हो सकती है?
डॉ. रे कहते हैं कि हम इस दवा को किसी भी पेशेंट को ऐसे ही नहीं दे सकते हैं. ये देखना होगा कि कोरोना पॉजिटव पेशेंट में कोविड के खिलाफ लो एंटीबॉडी लेवल या एंटीबॉडी नहीं है, कोमॉर्बिडिटी है और पेशेंट हाई रिस्क ग्रुप में आता है.
ये वो सबसेट है, जहां मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सर्वाइवल सुधारने और लक्षणों की अवधि घटाने में मदद कर सकती है, लेकिन तभी जब इसे शुरुआती चरण में ही दिया जाए.
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी के लिए हाई रिस्क ग्रुप-
जिनकी उम्र 60 या इससे ज्यादा हो
मोटापा, कार्डियोवैस्कुलर बीमारी जिसमें हाइपरटेंशन भी शामिल है
क्रोनिक लंग डिजीज, जिसमें अस्थमा भी शामिल है
टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज
क्रोनिक किडनी डिजीज, जिसमें डायलिसिस वाले लोग भी शामिल हैं
क्रोनिक लीवर डिजीज
इम्यूनोसप्रेस्ड जैसे- जिनका कैंसर का इलाज चल रहा हो, बोन मैरो या अंग प्रत्यर्पण हुआ हो
इम्यून डिफिशियंसी, एचआईवी (AIDS पर खराब कंट्रोल), सिकेल सेल एनीमिया
थैलेसीमिया और इम्यूनिटी कमजोर करने वाली दवाइयों का लंबा इस्तेमाल करने वाले
इसे जल्द (early phase में) देना जरूरी है, जब वायरस सिस्टम में हो घूम रहा हो. देर में देना जब शरीर प्रभावित हो चुका हो या इम्यून रिस्पॉन्स आउट ऑफ कंट्रोल हो गया हो, उस फेज में हमें दूसरी दवाइयों की जरूरत पड़ती है.डॉ. सुमित रे, क्रिटिकल केयर मेडिसिन, होली फैमिली हॉस्पिटल, दिल्ली
एंटीबॉडी कॉकटेल: मात्र मुनाफे का जरिया न रह जाए ये महंगी दवा
वो मंजर याद है आपको जब रेमडेसिविर के लिए लोग मारे-मारे फिर रहे थें? अस्पतालों ने हाथ खड़े कर दिए थे. दवा की दुकानों पर लंबी कतारें थीं और सोशल मीडिया पर लोग अपनों की जान बचाने के लिए कहीं से भी किसी तरह रेमडेसिविर की गुहार लगा रहे थें. इस दवा की कालाबाजारी की खबरें आईं, जरूरतमंद इसकी कीमत से कहीं ज्यादा दाम चुकाने को मजबूर थे और इसके बावजूद नकली इंजेक्शन बेचे जाने की खबरें भी आ रही थीं.
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के साथ भी ऐसा कुछ न हो, इसे लेकर सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि इसके एक डोज की कीमत करीब 60 हजार से शुरू होती है. ऐसे में इसका इस्तेमाल मुनाफे के लिए नहीं बल्कि जिन मरीजों पर ये बेहतर काम कर सकती है, सिर्फ उनके लिए हो, ये सुनिश्चित करना बेहद महत्वपूर्ण है.
एक्सपर्ट्स मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के बेवजह इस्तेमाल के प्रति भी आगाह करते हैं.
एंटीबॉडी कॉकटेल: बेवजह इस्तेमाल को रोकने के लिए निगरानी जरूरी
डॉ. रे बताते हैं कि अक्सर मरीज के रिश्तेदार भी बहुत प्रेशर डालते हैं कि हमारा मरीज बीमार है, उसको ये दवा क्यों नहीं देते, हम पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं, लेकिन मेडिसिन और साइंस ऐसे नहीं चलता है.
पब्लिक डोमेन में काफी जानकारी उपलब्ध है, लेकिन सभी को उसका संदर्भ नहीं पता है. रेमडेसिविर, प्लाज्मा थेरेपी या स्टेरॉयड के मामले में ऐसा प्रचारित किया जा रहा था जैसे कोई जादू हो.डॉ. सुमित रे, क्रिटिकल केयर मेडिसिन, होली फैमिली हॉस्पिटल, दिल्ली
डॉ. गोपाल को ये भी आशंका है कि "बिना-सोचे समझे इसके इस्तेमाल से उन लोगों को कमी हो सकती है, जो असल में इससे लाभान्वित हो सकते हैं."
आखिर में डॉ. रे समझाते हैं कि किसी भी बीमारी के अलग-अलग फेज में अलग-अलग सबसेट में अलग-अलग ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है. ये हर मेडिसिन के साथ जरूरी है कि किस सबसेट में किस टाइम पर किस डोज में दवा देनी है, ये सेलेक्शन बेहद अहम होता है.
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