मैं अपने बच्चों के लिए बुरी तरह फिक्रमंद हूं, मैंने आज उन्हें स्कूल नहीं भेजा क्योंकि वे दोनों अस्थमेटिक हैं और बीमार महसूस कर रहे थे. लेकिन मैं ऐसा कब तक कर सकूंगी, मेरी बेटी 10वीं में है!दीपा रंगनाथ, दिल्ली में दो बच्चों की फिक्रमंद मां
जब हमारे शहर स्मॉग की चपेट हैं और एयर पॉल्यूशन बेकाबू है, तो हम अपने आसपास उन लोगों की हिफाजत कैसे करें, जो कमजोर हैं?
मां-बाप इन महीनों के दौरान अपने मासूम बच्चों की किस तरह सबसे बेहतर तरीके से हिफाजत कर सकते हैं, जबकि पेड़ों के परागण की ऋतु, मौसम में बदलाव और प्रदूषण में जबरदस्त वृद्धि बच्चों के लिए जहरीला वातावरण बना रहे हैं.
फिट ने विशेषज्ञों और अभिभावकों से बात की ताकि यह पता लगाया जा सके कि किन चीजों से बचना चाहिए, किन बदलावों पर नजर रखनी चाहिए और अपने बच्चों को इस पॉल्यूशन के सीजन से बचाने के लिए कौन से टिप्स मददगार हो सकते हैं.
पेरेंट्स, आप अपने बच्चों की ऐसे हिफाजत कर सकते हैं
बच्चों के लिए, स्कूल से एक दिन की छुट्टी मजेदार लग सकती है, लेकिन जब आप बीमार हों तो यह छुट्टी नहीं है. तो फिर, मां-बाप अपने बच्चे की हिफाजत के लिए कौन से व्यावहारिक उपाय कर सकते हैं? फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी की सीनियर कंसलटेंट डॉ नीतू तलवार का कहना है, “सबसे पहले तो, जब प्रदूषण का स्तर बढ़ा हो तो शाम 5 बजे के बाद की आउटडोर एक्टिविटी पर रोक लगा दें. एक्टिविटी को घर के अंदर करें.”
बड़े बच्चों को संभालना थोड़ा मुश्किल हो सकता है और माता-पिता की ओर से लक्षणों पर सतर्कतापूर्वक नजर रखना जरूरी है. डॉ तलवार कहती हैं, “मैंने कई बच्चों, किशोरों को देखा है जो अस्थमा के लक्षणों को छिपाते हैं. वे अपने पेरेंट को परेशान नहीं करना चाहते या दोस्तों के बीच स्कूल में मजाक का पात्र नहीं बनना चाहते और खेल में शामिल होना चाहते हैं और दूसरे बच्चों की तरह मजे करना चाहते हैं. लेकिन तब ऐसे में वे पहले से कहीं ज्यादा बदतर हालत में पहुंच जाते हैं.
दीपा कहती हैं कि उनके परिवार के सभी चार सदस्यों को फेफड़े की समस्या है, वे सभी जानते हैं कि संकेतों को कैसे पहचाना जाए.
"सांस लेने में परेशानी, लगातार खांसी, सिर दर्द जो एक ब्लैकआउट जैसा लगता है.” दीपा कहती हैं, मुझे लगता है कि हम सभी इंसानी AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) मशीन बन गए हैं जो अपने संकेतों को समझते हैं और बता सकते हैं कि प्रदूषण कब बहुत ज्यादा है.
वह अपने बच्चों की स्कूल में बीमारी के लक्षणों को छिपाने की वजह को समझती हैं और इससे तालमेल बिठाने की कोशिश करती हैं, “अब अस्थमा बहुत अधिक गंभीर है, लेकिन वे बच्चे हैं, हम उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे खुद अपनी देखभाल करें. यह दूसरे लोगों की जिम्मेदारी है कि राजधानी को रहने लायक बनाया जाए.”
एंटी पॉल्यूशन मास्क का इस्तेमाल करने के बारे में क्या ख्याल है? डॉ तलवार का कहना है कि सिद्धांततः ये काम करते हैं, लेकिन यह कोई बहुत “कारगर समाधान नहीं है क्योंकि बच्चे इन्हें बहुत जल्द निकाल देते हैं और इन्हें बहुत देर तक लगाने की अपनी कई समस्याएं हैं- जैसे कार्बनडाइऑक्साइड से भरी हवा को फिर से सांस के रास्ते अंदर लेना.”
दीपा अपनी बात में आगे ये भी जोड़ती हैं कि उनके बच्चे अक्सर मास्क नहीं पहनते हैं, “वे स्कूल में सहज दिखना चाहते हैं.”
