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बच्चों पर वायु प्रदूषण का प्रभाव, बन सकता है परेशानी का सबब

बच्चों को पॉल्यूशन से जीवनभर के लिए स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

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वायु प्रदूषण का बच्चों पर काफी बुरा असर होता है, जो उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है. यूनिसेफ की नई रिपोर्ट के मुताबिक, 1.7 करोड़ बच्चे उन क्षेत्रों में रहते हैं, जहां एयर पॉल्यूशन अंतरराष्ट्रीय सीमा से छह गुना ज्यादा होता है, जो संभावित रूप से उनके दिमाग के विकास के लिए खतरनाक है. क्योंकि वो एक ऐसी हवा में सांस लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.

इन बच्चों में अधिकतर दक्षिण एशिया में रहते हैं. दक्षिण एशिया में 12 लाख से ज्यादा बच्चे इससे पीड़ित हैं. सबसे दुखद ये है कि पॉल्यूशन से उन्हें जीवन भर के लिए स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

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कई अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण सांस संबंधी कई रोगों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है, जिनमें निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा प्रमुख हैं. ये बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है.

फेफड़े और दिमाग पर असर

वायु प्रदूषण फेफड़े और दिमाग के विकास को भी प्रभावित कर सकता है. अगर इलाज नहीं करवाया जाए तो वायु प्रदूषण से संबंधित कुछ स्वास्थ्य संबंधी जैसी समस्याएं पूरी जिंदगी बनी रह सकती है.

बीते दौर में कई रिसर्च से पता चला है कि कैसे वायु प्रदूषण बच्चों में फेफड़ों की कार्यक्षमता और दिमाग के विकास को रोकता है. सांस के रूप में साफ हवा लेने से फेफड़े और बच्चों का दिमाग बेहतर ढंग से विकसित होता है.

बड़ों की तुलना में बच्चे ज्यादा प्रभावित

बच्चों पर वायु प्रदूषण के प्रभावों के बारे में बोलते हुए ब्लूएयर के पश्चिम और दक्षिण एशिया क्षेत्र के निदेशक गिरीश बापट ने कहा, "बड़ों की तुलना में बच्चे वायु प्रदूषण के आसानी से शिकार बन रहे हैं. वो अपने विकासशील फेफड़ों और इम्यून सिस्टम के चलते हवा में मौजूद विषैले तत्वों को सांस से अपने अंदर ले रहे हैं. कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं."

गुरुग्राम के मैक्स और फोर्टिस अस्पताल की विजिटिंग कंसल्टेंट डॉ. शगुना सी महाजन ने बताया, बच्चों पर वायु प्रदूषण का असर वयस्कों पर पड़ने वाले प्रभाव से अधिक हैं, क्योंकि बच्चों का शरीर विकसित हो रहा होता है और बच्चों के फेफड़े अभी पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं.

बच्चों पर प्रदूषण का असर तेजी से होता है और उनके शरीर पर दीर्घकालिक प्रभाव के चलते कई स्वास्थ्य समस्याएं सामने आती हैं. आजकल बच्चे बहुत कम उम्र में कई तरह की एलर्जी से ग्रस्त हो रहे हैं. उन्हें अपने जीवन के बाकी हिस्सों में भी इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

कणों के स्तर (पीएम) 2.5 पर होने से गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव सामने आ सकते हैं जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, क्रोनिक सांस के रोगों कई लक्षण, सांस लेने में तकलीफ, सांस लेते समय दर्द होना और कई मामलों में अचानक मौत भी हो जाती हैं क्योंकि जहरीले तत्व फेफड़ों में जमा हो जाते हैं.

(इनपुट: IANS)

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