डॉ तलवार सलाह देती हैं कि अगर आपके बच्चे को पहले से अस्थमा है तो सीजन शुरू होने से पहले डॉक्टर से मिल लेना सबसे अच्छा है जिससे कि वे उनके अस्थमा की स्थिति की जांच कर लें और जरूरत के हिसाब से दवा बढ़ाएं.
सांस की समस्याओं को रोकने में मदद करने के लिए कोई और डॉक्टरी सलाह? अपना फ्लू का इंजेक्शन हर साल लगवाएं.
दीपा कहती हैं कि फ्लू वैक्सीनेशन बहुत जरूरी है क्योंकि सांस की समस्याओं के अलावा इससे जुड़ी बीमारियां जैसे फीवर, खांसी, एलर्जी जैसी और भी समस्याएं हैं.
वह आगे कहती हैं, “मेरा बेटा अपने अस्थमा अटैक को काबू में रखने के लिए एंटी-एलर्जेंस लेता है, लेकिन इससे ड्राइनेस होती और नाक से खून आता है.”
एक बार, वह एक रोबोटिक्स चैलेंज में हिस्सा ले रहा था और मेज पर ही खून फैल गया. कई बार समय सोते समय भी उसकी नाक से खून आ जाता है. हम उसके अस्थमा के अटैक का इलाज करा रहे हैं.दीपा
खराब सेहत के अलावा, जहरीली हवा बच्चों के रोजमर्रा के जीने के तरीके को भी बदल रही है. दीपा कहती हैं, “फुटबॉल के जबरदस्त शौकीन मेरे बेटे को इसे छोड़ना पड़ा क्योंकि इससे उसे अस्थमा का अटैक आ जाता था. मेरे दोनों बच्चे अब आमतौर पर गतिहीन जीवन जीते हैं. वे कर भी क्या सकते हैं?”
नागरिकों की अगुवाई वाले आंदोलन माई राइट टू ब्रीथ से जुड़ी रवीना राज कोहली का कहना है कि उनका ये ग्रुप मुख्य रूप से बच्चों को प्रदूषण से बचाने के लिए बनाया गया था.
“मैं चाहती हूं कि स्कूल यह सुनिश्चित करें कि जब एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) खराब हो तो कोई आउटडोर एक्टिविटी ना हो, कोई तेज एरोबिक एक्सरसाइज यहां तक कि इनडोर भी ना कराएं. बच्चों को शारीरिक रूप से तनाव नहीं देना बेहतर है क्योंकि इससे गंभीर शारीरिक बीमारियां हो सकती हैं.”
जबकि हर तरफ स्मॉग और खराब हवा बिल्कुल साफ दिख रही है, हमारे बच्चों की हिफाजत के लिए ज्यादा ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं? रवीना कहती हैं, यह एक तकलीफदेह हकीकत है, और “आदतों को बदल पाना बहुत मुश्किल है.”
पेरेंट्स, बहादुर बनें और घबराएं नहीं!
पेरेंट्स के लिए डॉ तलवार की पहली सलाह क्या है? “शांत रहें. इस समय सांस की बीमारियां आम हैं और अगर रोगी समय पर डॉक्टर के पास आ जाता है तो पूरी तरह इलाज हो सकता है.”
मेरे पास एक ऐसा केस आया था, जिसमें खराब हवा से बचने के लिए परिवार गुड़गांव से गोवा चला गया था, लेकिन वहां भी हवा में नमी के चलते बच्चे को वैसी ही सांस की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. तब वो वापस गुड़गांव चले आए. आप इन समस्याओं से भाग नहीं सकते और बार-बार जगह नहीं बदल सकते, इसलिए सबसे अच्छा उपाय यह है कि अपने डॉक्टर को दिल खोलकर बताएं और अपने बच्चे की मेडिकल जरूरतों को समझें.डॉ तलवार
दीपा हंसते हुए कहती हैं., “हम हर साल दिल्ली से कहीं और चले जाना चाहते हैं. लेकिन जीना यहां, मरना यहां.”
पेरेंट्स को भी खुद को सही तरह के ज्ञान से लैस करने और समस्याओं को सही ढंग से समझने की जरूरत है.
“हर बात के लिए गूगल करके जिंदगी को और अधिक तनाव में ना डालें. सरकारी साइटों (भारत, यूके, यूएस की) पर जाएं, CDC पर जाएं, WHO पर जाएं और उनकी अपने संदेहों को दूर करें.”
और प्रदूषण के कारगर समाधान के लिए अपनी सरकार के प्रतिनिधियों को याचिका भेजें.
(एयर पॉल्यूशन पर फिट ने #PollutionKaSolution कैंपेन लॉन्च किया है. आप भी हमारी इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं. आप #AirPollution को लेकर अपने सवाल, समाधान और आइडियाज FIT@thequint.com पर भेज सकते हैं.)
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